
तेटला शास्त्रो पढी जाय तोपण आत्मानो लाभ क्यांथी थाय?–सम्यग्ज्ञान क्यांथी थाय? शास्त्रोनो हेतु तो
शुद्धज्ञानमय आत्मा दर्शावीने मोक्षना उपायमां लगाडवानो हतो, परंतु जेने मोक्षनी ज श्रद्धा नथी तेने
शास्त्रनुं भणतर क्यांथी गुणकारी थाय? माटे, अभव्य जीव ११ अंग भणवा छतां अज्ञानी ज रहे छे.
अभव्यना द्रष्टांत मुजब बीजा भव्य जीवोनुं पण ए ज प्रमाणे समजी लेवुं. अंतर्मुख थईने, रागथी जुदो
थईने, शुद्धज्ञानमय आत्माने जे जाणे छे ते ज सम्यग्ज्ञानी थाय छे.
नथी. ज्ञानस्वभावी आत्मा रागथी पण जुदो छे–एम बतावीने शास्त्रो ज्ञानस्वभावनुं ज अवलंबन करावे
छे ने रागादिनुं अवलंबन छोडावे छे.–आ ज शास्त्र तात्पर्य छे, आ ज शास्त्र भणवानो गुण छे. तेनो
(एटले के भिन्नवस्तुभूत शुद्धज्ञानस्वभावी आत्माना ज्ञाननो) जेने अभाव छे तेने शास्त्र भणवाना
फळनो अभाव छे, एटले ते अज्ञानी ज छे.
आश्रय करवो.–एम करवाथी ज मोक्षनी श्रद्धा थाय छे, एम करवाथी ज शुद्धज्ञाननी श्रद्धा थाय छे, एम
करवाथी ज आत्मानी अने सर्वज्ञनी श्रद्धा थाय छे. परंतु शास्त्रोमां ज्यां व्यवहारनुं कथन आवे त्यां ते
व्यवहारनी रुचिमां ज जे अटकी जाय छे तेने शास्त्र भणतरना फळनो अभाव छे, एटले आत्मा वगेरेनुं
ज्ञान नहि होवाथी ते अज्ञानी ज रहे छे. आ रीते, जेने व्यवहारनी रुचि छे ते शास्त्र भणे तो पण अज्ञानी
ज छे; अने जेणे शुद्धात्मानी रुचि करीने तेनो आश्रय कर्यो छे तेने बीजुं शास्त्रभणतर कदाच ओछुं होय तो
पण ते सम्यग्ज्ञानी ज छे.