Atmadharma magazine - Ank 208
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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महा : २४८७ : १प :
१क्रम नियमित पर्याय मीमांसा२
(श्री जैन तत्त्वमीमांसा अधिकार ७).

उपादान के योगसे नियमित वरते जीव,
श्रद्धामें यों लखतही पावे मोक्ष अतीव.

१ अनेक युक्तिओ अने आगमना आश्रयथी पूर्वे अमोए बताव्युं छे के उपादाननुं कार्यरूपे परिणमन
थवाना समये ज निमित्तनुं स्थान छे, अन्य समयमां नहीं; केमके लोकमां जेने निमित्त कहीने तेने मेळववानी
वात कहेवामां आवे छे तेनी साथे सर्वदा (सदा) अने सर्वत्र (सर्वक्षेत्रे) कार्यनी व्याप्ति (फेलावापणुं) जोवामां
आवती नथी. तेथी उपादान अनुसार कार्य थवा छतां पण तेनो क्रम शुं छे तेनो अहीं विचार करवो छे.
र अमे पाछला एक प्रकरणमां ए पण लख्युं छे के, कार्यनी उत्पत्तिमां स्वभाव आदि पांच कारणोनो
समवाय (एकी साथे होवुं ते) कारण पडे छे. परंतु तेमांना स्वभाव, पुरुषार्थ, काळ अने कर्म (निमित्त)
आमांथी कोईना विषे संक्षेपथी तथा कोईना विषे विस्तारथी विचार कर्यो, परंतु कार्य उत्पत्तिना क्रम संबंधमां
हजी सुधी कांई पण लख्युं नथी तेथी अहीं ‘क्रमनियमित पर्याय’ ए प्रकरणना पेटामां तेनो विचार करवो छे.
ए तो सारी रीते निश्चित (नक्की) छे के लोकमां सर्वे कार्योना विषयमां बे प्रकारनी विचारधारा
जोवामां आवे छे.
एक विचारधारा
३ एक विचारधाराने अनुसार सर्वकार्य नियत समये ज थाय छे. जेम के सूर्यनो उदय अने अस्त
थयो ते नियत क्रम मूजब थाय छे. जे दिवसे जे समये सूर्यनो उदय थवानो नियम छे सदाय ते दिने ते समये
ज ते थाय छे. तेमां कोई परिवर्तन करी शकतुं नथी. ते ज रीते तेना अस्त थवाना समयनी व्यवस्था छे.
४ आपणे प्रथमथी ज प्रतिदिन सूर्यना उगवा तथा अस्त थवाना समयनो निश्चय ते ज आधारे करी
लईए छीए, तथा ते आधार उपरथी चंद्रग्रहण अने सूर्यग्रहणना समय अने स्थाननो पण निश्चय करी
लईए छीए. कई ऋतुमां कये दिवसे केटला कलाक मिनीट अने सेकन्डनो दिवस अथवा रात्रि थशे ते
ज्ञानपण आपणने तेनाथी थई जाय छे. ज्योतिषज्ञान अने निमित्तज्ञाननी सार्थकता पण तेमां ज छे. कोई
व्यक्तिनुं जीवन के खास घटना पंचांग के ज्योतिष ग्रंथमां लख्या होतां
१. ‘क्रम नियमित’ शब्द संस्कृत भाषानो छे. ते समयसारमां ३०८–३११ नी सं. टीकामां वापरवामां आवेल छे. डिक्षनेरी
प्रमाणे तेनो गुजराती अनुवाद “क्रमबद्ध” थाय छे. कोईपण आचार्योए गुजराती भाषामां टीका के शास्त्र रचेल नथी तेथी
‘क्रमबद्ध’ शब्द ते शास्त्रोमां न नीकळे पण गुजराती डिक्षनेरी उपरथी “क्रमनियमित” नो अर्थ “क्रमबद्ध” थाय छे. गुजराती
भाषामां ‘क्रमबद्ध’ शब्द विशेष (खास) वपराय छे. संस्कृत भाषामां के हिन्दीमां तेनो प्रचार जोवामां आवतो नथी.
र. मीमांसा–ऊंडी विचारणा तपास; समालोचना.