महा : र४८७ : ९ :
“यथा–सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्ग एवुं जे एकवचन कह्युं छे तेनो अर्थ आ छे के त्रणे
मळीने एक मोक्षमार्ग छे पण जुदा जुदा त्रण मार्ग नथी.
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र३. व्यवहार भावो अर्थात् व्यवहार श्रद्धा–ज्ञान–चारित्ररूप व्यवहार मोक्षमार्ग ते माराथी पर छे
एम जाणवुं–एम भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव श्री समयसारनी गा. र९७ मां कहे छे. ते गाथा नीचे प्रमाणे छे:–
प्रज्ञाथी ग्रहवो–निश्चये जे चेतनारो ते ज हुं
बाकी बधा जे भाव ते सौ मुज थकी पर जाणवुं. ।। र९७।।
अर्थ:– प्रज्ञावडे (आत्माने) एम ग्रहण करवो के–जे चेतनारो छे ते निश्चयथी हुं छुं, बाकीना जे
भावो छे ते माराथी पर छे एम जाणवुं.
र४. आ गाथानी टीका करतां श्री अमृतचंद्र आचार्य लखे छे के:–
नियत स्वलक्षणने अवलंबनारो प्रज्ञावडे जुदो करवामां आवेलो जे चेतक (चेतनारो), ते आ हुं छुं;
अने अन्य स्वलक्षणोथी लक्ष्य (अर्थात् चैतन्य लक्षण सिवाय बीजां लक्षणोथी ओळखावा योग्य) जे आ
बाकीना व्यवहाररूप भावो छे, ते बधाय, चेतकपणा रूपी व्यापकना व्याप्य नहि थतां होवाथी, माराथी
अत्यंत भिन्न छे.”
रप. श्री जयसेनाचार्य आ गाथानी टीकामां पण व्यवहार भावो आत्माथी अत्यंतभिन्न छे एम कहे
छे–
र६. आ उपरथी सिद्ध थाय छे के साधक जीवोने ४–प–६ गुणस्थाने ते ते गुणस्थान अनुसारनी शुद्धि
उपरांत व्यवहार भावो होय छे खरा, ते बळजोरीथी आव्या विना रहेता नथी, पण धर्मी जीवो तेने आत्मिक
शुद्ध भाव मानता नथी अने तेने ओळंगी जवानो तेओ पुरुषार्थ कर्या करे छे. तेथी ते भावो खरेखर
मोक्षमार्ग नथी, पण बंध भाव छे. ते भूमिकामां हेय बुद्धिए साधक जीवोने ए भावो होवाथी अने ते पर
होवाथी तेने निमित्त, भिन्न साधन, बहिरंग कारण वगेरे कहेवामां आवे छे पण तेथी ते भावनुं
अनात्मिकपणुं, बंधभावपणुं मटी जतुं नथी. ते निमित्त होवाथी तेने अभूतार्थ मोक्षमार्ग कहेवामां आवे छे.
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र७. जे जीवो व्यवहारथी लाभ माने छे–तेनाथी (व्यवहारथी) थोडो धर्म थाय अने निश्चयथी वधारे
धर्म थाय एम माने छे तेओ प्रसंगे प्रसंगे समयसारनी गा. १र तथा तेनी टीकानो आधार आपे छे. पण
तेमनुं ए मानवुं ते भ्रम छे केमके तेम मानवाथी निश्चय अने व्यवहार नयो बन्ने* उपादेय ठर्या. अर्थात् बन्ने
भूतार्थ ठर्या–आश्रय करवा योग्य ठर्या. तेमनी आ मान्यता समयसार गाथा. ११ मां कहेला सिद्धांतथी
परिपूर्ण रीते विरुद्ध छे.
र८. आ विषय उपर श्री जैनतत्त्वमीमांसामां सुंदर रीते अकाटय युक्तिथी स्पष्टता करवामां आवी
छे. ते शास्त्रमां प्रसिद्ध विद्वान पंडितश्री फूलचंद्रजी सिद्धांत शास्त्रीजी कहे छे के:– (पा. र४७ थी)
“अहिं एम समजवुं जोईए के जेणे अभेदद्रष्टिनो आश्रय करी पर्यायद्रष्टि अने उपचारद्रष्टिने हेय
समजी लीधी छे ते पोतानी श्रद्धामां तो एम ज माने छे के एक द्रव्य बीजां द्रव्योनुं कर्ता आदि त्रिकाळमां थई
शकतुं नथी. मारी जे संसार पर्याय थई रही छे तेनो कर्ता एक मात्र हुं छुं अने मोक्षपर्यायने हुं ज मारा
पुरुषार्थथी प्रगट करीश. तेमां अन्य पदार्थ अकिंचित्कर छे.
तोपण ज्यां सुधी तेने विकल्पज्ञाननी (बुद्धि पूर्वकना राग सहित ज्ञाननी) प्रवृत्ति थती रहे छे त्यां
सुधी तेने ते भूमिकामां स्थित रहेवाने माटे अन्य सुदेव, सुगुरु अने आप्तना उपदेशेलां आगम आदि
हस्तावलंब (निमित्त) थतां रहे छे. तेथी तो तेना मुखमांथी एवी वाणी प्रगट थाय छे के :–
* जुओ उपर पारा १प.
* व्यवहार मोक्षमार्ग जीवथी अन्य छे एम समयसार गा. र९७ मां कह्युं छे तेथी ते धर्म माटे
अकिंचित्कर छे.