Atmadharma magazine - Ank 208
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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महा : २४८७ : १७ :
तथा अन्य साधन प्राप्त छे के जेना आधारथी अंशे अथवा पूर्णरीते भविष्य संबंधी केटलीक घटनाओनुं ज्ञान
करी शकाय छे अने करवामां आवे छे. तेनाथी स्पष्ट विदित थाय छे के (जाणवामां आवे छे के) जे द्रव्यनुं
परिणमन जे रूपे जे हेतुओथी (कारणोथी) ज्यारे थवुं निश्चित छे ते ए ज क्रमथी थाय छे, तेमां अन्य कोई
परिवर्तन करी शकतुं नथी.
बीजी विचार धारा
१३ परंतु तेनाथी विपरीत बीजी विचारधारा ए छे के लोकमां स्थुळ अने सूक्ष्म जेटला कार्य थाय छे
ते बधां क्रम नियमित ज थाय छे एवुं कांई एकान्त नथी. कोई कार्य तो एवां थाय छे के पोत पोताना
स्वकाळने प्राप्त थवाथी ज थाय छे:–
जेम के शुद्ध द्रव्योनी प्रति समयनी (दरेक समयनी) पर्याय पोतपोताना स्वकाळे ज थाय छे, केमके
तेना थवामां कारणभूत अन्य कोई बाह्य निमित्त न होवाथी तेना स्वकाळे थवामां कोई बाधा आवती नथी.
पण संयुक्त (–अशुद्ध) द्रव्योनी सर्व अथवा केटलीक पर्यायो बाह्य निमित्तो उपर अवलंबित छे (–आधार
राखे छे), माटे तेओ सर्व पोत पोताना उपादानने अनुसार एक नियतक्रमना कारणे ज थाय छे एवो कोई
नियम नथी, कारण के तेओ बाह्य निमित्तो विना थई शकती नथी अने निमित्त पर छे, एटला माटे ज्यारे
जेवी साधन सामग्रीनो योग मळे छे तेना अनुसार तेओ थाय छे अने तेनो कोई नियम नथी के क््यारे केवी
बाह्य सामग्री मळशे; एटला माटे संयुक्तद्रव्यनी पर्यायो सुनिश्चित क्रमथी ज थाय छे एवुं कही शकातुं नथी.
आवुं मानवावाळाओनो कहेवानो अभिप्राय एम छे के संयुक्त द्रव्योनी बधी पर्यायो बाह्य साधनो पर
अवलंबित होवाथी तेमांथी केटलीक पर्यायोनो जे क्रम नियत छे तेना अनुसारे तेओ थाय छे अने वच्चे
वच्चे केटलीक पर्यायो अनियत क्रमथी पण थाय छे.
एनी पुष्टिमां तेओ लौकिक अने शास्त्रीय–बन्ने प्रकारनां प्रमाण उपस्थित रजू करे छे. लौकिक
प्रमाणोने उपस्थित करता थका, तेओ कहे छे के भारत वर्षमां छ ऋतुओनुं थवुं सुनिश्चित छे अने तेनो
समय पण निश्चित छे. तेमज प्रतिवर्ष–(हरसाल) नी घणीखरी ऋतुओ वखतसर पण थाय छे. परंतु कोई
कोई वार बाह्य प्रकृतिनो एवो विलक्षण प्रकोप थाय छे के जेथी एनो क्रम उलट–सुलट थई जाय छे.
१४ बीजुं उदाहरण तेओ अणुबोम्ब तथा हाईड्रोजन बोम्ब आदि संहारक अस्त्रोनुं रजु करे छे.
तेओनुं एम कहेवुं छे के आ प्रकारनां संहारक अस्त्रोनो प्रयोग करवाथी दुनियानो जे नियत जीवनक्रम चाली
रह्यो छे ते एक क्षणमां बदलीने महान भारे व्यतिक्रम (–क्रमनुं बदलवुं) उपस्थित करी दे छे.
१प वर्त्तमानमां जे विज्ञाननी प्रगति जोवामां आवे छे ते वडे केटलाक काळ बाद जळना स्थाने स्थळ
अने स्थळना स्थाने जळरूप विलक्षण परिवर्तन थवुं देखाडी आपे तो ते अशक््य नथी. मनुष्य तेना बळथी
हवा, पाणी, अन्तरीक्ष अने नक्षत्र लोक–ए बधा उपर विजय प्राप्त करतो धपी रह्यो छे.
१६ बाह्य सामग्री शुं करी शके छे तेना नवा नवां कार्यो प्रतिदिन थतां जोवामां आवी रह्या छे. मात्र
लौकिक उदाहरणो रजु करीने ज आ विचार धारानुं समर्थन नथी करता, पण तेओ आ संबंधमां शास्त्रीय
प्रमाण पण रजु करे छे. तेओ कहे छे के जो बधां द्रव्योनी पर्यायो क्रमनियत ज छे तो मात्र देव, नारकी,
भोगभूमि ज मनुष्य–तिर्यंच तथा चरम शरीरी (ते ज भवे मोक्ष जनार) मनुष्योना आयुने ‘अनपवर्त्य’
(न तूटे तेवुं) कहेवानो कोई हेतु नथी.
१७. ज्यारे बधां जीवोनां जन्म, मरण तथा अन्य कार्यक्रम नियमित छे त्यारे कोईना पण आयुने
‘अपवर्त्य’ (तूटे एवुं) न कहेवुं जोईए. कारण के शास्त्रोमां विषभक्षण, रक्तक्षय, तीव्रवेदना अने भय
आदि कारणो होतां कर्मभूमिमां जन्मेला मनुष्य अने