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मोक्षमार्ग एक ज छे
बे के त्रण नथी
१. आ संबंधमां भगवान श्रीकुंदकुंद आचार्यदेवश्री प्रवचनसार गा. ८र ज्ञानतत्त्व प्रज्ञापन
अधिकारमां कहे छे के :–
सव्वे वि य अरहंता तेण विधाणेण खविद कम्मंसा
किश्चा तथोवदेसं णिव्वादा ते णमोतेसिं ।। ८२।।
तेनो शब्दार्थ नीचे प्रमाणे छे–
“बधाय अरहंत भगवंतो ते ज विधिथी कर्मांशोनो (ज्ञानावरणीयादि कर्म भेदोनो) क्षय करीने तथा
(अन्यने पण) ए ज प्रकारे उपदेश करीने मोक्ष पाम्या छे. तेमने नमस्कार हो.”
२. आ गाथामां रहेलुं रहस्य खोलतां टीकाकार भगवान अमृतचंद्र आचार्य फरमावे छे के:–
“अतीत काळमां क्रमश: थई गयेला समस्त तीर्थंकर भगवंतो, प्रकारांतरनो (अन्य प्रकारनो)
असंभव होवाने लीधे जेमां द्वैत संभवतुं नथी एवा आ ज एक प्रकारथी कर्मांशोनो क्षय पोते अनुभवीने,
(तथा) परमात्मपणाने लीधे भविष्य काळे के आ (वर्तमान) १ काळे अन्य मुमुक्षुओने पण ए ज प्रकारे
तेनो (कर्मक्षयनो) उपदेश करीने, निःश्रेयसने प्राप्त थया छे; माटे निर्वाणनोर अन्य (कोई) मार्ग नथी एम
नक्की थाय छे. अथवा, प्रलापथी बस थाओ: मारी मति व्यवस्थित३ थई छे. भगवंतोने नमस्कार हो.”
२
३. आगळ जतां ते ज शास्त्रना ‘ज्ञेय तत्त्व प्रज्ञापन’ नामना द्वितीय श्रुतस्कंधनी गाथा १९९मां
भगवानश्री कुंदकुंद आचार्यदेव फरमावे छे:–
एवं जिणा जिणिंदा सिद्धा मग्गं समुट्ठिदा समणा ।।
जादा णमोत्थु तेसिं तस्स व णिव्वाण मगस्स ।। १९९।।
तेनो शब्दार्थ नीचे प्रमाणे छे :–
“जिनो, जिनेंद्रो अने श्रमणो (अर्थात् सामान्य केवळीओ, तीर्थंकरो अने मुनिओ) आ रीते (पूर्वे
कहेली रीते ज) मार्गमां आरूढ थया थका सिद्ध थया. नमस्कार हो तेमने अने ते निर्वाणमार्गने.”
४. आ गाथानी टीकामां आचा्र्य श्री अमृतचंद्रजी नीचे प्रमाणे कहे छे.
१. त्रणेकाळे मोक्षमार्ग–अर्थात् धर्मनो मार्ग एक ज छे. आ पंचम काळे धर्म बीजा प्रकारे थाय एवी मान्यता भूल
भरेली छे.
र. बे मोक्षमार्ग खरेखर छे एम मानवुं–ते प्रलाप छे एम आचार्यदेव कहे छे. माटे एक ज मोक्षमार्ग मानवो ते ज
व्याजबी छे.
३. जेओ मोक्षमार्ग एकथी वधारे माने छे तेमनी मति अव्यवस्थित अर्थात् ऊंधी छे एम समजवुं. एकथी वधारे मोक्षमार्ग
मानवा–ते ‘संवर, निर्जरा अने मोक्ष’ ए त्रण तत्त्वोनी ऊंधी मान्यता छे, ऊंधी श्रद्धा छे. माटे ते श्रद्धा छोडवी.