फागण : २४८७ : ११ :
निश्चय–व्यवहार मीमांसा
(जैन तत्त्व मीमांसा अधिकार नं. ९)
होता परके योगसे भेदरूप व्यवहार,
द्रष्टि फिरे निश्चय १लखे एकरुप निरधार.
१. कुल द्रव्य छ छे:–जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म आकाश अने काळ. तेमांथी छेल्लां चार द्रव्य एकक्षेत्रा
वगाही होवा छतां पण सदाकाळ संश्लेष–(चोंटवारुप चीकाश)ने कारणे थती बंधरूप संयोगी पर्याय तेनाथी
रहित ज रहे छे, परन्तु जीवो अने पुद्गलोनी चाल (पद्धति) तेनाथी भिन्न छे. जे जीवो संयोगरुप
बंधपर्यायथी मुक्त थई गया छे ते तो मुक्त थयाना क्षणथी सदाकाळ संश्लेषरुप बंधथी रहित थईने ज रहे
छे अने जे जीव हजु मुक्त थया नथी तेओ वर्तमानमां तो संश्लेषरूप बंधथी युक्त (जोडायेला) ज छे,
भविष्यमां पण ज्यां सुधी तेओ मुक्त नहि थाय त्यां सुधी तेओनी आ संश्लेषरूप आ बंधपर्यायनो अंत
थवो ज जोईए एवो एकान्त नियम नथी, केम के जेओ अभव्य अने अभव्यो समान ज भव्य छे तेमने तो
आ संश्लेषरूप बंधपर्यायनो कदी अंत थतो नथी; हा, जे तेनाथी जुदा भव्य जीवो छे तेओ कदीने कदी आ
संश्लेषरूप बंधपर्यायनो अंत करीने अवश्य ज मुक्तिने पात्र बनशे. आ प्रमाणे बधा जीवोनी व्यवस्था छे.
पुद्गलोनी व्यवस्था पण आ ज प्रकारनी छे. तफावत मात्र एटलो छे के घणांय पुद्गल सदाकाळ बंध–मुक्त
रहे छे, घणांय पुद्गळ सदाकाळ बंधनबद्ध (–बंधनथी बंधाएलां) रहे छे अने घणांय पुद्गळ बंधाईने छूटी
जाय छे अने छूटीने फरी बंधाय पण जाय छे. (जीवमां तेम नथी)
२. आ तो आ लोकमां* कयुं द्रव्य कया रुपमां अवस्थित छे तेनो विचार थयो. हवे कारण–कार्यनी
द्रष्टिथी ए द्रव्योथी जे स्थिति छे ते उपर संक्षेपथी प्रकाश नाखवामां आवे छे.
३. जे धर्मादि चार द्रव्य, शुद्ध जीव तथा पुद्गल परमाणु छे तेमनी सर्वपर्यायो परथी निरपेक्ष थाय छे
अने जे पुद्गल स्कंध (बंधायेलोपिंड) तथा संसारी जीव छे तेमनी पर्यायो स्वपर सापेक्ष थाय छे. आ छ
द्रव्योनी परनिरपेक्ष पर्यायोनुं नाम ‘स्वभाव पर्याय’ छे तथा जीवो अने पुद्गलोनी जे स्वपर सापेक्ष
पर्यायो थाय छे तेनुं नाम ‘विभावपर्याय’ छे. आ छ ए द्रव्योनी अर्थपर्यायो अने व्यंजन पर्यायो थवामां
आ ज एक नियम जाणी लेवो जोईए. एटलुं अवश्य छे के संसारी जीवोनी पण स्वभाव सन्मुख थईने जे
गुणनी जे स्वभावपर्याय प्रगट थाय छे ते पण परनिरपेक्ष थाय छे.
४. टूंकामां आ प्रकरणमां उपयोगी आ ज्ञेयतत्त्वमीमांसा छे. जे ज्ञान हीनता–अधिकता रहित, संशय,
विपर्यय अने अनध्यवसाय (अनिर्धार, अचोकसता) रहित थईने तेने (ज्ञेयतत्त्वने) ते ज रुपे जाणे छे ते
सम्यग्ज्ञान छे.
१–जाणे.
* आ–प्रत्यक्ष; विद्यमान छ द्रव्यना समूहने लोकजगत–विश्व कहेल छे; जेमां जीवादि छ द्रव्यो जोवामां आवे छे तेने लोक कहे
छे.