Atmadharma magazine - Ank 208
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : २०८
वीतरागी वस्तुस्वभावनुं अद्भुत वर्णन
आ ज्ञेयअधिकारमां वीतरागी वस्तुभावनुं अद्भुत वर्णन आचार्यदेवे कर्युं छे. द्रव्य स्वभावथी ज
सत् छे सत्तागुण अने द्रव्य ए बे कांई जुदी जुदी वस्तु नथी; सत्ताना अंश जुदा ने द्रव्यना अंश जुदा–एम
नथी, सत्ताना प्रदेशो जुदा ने द्रव्यना प्रदेशो जुदा–एवो प्रदेशभेद पण नथी. द्रव्य पोते ज सत्रूप छे, एक
द्रव्य ने बीजी सत्ता,–एम बे वस्तु भेगी थईने द्रव्य सत्रूप छे–एम नथी, एटले के तेमने युतसिद्धपणुं नथी,
भिन्नवस्तुपणुं नथी.
प्रश्न:– द्रव्यमां सत्ता छे, गुणीमां गुण छे–एवो भेद तो पाडवामां आवे छे ने?–तेना उत्तरमां
आचार्यदेव कहे छे के, जे गुणी छे ते गुण नथी–एवुं शास्त्रनुं वचन होवाथी द्रव्यने अने गुणने अतद्भावरूप
भेद भले हो, पण तेथी कांई ते बंने जुदी जुदी वस्तु थई जती नथी, प्रदेशभेद थतो नथी. आ एक वात छे.
वळी, बीजी वात ए छे के द्रव्य ते गुण नथी–एवो जे अतद्भावरूप भेद छे ते पण सर्वथा भेद नथी;
परंतु ज्यारे पर्यायद्रष्टि (भेदद्रष्टिथी) जोवामां आवे त्यारे ज ते भेद उन्मग्न थाय छे,–अर्थात् लक्षमां आवे
छे; परंतु ज्यारे ‘सत् ते द्रव्य ज छे’ एम द्रव्यार्थिकद्रष्टिथी जोवामां आवे त्यारे गुण–गुणीभेद अस्त थई
जाय छे– निमग्न थाय छे. अभेदद्रष्टिमां आखुं द्रव्य ज एक देखाय छे, तेमां भेद देखाता नथी. अने
पर्यायद्रष्टिथी ज्यारे भेद देखाय छे त्यारे पण ते ‘अंशीना अंशपणे ज’ देखाय छे, अंशीथी जुदापणे देखाता
नथी. भेदद्रष्टिमां पण कांई सत्ता ते द्रव्यथी सर्वथा जुदी देखाती नथी, द्रव्यना ज गुणपणे ते देखाय छे.
(अहीं जेम सत्ता अने द्रव्यनी वात करी तेम ज्ञान अने आत्मानुं पण समजवुं)
जेम ज्ञान जुदुं ने आत्मा जुदो एम नथी, आत्मा पोते ज्ञान स्वरूप छे, ज्ञान ते आत्मा ज छे,
आत्माथी कोई जुदी चीज नथी. तेम सत्ता जुदी ने द्रव्य जुदुं–एम नथी, द्रव्य पोते ज सत्स्वरूप छे, सत्ता ते
द्रव्य ज छे, द्रव्यथी जुदी कोई सत्ता नथी. एटले द्रव्यने न जोतां एकली सत्ताने जोवा जाय अथवा तो गुणीने
न जोतां एकला गुणने ज जोवा जाय तो तेने वास्तविक सत्ता के द्रव्य, अथवा गुण के गुणी कांई देखाशे नहि.
आत्माने न जोतां एकला ज्ञानने जोवा जाय तो तेने ज्ञान देखाशे नहि, केम के द्रव्यथी तद्न जुदी सत्ता के
आत्माथी तद्न जुदुं ज्ञान होतुं ज नथी. गुण हंमेशा गुणी (द्रव्य) ना आश्रये ज होय छे, एटले द्रव्यनो
आश्रय करीने ज गुणनुं वास्तविक अवलोकन थाय छे.
जुओ, आ वीतरागी वस्तुस्वभावनुं वर्णन छे. जगतना बधा द्रव्योनुं आवुं स्वरूप छे, तेने ज्ञेयपणे
जाणवानी ज्ञाननी ताकात छे. आवुं वस्तुस्वरूप जाणतां ज्ञानमां स्व–परना भेदज्ञानपूर्वकनो ‘प्रशम’
(वीतरागभाव) थाय छे,–ते ज्ञाननुं फळ छे, ने ते ज मोक्षनुं मूळ छे.
(प्रवचनसार गा. ९८ ना प्रवचनमांथी)