Atmadharma magazine - Ank 207
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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पोष : र४८७ : १३ :
* बीजी तरफ समस्त परद्रव्यो, तथा तेमना आश्रये थता रागादि बंध परिणाम; ते पराश्रित
व्यवहारमां गया.
–आ प्रकारे बंनेनुं भेदज्ञान करीने धर्मात्मा पोताना स्वभावना आश्रये निर्मळ परिणामनो ज कर्ता
थाय छे; पराश्रित भावरूप व्यवहारने ते पोताना स्वभावथी जुदो ज राखे छे. आ रीते सम्यग्द्रष्टि मुमुक्षु
व्यवहारनो निषेध करीने शुद्ध स्वभावना आश्रये मोक्षमार्गने साधे छे. अहा, आचार्यदेवे मोक्षने साधवा
माटे महा सिद्धांत बताव्यो छे के, मोक्षार्थीए जेम परमां एकत्वबुद्धिथी थतुं मिथ्यात्व छोडवा योग्य छे तेम परना
आश्रयथी थतो राग पण छोडवा योग्य ज छे. मोक्षने माटे शुद्धआत्मानो एकनो ज आश्रय करवा योग््य छे.
ज्ञानस्वभावी आत्मा अबंधस्वरूप छे, ते पोताना ज्ञान–दर्शन–आनंद साथे त्रिकाळ तद्रूप छे;
आवा आत्मानी द्रष्टि करवी ते सम्यग्दर्शन छे, ते सम्यग्दर्शन पण अबंध–परिणाम छे. आवा अबंधस्वरूप
आत्माने भूलीने, परमां एकत्वबुद्धिथी थतो जे मिथ्या अध्यवसाय ते बंधनुं कारण छे, एटले मोक्षार्थीए
ते छोडवा जेवो छे–एम भगवाननो उपदेश छे. आचार्यदेव कहे छे के, पर साथे एकतारूप अध्यवसाय
भगवाने छोडाव्यो छे ते उपदेशमांथी अमे एवुं तात्पर्य काढीए छीए के परना आश्रये थतो सघळोय
व्यवहारज भगवाने छोडाव्यो छे, केम के ते बंधनुं ज कारण छे. मोक्षनुं कारण तो अबंध स्वभावनो
आश्रय करवो ते ज छे.
* समकिती क््यां छे? *
* तेनी ओळखाण केम थाय? *
समकिती क््यां छे? समकिती परद्रव्यमां छे?–ना; समकिती पराश्रितभावमां छे?–ना, तो समकिती
क््यां छे?–समकिती तो पोताना सम्यक्त्वादि भावोमां ज छे. समकिती परद्रव्योमां नथी, ए ज रीते पर
द्रव्यना आश्रये थतां पराश्रितभावोमां पण समकित नथी. समकिती तो शुद्ध आत्माना आश्रये थता
सम्यक्त्वादि निर्मळभावोमां छे. पर द्रव्यने अने परभावो तो तेणे पोताना स्वभावथी जुदा जाण्या छे तो
तेमां समकिती केम होय? रागना के परना स्वामीपणे समकितीने ओळखे तो तेणे खरेखर समकितीने
ओळख्या ज नथी.
जेम, परद्रव्य छे तो स्वद्रव्य छे–एम नथी तेम, व्यवहार छे तो निश्चय छे–एम पण नथी. व्यवहार
तो परना आश्रये वर्ते छे ने निश्चय तो स्वना आश्रये वर्ते छे.–शुं जीवने परद्रव्यनो आश्रय छे माटे तेने
स्वद्रव्यनो आश्रय छे?–ना; जेम परने कारणे स्व नथी तेम पराश्रयने कारणे स्वाश्रय नथी, एटले
व्यवहारने कारणे निश्चय नथी. समकिती जाणे छे के–जेम परद्रव्यथी मारो आत्मा जुदो छे तेम पराश्रित एवा
रागादि भावोथी पण मारो आत्मा जुदो ज छे.–आ रीते समकिती–धर्मात्मा व्यवहारथी मुक्त छे, छूटो छे.
स्वाश्रये जे साधकभाव थयो छे–निर्मळभाव थयो छे ते तो व्यवहारना पराश्रयभावथी (–बाधकभावथी)
जुदो ज वर्ते छे. स्वाश्रयभावनी धारा निर्मळपणे मोक्षमार्गे चाली जाय छे, ने जेटलो पराश्रित भाव छे ते
बधोय सम्यग्द्रष्टिना विषयथी बहार छे. पराश्रये थतो भाव तो बंधनुं कारण होवाथी बाधक छे. ते
बाधकभावमां जे एकपणे वर्ते ते जीव मोक्षनो साधक केम होय? अने जे मोक्षनो साधक होय ते तेमां (–
बाधकभावमां) एकपणे केम वर्ते?– माटे मोक्षना साधक ज्ञानीधर्मात्मा पराश्रित व्यवहारथी मुक्त ज छे,
एटले शुद्ध स्वभावना आश्रय वडे ते व्यवहारने छोडीने मुक्ति पामे छे. आ ज मोक्षने साधवानी
समकितीनी कळा छे. आवी कळा द्वारा ज समकितीनी खरी ओळखाण थाय छे.