Atmadharma magazine - Ank 207
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 15 of 21

background image
: १४ : आत्मधर्म : २०७
जुओ, आ मोक्षमार्गनी रीत! अहा, मोक्षने साधता साधता संतोए आ मोक्षने साधवानी कळा
बतावीने जगतना जिज्ञासुओ उपर परम उपकार कर्यो छे.
* मोक्षने साधवानो एक ज कायदो...एक ज नियम *
मोक्षने साधवानो एक ज कायदो छे के जे निश्चयनो आश्रय करे छे ते ज मोक्षने साधे छे. माटे
मोक्षार्थीए निश्चयनो आश्रय करवो ने व्यवहारनो आश्रय छोडवो. सम्यग्द्रष्टि भेदविज्ञाननी आवी कळा वडे
स्वाश्रये मोक्षने साधे छे. आवी भेदज्ञान कळा वगर जीव बीजी गमे तेटली कळा भण्यो होय तोपण ते
मोक्षने साधी शकतो नथी. निश्चय अने व्यवहारनी वहेंचणी (पृथक्करण) करवानी कळा अज्ञानीने आवडती
नथी. अहीं तो निश्चय व्यवहारनुं स्पष्ट पृथक्करण करीने आचार्यदेवे मोक्ष माटेनो अफर नियम बताव्यो छे
के स्वाश्रित एवा निश्चयनुं अवलंबन ते ज मोक्षने साधवानी रीत छे, ने पराश्रित एवा व्यवहारना
अवलंबने कदी पण मोक्षने साधी शकातो नथी.
अभव्य जीव कदीपण सम्यग्दर्शनादि केम पामतो नथी?–कारणके ते कदी पण शुद्धात्मानो आश्रय
करतो नथी अने व्यवहारना आश्रयनो अभिप्राय छोडतो नथी; रागादिरूप व्यवहारनो ज आश्रय करीने
तेने ते मोक्षनुं (धर्मनुं) साधन माने छे, पण मोक्षनुं (धर्मनुं) खरुं साधन जे स्वाश्रय छे तेने ते अंगीकार
करतो नथी तेथी ते सम्यग्दर्शनादि पामतो नथी. आ वात कोने माटे करी? शुं एकला अभव्य जीवोने माटे ज
आ वात छे? –ना; अहीं अभव्यनुं तो द्रष्टांत छे, ते द्रष्टांत उपरथी जगतना बधाय जीवोने माटे आचार्यदेव
एम नियम समजावे छे के जे कोई जीवो शुद्धात्मानो आश्रय करे छे तेओ ज मुक्तिने पामे छे; अने जेओ
व्यवहारनो आश्रय करे छे तेओ बंधाय छे. माटे जे खरेखर मुमुक्षु होय...जेणे मोक्षने साधवो होय तेणे
निश्चयनय वडे शुद्धात्मानो आश्रय करवो ने पराश्रयरूप व्यवहारनो आश्रय छोडवो.–आ ज मोक्षनो पंथ
छे...आज मोक्षने साधवानी रीत अने कळा छे.
* स्वघरमां वसवुं तेनुं नाम वास्तु *
जेम अभव्य जीव मोक्षपरिणाम माटे अलायक छे, तेम परना आश्रये थता रागादि व्यवहारभावो
पण मोक्षपरिणाम माटे अलायक छे,–मोक्षनुं साधन थाय एवी लायकात तेमनामां नथी, एटले तेमना वडे
मोक्ष पमातो नथी. जेम जगतना परद्रव्यो आ आत्माना स्वभावथी जुदा छे तेम पराश्रितभावो पण आ
आत्माना स्वभावथी जुदा ज छे, आत्माना स्वभावमां तेमनो प्रवेश नथी. आत्मानो ज्ञानस्वभाव तो
अबंध छे ने रागादि पराश्रित भावो तो बंधरूप छे,–तेमने एकता नथी, पण भिन्नता छे. मोक्षपंथ एकला
चिदानंदस्वभावना आश्रये ज वर्ते छे.–आवा चिदानंदस्वभावने जाणीने तेना आश्रयमां वसवुं ते ज
स्वघरमां साचुं वास्तु छे.
* संतोनो उपकार *
अहो, चिदानंदस्वभाव अलौकिक...अने तेना आश्रये थतो मोक्षनो मार्ग पण अलौकिक...ते अलौकिक
मोक्षमार्ग प्रसिद्ध करीने संतोए मुमुक्षुओ उपर अलौकिक उपकार कर्यो छे.
(आसो वद ११ ना प्रवचनमांथी)
ङ्क