Atmadharma magazine - Ank 208
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : २०८
. जी िद्धस्त्र त्त्
पुस्तक उपर खास महानुभावोद्वारा प्रसिद्ध थयेलो अभिमत
वाचकोनी जाण खातर अहीं प्रगट करवामां आवे छे.
ता. ६–१०–१९६०ना जैनमित्रमां “जैन तत्त्व मीमांसा” पुस्तक उपर प्रमुख प्रमुख विद्वानोनी
सम्मतियो छपाई गई छे. त्यार पछी जे अन्य सम्मतिओ “जैनमित्र” पत्र उपर आवेली तेमांथी बे प्रमुख
सम्मति नीचे मुजब तेमां छपाई छे.
१. श्रीमान् बाबू ठाकुरदासजी बी. ए. शास्त्री (टीकमगढ) विचारक विद्वान छे. दिल्लीथी प्रकाशित
समयसारना सम्पादन संशोधनमां तेमनो मुख्य हाथ छे. तेओ लखे छे के “एक कलाक पहेला आपनी नहिं
सांभळेली अने नहि देखेली “जैन तत्त्वमीमांसा” नामे पुस्तकने जोई रह्यो छुं. पुस्तक अगाध विद्वतावाळुं
अने अनुभवथी भरेल छे. हुं तेनी रचना पर परम प्रमोदीत थई रह्यो छुं आप समयसारनुं रहस्य पण
पाम्या छो. ए उपर हुं आपने वधाई–धन्यवाद दउं छुं. आपनी विषय नियोजन शैली; भाषा पर अधिकार
आदि मने प्रफुल्लित करी रह्या छे. आपे मूल्यने पडतर कींमतथी पण अति अल्प राखीने जैन समाज सामे
महान आदर्श उपस्थित करी दीधो छे. गीताप्रेसनी उदारतामय नीतिने जैन समाज संसारमां उतारवानुं
प्रथम श्रेय आपने ज देवुं जोईए.”
(जैन मित्रमां छपाई गयुं छे ते उपरथी लीधुं छे)
र सवाईसिंधई श्री धन्यकुमारजी (कटनी) नी साहित्य संबंधी रुचि विख्यात छे. ए त्रणे भाईओ
हंमेशा दर्शन पूजन बाद नियमितरूपथी स्वाध्याय करे छे. संस्कृत अने प्राकृत भाषा उपर एमणे अधिकार
प्राप्त करी लीधो छे. तेओ पोतानी सम्मतिमां लखे छे के:–
जैन तत्त्वमीमांसा’ पुस्तक वांची प्रसन्नता थई ‘परमार्थ तत्त्व’ जे अनादिकाळ संसार व्यवहारथी
धुडमय थई रह्यो हतो तेने ऊंचे उपाडवानो वर्तमानमां आ एक प्रशंसायोग्य प्रयत्न छे. जैनधर्मनुं हार्द शुं
छे? तेना तात्त्विक सिद्धान्त केटला यथार्थ अने स्पष्ट छे ए वात पुस्तकमां विवेचित विषयोथी स्पष्ट थई
विचारनुं क्षेत्र विस्तार पामे ए भावना छे.
– धन्यकुमार जैन
कोटा (राजस्थान) निवासी. श्रीमान बाबू ज्ञानचंद्रजीद्वारा पंडितजीनी उत्तम रचना माटे सम्मति
पत्र जैनमित्र उपर आवेल होवाथी प्रकाशीत करवामां आवे छे.
आजना जैन जगतमां वस्तुस्वभावनी अजाणताने कारणे निश्चय–व्यवहार निमित्त उपादान, कर्ता–
कर्म क्रम नियमित तथा केवलज्ञान आदि चर्चानो विषय बनी गया छे.
करणानुयोगना अद्वितीय विद्वान श्री फुलचंदजीनी सिद्धांतशास्त्रीए ते ज विषयोने सन्मुख राखीने
असाधारण प्रशस्त प्रयत्नद्वारा पोतानी आन्तरीक रुचीथी जैनतत्त्वमीमांसा पुस्तक लखेल छे. कोटा
(राजस्थान) मां शास्त्रसभामां सारी रीते वांचवामां आव्युं छे. जेमां चारे अनुयोगोना तथा न्यायशास्त्रना
तात्पर्यने ध््यानमां राखीने उपरोक्त विषयने सरलता साथे स्पष्टरूपे प्रकाश नाखवानो अजोड प्रयत्न करेल
छे. हिन्दीभाषामां सर्व तात्त्विक विषयो उपर आ रीते एक साथे प्रयोजनभूत वस्तु उपर प्रकाश नाखवावाळुं
पुस्तक आज सुधीमां प्रकाशित थयुं ज नथी. आशा छे के तत्त्वजीज्ञासु ए पुस्तकनो निष्पक्षताथी वारंवार
अभ्यास करीने सत्य समजवानो अवस्य प्रयत्न करशे.–ज्ञानचंद्र