Atmadharma magazine - Ank 209
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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फागण : २४८७ : :
बंध, संवर, निर्जरा, अने मोक्ष एम सात तत्त्वनी श्रद्धा आवे छे. जीव ज्ञाता छे, शरीर, मन, वाणी
वगेरे अजीव छे, अजीवनी पर्याय (अवस्था) आवी होय तो मने ठीक पडे एम माने तो जीव अजीवनी
एकता बुद्धि थाय छे. अजीवनी पर्याय गमे ते हो, हुं तो जाणनार (ज्ञायक) छुं एम निर्णय करी अजीव
प्रत्ये जीव मध्यस्था रहे तो धर्म थाय.
प. आ वात पांच प्रकारे समजावी छे.–
(१) आधार, (२) कारण, (३) कर्त्ता, (४) प्रेरक–(करावनार), (प) अनुमोदक.
(१) शरीरादिनो आधार अचेतन द्रव्य छे, तेनो हुं आधार नथी.
६. खरेखर हुं शरीर, मन, वाणी अने तेमना स्वरूपना आधारभूत एवुं अचेतन द्रव्य नथी.
छातीमां आठ पांखडीना खीलेला कमळना आकारे सूक्ष्म परमाणुओथी बनेलु (जड) मन छे. शरीर, मन
अने वचनना आधारभूत अचेतन द्रव्य ते हुं नथी, ते मारूं नथी, शरीर, मन आदिनो आधार अचेतन द्रव्य
छे तेथी हुं तेनो आधार नथी.
७. आत्मा छे तो शरीर चाले छे–वाणी नीकळे छे. एम नथी. धर्मात्मा समजे छे के शरीरनां
स्वरूपनो, मननां स्वरूपनो अने वाणीना स्वरूपनो हुं आधार नथी, मारा (–आत्माने) आधारे शरीर ऊंचुं
थतुं नथी; जीव अजीव सदा एकबीजाथी भिन्न छे. पुद्गळनी वर्तमान पर्याय आधेय छे अने अचेतन तेनो
आधार छे. हुं जरा पण आधार नथी.
८. दरेक परमाणुमां सदा स्वतंत्र आधार नामनो गुण छे. तेना आधारे तेनी नवी नवी अवस्था
थाय छे; तेथी शरीर ऊंचु नीचुं थवुं ते आत्माने आधारे नथी.
९. मिथ्याद्रष्टि एम माने छे के शरीरादिनी अवस्था आम होय तो ठीक पडे छे. शरीरनी निरोगता ते
खरेखर धर्मनुं साधन छे एम मानी अज्ञानी तेमां एकत्व बुद्धि करे छे. आवी वाणी नीकळवी जोईए,
शरीरनी एवी अवस्था थवी जोईए एम मिथ्याद्रष्टि माने छे.
१०. मध्यस्थ एटले मध्यमां रहेलो. शरीरादिनी मध्यमां रहेलो छतां हुं असंग ज्ञाता द्रष्टा रहेल छुं.
शरीरनी के होठनी अवस्था तेना काळे ज थाय छे. हालवा चालवानी क्रिया अचेतन छे, मन–वाणी जड छे
तेनो आधार जड द्रव्य छे. मारा द्रव्यने आधारे शरीर रहेल नथी. मारा आधारे वाणी नीकळती नथी, मारा
आधारे मन रहेल नथी, आत्माना आधारे शरीरनी अवस्था थती नथी.
११. प्रथम श्रेणीनो जैन अर्थात् पहेली शरूआतनो जैन (श्रावक थवा पहेलांनो जैन) एम माने छे
के शरीर, मन, वाणीनुं आधारभूत अचेतन द्रव्य छे, ते हुं नथी.
(२) आत्मा शरीरादिनी अवस्थानुं कारण नथी
१२. हवे कारणनी वात करे छे, धर्मीजीव (सम्यग्द्रष्टि जीव) एम समजे छे के शरीर, मन, वाणी
अचेतन द्रव्य छे. तेनुं कारण अचेतन द्रव्य छे, हुं नथी शरीर चाले छे, होठ चाले छे तेनुं कारण ते अचेतन
द्रव्य छे हुं नथी क्षणिक उपादाननी योग्यताथी तेनी गति स्थिति थाय छे. निमित्तने लीधे शरीर आदिनी
अवस्था थाय छे एम माननार मिथ्याद्रष्टि छे.
१३. खरेखर आत्माना कारणपणा विना अने आत्माना आधार विना ज शरीरनी अनेक अवस्था
थाय छे. तेथी तेमना कारणपणानो पक्षपात छोडी हुं आ अत्यंत मध्यस्थ छुं परद्रव्यनी अवस्था स्वयं
(तेनाथी ज) थाय छे, रागने लीधे ईच्छाने लीधे) परनी अवस्था थती नथी. राग थाय तेनो हुं व्यवहारे
ज्ञाता द्रष्टा छुं, एम समजण करवी ते धर्म छे.