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छे ते रूपे जाणवामां आवे छे ते ज प्रकारे नयज्ञाननुं प्रयोजन पण यथावस्थित वस्तुनुं ज्ञान कराववानुं छे.
आचार्य श्री पूज्यपाद सर्वार्थसिद्धि (अ. १. सू. ३३)मां कहे छे के:–
लक्षण करतां नयचक्रमां आवुं वचन आवे छे के– “वस्तुना एक अंशने ग्रहण करवावाळो जे ज्ञानीनो विकल्प
(व्यापार) होय छे के जे श्रुतज्ञाननो एक भेद छे तेने अहीं नय कहेवामां आवेल छे, अने जे नयज्ञाननो
आश्रय करे छे ते ज्ञानी छे.” १७४.
“कारण के नय विना मनुष्यने स्याद्वादनी प्रतिपत्ति–(प्रतीति) थती नथी तेथी जे एकान्तना आग्रहथी मुक्त
थवा मागे छे तेने नय जाणवा योग्य छे.” १७प.
मुख्यता छे” १७६.
मानवानी शी जरूर छे? समाधान एम छे के जे कांई वचनप्रयोग थाय छे ते नयस्वरूप ज होय छे. लोकमां
एवुं एक पण वचन होतुं नथी के जे खास धर्मवडे वस्तुनुं प्रतिपादन न करतुं होय. उदाहरणरूपे ‘द्रव्य’ शब्द
ज लईए. तेने आपणे ‘जे गुण–पर्यायवाळुं होय’ के ‘उत्पाद, व्यय अनेघ्रौव्य सहित होय’ आ अर्थमां रूढ
करीने द्रव्यनी व्याख्या करीए छीए पण तेनो यौगिक अर्थ ‘जे द्रवे छे अर्थात् अन्वित होय छे ते द्रव्य’ ए
ज थाय छे, माटे जेटलो वचनव्यवहार छे ते तो नयरुप ज छे. तो पण आपणे प्रमाणसप्तभंगीना दरेक
भंगमां कोई ठेकाणे स्यात् शब्द वडे अभेदवृत्ति करीने अने कोई ठेकाणे ते ज वडे अभेद उपचार करीने ते
सर्व भंगोना समुदायने प्रमाणसप्तभंगी कहीए छीए.
बाकीना पांच भंग क्रमथी अक्रमथी (एक साथे) बन्ने नयोनी मुख्यताथी कहेवामां आवे छे, माटे तेमां ए
ज विधिथी अभेदवृत्ति अने अभेदउपचारनी मुख्यता रहे छे. दरेक वचन नयस्वरूप ज होय छे पण ते
वक्तानी विवक्षा (कहेवानो ईरादो) उपर आधार राखे छे के ते कये ठेकाणे, कया वचननो, कया अभिप्रायथी
प्रयोग करी रहेल छे. तेथी तत्त्व अने तीर्थनी स्थापना