
करी शकाय छे अने करवामां आवे छे. तेनाथी स्पष्ट विदित थाय छे के (जाणवामां आवे छे के) जे द्रव्यनुं
परिणमन जे रूपे जे हेतुओथी (कारणोथी) ज्यारे थवुं निश्चित छे ते ए ज क्रमथी थाय छे, तेमां अन्य कोई
परिवर्तन करी शकतुं नथी.
स्वकाळने प्राप्त थवाथी ज थाय छे:–
पण संयुक्त (–अशुद्ध) द्रव्योनी सर्व अथवा केटलीक पर्यायो बाह्य निमित्तो उपर अवलंबित छे (–आधार
राखे छे), माटे तेओ सर्व पोत पोताना उपादानने अनुसार एक नियतक्रमना कारणे ज थाय छे एवो कोई
नियम नथी, कारण के तेओ बाह्य निमित्तो विना थई शकती नथी अने निमित्त पर छे, एटला माटे ज्यारे
जेवी साधन सामग्रीनो योग मळे छे तेना अनुसार तेओ थाय छे अने तेनो कोई नियम नथी के क््यारे केवी
बाह्य सामग्री मळशे; एटला माटे संयुक्तद्रव्यनी पर्यायो सुनिश्चित क्रमथी ज थाय छे एवुं कही शकातुं नथी.
आवुं मानवावाळाओनो कहेवानो अभिप्राय एम छे के संयुक्त द्रव्योनी बधी पर्यायो बाह्य साधनो पर
अवलंबित होवाथी तेमांथी केटलीक पर्यायोनो जे क्रम नियत छे तेना अनुसारे तेओ थाय छे अने वच्चे
वच्चे केटलीक पर्यायो अनियत क्रमथी पण थाय छे.
समय पण निश्चित छे. तेमज प्रतिवर्ष–(हरसाल) नी घणीखरी ऋतुओ वखतसर पण थाय छे. परंतु कोई
कोई वार बाह्य प्रकृतिनो एवो विलक्षण प्रकोप थाय छे के जेथी एनो क्रम उलट–सुलट थई जाय छे.
रह्यो छे ते एक क्षणमां बदलीने महान भारे व्यतिक्रम (–क्रमनुं बदलवुं) उपस्थित करी दे छे.
हवा, पाणी, अन्तरीक्ष अने नक्षत्र लोक–ए बधा उपर विजय प्राप्त करतो धपी रह्यो छे.
प्रमाण पण रजु करे छे. तेओ कहे छे के जो बधां द्रव्योनी पर्यायो क्रमनियत ज छे तो मात्र देव, नारकी,
भोगभूमि ज मनुष्य–तिर्यंच तथा चरम शरीरी (ते ज भवे मोक्ष जनार) मनुष्योना आयुने ‘अनपवर्त्य’
(न तूटे तेवुं) कहेवानो कोई हेतु नथी.
आदि कारणो होतां कर्मभूमिमां जन्मेला मनुष्य अने