नथी, सत्ताना प्रदेशो जुदा ने द्रव्यना प्रदेशो जुदा–एवो प्रदेशभेद पण नथी. द्रव्य पोते ज सत्रूप छे, एक
द्रव्य ने बीजी सत्ता,–एम बे वस्तु भेगी थईने द्रव्य सत्रूप छे–एम नथी, एटले के तेमने युतसिद्धपणुं नथी,
भिन्नवस्तुपणुं नथी.
भेद भले हो, पण तेथी कांई ते बंने जुदी जुदी वस्तु थई जती नथी, प्रदेशभेद थतो नथी. आ एक वात छे.
छे; परंतु ज्यारे ‘सत् ते द्रव्य ज छे’ एम द्रव्यार्थिकद्रष्टिथी जोवामां आवे त्यारे गुण–गुणीभेद अस्त थई
जाय छे– निमग्न थाय छे. अभेदद्रष्टिमां आखुं द्रव्य ज एक देखाय छे, तेमां भेद देखाता नथी. अने
पर्यायद्रष्टिथी ज्यारे भेद देखाय छे त्यारे पण ते ‘अंशीना अंशपणे ज’ देखाय छे, अंशीथी जुदापणे देखाता
नथी. भेदद्रष्टिमां पण कांई सत्ता ते द्रव्यथी सर्वथा जुदी देखाती नथी, द्रव्यना ज गुणपणे ते देखाय छे.
(अहीं जेम सत्ता अने द्रव्यनी वात करी तेम ज्ञान अने आत्मानुं पण समजवुं)
द्रव्य ज छे, द्रव्यथी जुदी कोई सत्ता नथी. एटले द्रव्यने न जोतां एकली सत्ताने जोवा जाय अथवा तो गुणीने
न जोतां एकला गुणने ज जोवा जाय तो तेने वास्तविक सत्ता के द्रव्य, अथवा गुण के गुणी कांई देखाशे नहि.
आत्माने न जोतां एकला ज्ञानने जोवा जाय तो तेने ज्ञान देखाशे नहि, केम के द्रव्यथी तद्न जुदी सत्ता के
आत्माथी तद्न जुदुं ज्ञान होतुं ज नथी. गुण हंमेशा गुणी (द्रव्य) ना आश्रये ज होय छे, एटले द्रव्यनो
आश्रय करीने ज गुणनुं वास्तविक अवलोकन थाय छे.
(वीतरागभाव) थाय छे,–ते ज्ञाननुं फळ छे, ने ते ज मोक्षनुं मूळ छे.