Atmadharma magazine - Ank 209
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : २०९
(३) पुद्गळनुं कर्त्तापणुं पुद्गळमां ज छे.
१४. हवे स्वतंत्र कर्त्तापणाथी बे द्रव्यनुं भेदज्ञान विचारे छे. जेम हुं पुद्गळना आधार तथा
कारणपणे नथी ए ज प्रकारे हुं स्वतंत्र एवा शरीर, मन, वाणीनुं कर्त्ता एवुं अचेतन द्रव्य नथी. ‘स्वतंत्रपणे
करे ते ज कर्त्ता’ भगवान आत्मा (दरेक आत्मा) त्रणेकाळे जाणनार स्वरूप छे. परंतु करनाररूपे नथी. हुं
स्वयं टकीने बदलनारो छुं. सामे ज्ञेय पुद्गलात्मक परमाणु अनंत छे, ते स्वयं तेनाथी टकीने बदलवानी
शक्तिवाळां छे. तेनो कर्त्ता कोई ईश्वर नथी तेमज कोई आत्मा पण तेनी अवस्थानो कर्त्ता नथी अने कारण के
कर्त्ता विना पर्याय थती नथी माटे ते पदार्थ ज तेनी पर्यायनो कर्त्ता छे केमके जे करे ते ते रूपे थाय, परिणमे ते
कर्त्ता छे. पर्याय पर्यायवानथी एकमेक होय छे. अंश अंशथी जुदो न होय; आम खरेखर कर्तृत्व पुद्गळनुं
पुद्गळमां होवाथी, हुं तेमना कर्त्तापणानो पक्षपात छोडी, (हुं) आ अत्यंत मध्यस्थ छुं.
(४) खेरखर आत्मा शरीरनी क्रियानो प्रेरक नथी
१प. आ शरीर आदिनी जे जे अवस्था थाय छे तेनो प्रयोजक कोण छे? खरेखर ते ज तेनुं प्रयोजक
छे. जो खरेखर हुं तेनो प्रयोजक होउं तो मन अचेतनपणुं आवे पण तेओ मारा विना अर्थात् हुं तेमना
कर्तृत्वनो करावनार होया विना तेओ खरेखर कराय छे. अने एवुं ज पदार्थनुं स्वरूप छे. स्वथी सत्पणे छे
परथी नथी एवुं ज्ञानमां, वाणीमां अने पदार्थमां आवे छे, सर्वत्र स्वतंत्र पदार्थनी प्रसिद्धि थई रही छे.
एकने लीधे बीजानुं कार्य माननारे पदार्थनुं स्वरूप मान्युं नथी.
१६. धर्मी जीव तो खरेखर एम माने छे के मारा कराव्या विना ज, तेओ तेना प्रयोजक छे मंडप,
मकान वगेरे जड पदार्थनी योजना एटले व्यवस्था थवी तेनो कर्त्ता जड छे, हुं तेनो करावनार नथी. तेनी
योजनानो हुं कर्त्ता नथी.
(प) आत्मा परपदार्थनी अवस्थाने अनुमोदनार नथी.
१७. हवे छेल्लो बोल कहे छे. वळी वास्तवमां, यथार्थमां हुं स्वतंत्र एवा शरीर–मन–वाणीनो कर्त्ता जे
अचेतन द्रव्य तेनो अनुमोदक नथी. शरीरादिनुं रचनार जड द्रव्य छे. तेनुं अनुमोदन करनार हुं नथी. शरीर
निरोग रह्युं ते ठीक थयुं एवी अनुमोदनापणे हुं नथी; आ वाणी आम नीकळे तो ठीक एम हुं वाणीनो
अनुमोदक थतो नथी. अर्थात् तेमां मारी संमति नथी, तेथी कर्त्ता, कारण, आधार, प्रेरक, अनुमोदकपणानो
पक्षपात हुं छोडुं छुं. हुं अत्यंत मध्यस्थ ज्ञाता छुं. निश्चयथी पुद्गळे तेनी अवस्था करी छे दरेक वस्तु
पोतेपोतानी अवस्था करे छे पण परवडे थई नथी एम अस्ति नास्तिथी दरेके दरेक वस्तुनुं परथी जुदापणुं
साबीत थवुं ते अनेकान्त छे.
१८. आ प्रमाणे जीव अजीवनुं भेदज्ञान कराव्युं. जीवनो एक पण अंश अजीवमां भेळवे के अजीवनो
एक पण अंश अजीवमां भेळवे के अजीवनो एक पण अंश जीवमां भेळवे तो जीवने जीव अजीवनुं भेदज्ञान
कदी थाय नहीं. अने जेने आवुं भेदज्ञान न थाय ते जीवना त्रिकाळी स्वरूप अने आस्रवनुं भेदज्ञान कदी करी
शके नहीं एम समजवुं.
।। १६०।।
ङ्क