Atmadharma magazine - Ank 208
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : २०८
१७ निश्चय मोक्षमार्ग तो आत्मानां श्रद्धा–ज्ञान अने रमणता छे, अने ते वखते शुभ राग होय छे
तेने मोक्षमार्ग मानवो ते व्यवहार छे. दया, दान, भक्तिनो राग तो मोक्षमार्गथी विरुद्ध बंधमार्ग छे, पण ते
निमित्त छे. माटे उपचारथी एने मोक्षमार्ग मानवो ते व्यवहार छे एम कहेल छे. पण अज्ञानी बहारनी
प्रवृत्तिने व्यवहार कहे छे माटे तेने व्यवहारनी पण खबर नथी.”
१८ आवा बे प्रकारनुं प्ररूपण (निरूपण) मोक्षमार्ग संबंधी होय छे एम भगवान श्री कुंदकुंद
आचार्य देव श्री समयसारनी गाथा ४१४ मां कहे छे. आ गाथाना अर्थने स्पष्ट करतां श्री अमृतचंद्र आचार्य
ते गाथानी टीकामां फरमावे छे के :–
“श्रमण अने श्रमणोपासकना भेदे बे प्रकारनां द्रव्यलिंगो मोक्षमार्ग छे–एवो जे प्ररूपण प्रकार
(अर्थात् एवा प्रकारनी जे प्ररूपणा) ते केवळ व्यवहार ज छे, परमार्थ नथी, कारण के ते प्ररूपणा पोते
अशुद्धद्रव्यना अनुभवनस्वरूप होवाथी तेने परमार्थपणानो अभाव छे.
श्रमण अने श्रमणोपासकना भेदोथी अतिक्रांत, दर्शनज्ञानमां प्रवृत्त परिणति मात्र (मात्र दर्शन–
ज्ञानमां प्रवर्तेली परिणतिरूप) शुद्धज्ञान ज एक छे–एवुं निस्तुष (निर्मळ) अनुभवन ते परमार्थ छे,
कारण के ते (अनुभवन) पोते शुद्ध द्रव्यना अनुभवन स्वरूप होवाथी तेने ज परमार्थपणुं छे. माटे जेओ
व्यवहारने ज परमार्थ बुद्धिथी (–परमार्थ मानीने) अनुभवे छे, तेओ समयसारने ज नथी अनुभवता;
जेओ परमार्थने परमार्थ बुद्धिथी अनुभवे छे, तेओ ज समयसारने अनुभवे छे”
(अतिक्रांत=दूर ओळंगी गयेलुं)
१९. श्री प्रवचनसारनी गाथा १–प नी टीकामां श्री अमृतचंद्र आचार्य–आ विषयने स्पष्ट करतां कहे
छे के :–
–जेमां कषायकण विद्यमान होवाथी जीवने जे पुण्यबंधनी प्राप्तिनुं कारण छे एवा सराग चारित्रने–
ते (सराग चारित्र) क्रमे आवी पड्युं होवा छतां (गुणस्थान–आरोहणना क्रममां जबरजस्तीथी अर्थात्
चारित्रमोहना मंद उदयथी आवी पडेलुं होवा छतां) दूर ओळंगी जईने, जे समस्त कषाय कलेशरूप कलंकथी
भिन्न होवाथी निर्वाणनी प्राप्तिनुं कारण छे एवा वीतराग चारित्र नामना साम्यने प्राप्त करुं छुं.
२०. अहिं जे कह्युं छे तेनो सार नीचे प्रमाणे छे :–
(१) व्यवहार मोक्षमार्ग कषायकण छे, ते बंधनी प्राप्तिनुं कारण छे.
(र) ते दरेक साधक जीवने क्रमे आवी पड्या विना रहेतो नथी पण ते मोक्षनुं कारण के मार्ग नथी.
(३) तेने ओळंगी जवुं अर्थात् तेनाथी अतिक्रांत थवुं ते मोक्ष (निर्वाण) नी प्राप्तिनुं कारण छे.
(४) व्यवहारमोक्षमार्ग
कषाय कलेशरूप कलंक छे.
(प) निश्चयमोक्षमार्ग समस्त कषाय कलेशथी भिन्न छे.
र१ श्री जयसेनाचार्य आ गाथानी टीकामां कहे छे के :–
“ते क्रममां आवी पडेलुं सराग चारित्र पुण्य बंधनुं कारण छे एम जाणी,
तेनो परिहार करीने
निश्चय शुद्धात्मानुभूतिरूप वीतरागचारित्र ग्रहण करवुं ए भावार्थ छे.”
(परिहार करवो, दूरथी ओळंगी जवुं–तेनाथी अतिक्रांत थवुं–ए बधुं (एक ज छे.)
रर पंडित प्रवर श्री टोडरमलजी मोक्षमार्ग प्रकाशक अधिकार ९ पा. ३१प मां कहे छे के:–
* व्यवहार करतां करतां निश्चय थाय एम माननार व्यवहारने अतिक्रांत (ओळंगी) शकता नथी
तेथी तेने कदी परमार्थ बुद्धि थती नथी.