Atmadharma magazine - Ank 208
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : २०८
“बधाय सामान्य चरम शरीरीओ, तीर्थंकरो अने अचरम शरीरी मुमुक्षुओ आ ज यथोक्त शुद्धात्मतत्त्व
प्रवृत्ति लक्षण (शुद्धात्मतत्त्वमां प्रवृत्ति जेनुं लक्षण छे एवी) विधिवडे प्रवर्तता मोक्षना मार्गने प्राप्त करीने सिद्ध
थया.
“परंतु एम नथी के बीजी रीते पण थया होय; तेथी नक्की थाय छे के केवळ आ एक ज मोक्षनो
मार्ग छे, बीजो
नथी.–विस्तारथी बस थाओ.
“ते शुद्धात्मतत्त्वमां प्रवर्तेला सिद्धोने तथा ते शुद्धात्मतत्त्वप्रवृत्तिरूप मोक्षमार्गने, जेमांथी भाव्य
भावकनो विकल्प अस्त थई गयो छे एवो नोआगमभाव नमस्कार हो.
“मोक्षमार्ग अवधारित कर्यो छे, कृत्य कराय छे. (अर्थात् मोक्षमार्ग नक्की कर्यो छे अने ते
मोक्षमार्गमां प्रवर्तन करी रह्या छीए.)”
प. ए ज शास्त्रमां चरणानुयोग सूचक चूलिका नामनो त्रीजो अने छेल्लो श्रुतस्कंध छे. आ
अधिकारमां शुं कह्युं छे ते हवे आपणे जोईए.
६. प्रथम गा. २३६नी टीकाना छेल्ला भागमां नियम कह्यो छे, त्यां जणाव्युं छे के:–
“आथी आगमज्ञान–तत्त्वार्थश्रद्धानसंयतत्त्वना युगपत्पणाने ज मोक्षमार्गपणुं होवानो नियम थाय छे.”
७. त्यार पछी ते ज अधिकारमां मोक्षमार्ग प्रज्ञापननो उपसंहार करतां गा. २४४नी टीकामां श्री
अमृतचंद्र आचार्य फरमावे छे के:–
“टीका–जे ज्ञानात्मक आत्मारूप एक अग्रने (विषयने) भावे छे, ते ज्ञेयभूत अन्य द्रव्यनो आश्रय
करतो नथी, अने तेनो आश्रय नहि करीने ज्ञानात्मक आत्मज्ञानथी अभ्रष्ट एवो ते स्वयमेव ज्ञानी
रहेतो थको, मोह करतो नथी, राग करतो नथी, द्वेष करतो नथी; अने एवो (–अमोही, अरागी, अद्वेषी)
वर्ततो थको मुकाय ज छे, परंतु बंधातो नथी.
“आथी एकाग्रताने ज मोक्षमार्गपणुं सिद्ध थाय छे.”
८. आ रीते श्री प्रवचनसारना त्रणे श्रुतस्कंधोमां
मोक्षमार्ग एक ज छे एम दांडी पीटीने जाहेर कर्युं छे.
९. श्री नियमसार शास्त्रमां पण मोक्षमार्ग एक ज होवानुं भारपूर्वक जणाव्युं छे.
१०. प्रथम जीवअधिकार–गा. २नी टीकामां कहे छे के:–
निज परमात्मतत्त्वनां सम्यक्श्रद्धान–ज्ञान–अनुष्ठानरूप शुद्ध रत्नत्रयात्मक मार्ग
परमनिरपेक्ष
होवाथी मोक्षनो उपाय छे अने ते शुद्ध रत्नत्रयनुं फळ स्वात्मोपलब्धि (निज शुद्ध आत्मानी प्राप्ति) छे.”
११. नियमसार गा. १४–१पमां स्वभाव पर्यायने निरपेक्ष भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवे कही छे. ए रीते
मोक्षमार्ग एक ज होवाथी ते परम निरपेक्ष होय छे.
४. ए वात खास लक्षमां राखवा योग्य छे के सर्वे भावलिंगी मुनिओने–भगवान कुंदकुंद आचार्य आदि सर्वेने छठ्ठे गुणस्थाने ते
भूमिकाने अनुसार चारित्रनी आशिंक शुद्धि उपरांत व्यवहार मोक्षमार्ग हतो पण ते तो चारित्रनो दोष होवाथी तेओ तेने मोक्षमार्ग
जरा पण मानता नहोता. जुओ–समयसार कलश टीका पुण्य–पाप अधिकार पानुं ११२–११३.
प. भाव्य अने भावकनो अर्थ श्री प्रवचनसार गा. ७ नी टीकामां नीचे मुजब आप्यो छे तेथी त्यांथी वांची लेवो.
६. पोते मोक्षमार्गमां प्रवृत्ति करी रहेल छे एम छद्मस्थ नक्की करी शके छे. ते सम्यक् श्रुतज्ञानवडे नक्की थई शके छे अने आचार्यदेवे
पोते पोताना श्रुतज्ञान वडे नक्की कर्युं छे एम तेओ जणावे छे. अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी अने केवळज्ञानी ज ते नक्की करी शके
ए मान्यता अयथार्थ छे.
७. व्यवहारमोक्षमार्गमां परद्रव्यनो आश्रय होय छे तेथी ते खरेखर मोक्षमार्ग नथी एम समजवुं.
८. व्यवहार मोक्षमार्गनी अपेक्षा खरा मोक्षमार्गमां होती नथी. व्यवहार मोक्षमार्ग तो परनी अपेक्षा राखे छे माटे ते मोक्षमार्ग ज नथी.