Atmadharma magazine - Ank 209
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : २०९
करवा माटे नयोनी आवश्यकता छे. एम अहीं समजवुं जोईए.
ए तो अमे पहेलां ज बतावी दीधुं छे के दरेक द्रव्य न सामान्य स्वरुप छे तथा न विशेष स्वरुप ज
छे, परन्तु ते उभय स्वरुप छे. तेथी ते द्वारा ते वस्तुने ग्रहण करवावाळा नय पण बे प्रकारना छे–द्रव्यार्थिक
अने पर्यायार्थिक.
१८. जे विकल्पज्ञान पर्यायने गौण करीने द्रव्यना सामान्य अंश द्वारा तेने (द्रव्यने) जाणे छे ते
द्रव्यार्थिक नय छे अने जे विकल्पज्ञान सामान्य अंशने गौण करीने द्रव्यना विशेष अंश द्वारा तेने जाणे छे ते
पर्यायार्थिक नय छे. आम सर्वनयोना आधाररुप मुख्य नय बे ज छे अने तेना आश्रये प्रवृत्त थवावाळो
वचन व्यवहार पण बे प्रकारे प्रवृत्त थाय छे. द्रव्यना सामान्य अंशने मुख्य करीने तथा विशेषअंशने गौण
करीने प्रवृत्त थवावाळो वचनव्यवहार अने द्रव्यना विशेषअंशने मुख्य करीने तथा सामान्य अंशने गौण
करीने प्रवृत्त थवावाळो वचन व्यवहार.
१९. शब्दादिक त्रण नय पण पर्यायार्थिक नयना पेटाभेद मानवामां आव्या छे, तेथी आ उपरथी कोई
आ शंका करे के ज्यारे द्रव्यना सामान्य अंशनुं प्रतिपादन करवावाळुं कोई वचन ज होतुं नथी एवी
अवस्थामां द्रव्यना सामान्य अंशने मुख्य अने विशेष एशने गौण करीने प्रवृत्त थवावाळो वचन व्यवहार
होय छे. एवुं कथन केम करवामां आव्युं छे? तो तेना द्वारा एवी शंका करवी बराबर नथी, केमके शब्दादिक
नयोमां एक अर्थमां
[व्याकरण शास्त्र कथित] लिंगादिना भेदथी जे शब्द प्रयोग थाय छे अथवा रौढिक
(रूढि संबंधी) अने यौगिक अर्थमां ज शब्द वपराय छे ते कये ठेकाणे, कया रूपमां मान्य छे एटलो ज
विचार करवामां आवे छे. ज्यारे प्रकृतमां (वास्तविक; असलमां) जे कोई वचन व्यवहार थाय छे तेमां कोण
वचन व्यवहार द्रव्यना सामान्य अंशने मुख्य अने विशेष अंशने गौण करीने प्रवृत्त थयो छे तथा कोण
वचन व्यवहार द्रव्यना विशेष अंशने मुख्य अने सामान्य अंशने गौणकरीने प्रवृत्त थयो छे तेनो विचार
करवामां आव्यो छे. तात्पर्य ए छे के पर्यायनी द्रष्टिथी कया अर्थमां कया प्रकारनो वचनप्रयोग करवो बराबर
छे ए विचार शब्दादिक नयोमां करवामां आवे छे तथा आ विषयमां तो जे कोई वचनव्यवहार थाय. छे ते
कयां कई अपेक्षाथी करवामां आवेल छे ए द्रष्टि मुख्य छे. माटे उपर कहेल बन्ने कथनोमां कोई विरोध न
मानवो जोईए.
२०. आ रीते मुख्य नय बे छे–द्रव्यार्थिक अने पर्यायार्थिक नय. आगममां नयोना नैगम आदि जे
सात भेद जोवामां आवे छे ते बधा ए ज बे नयोना पेटा भेद छे. मात्र नैगमनयना विषयमां विशेष कहेवा
योग्य छे जे अन्य स्थानोथी जाणी लेवुं जोईए. विशेष प्रयोजन न होवाथी तेनी अहीं मीमांसा करशुं नहि.
२१. नयद्रष्टिथी विभाग पाडीने पदार्थोने जाणवानी आ एक पद्धति छे. ए उपरान्त वस्तुस्वभाव
अने कार्य–कारण परम्परा सहित पदार्थोने जाणवानी एक बीजा नयपद्धति छे के जे मोक्षमार्गमां खास
प्रयोजनवाळी होवाथी ‘अध्यात्मनय’ शब्दद्वारा कहेवामां आवे छे.
२२. कहेवानो भाव ए छे के जे ठेकाणे शब्द व्यवहारनी मुख्यताथी के तेनी मुख्यता कर्या विना
उपचरित अने अनुपचरित (–निश्चय) कथनने समनभावे स्वीकारी करीने द्रव्य, गुण अने पर्यायनी द्रष्टिथी
सर्व पदार्थोना भेदाभेदनो विचार करवामां आव्यो छे ते ठेकाणे एवो विचार करवा माटे नैगमादि नयोनी
पद्धति स्वीकार करी छे, पण ज्यां आत्मसिद्धिमां प्रयोजनवान द्रष्टिने प्राप्त करवा माटे कोण कथन उपचरित
छे अने कोण कथन अनुपचरित छे तेनी मीमांसा करवामां आवी छे त्यां बीजी नयपद्धति स्वीकारवामां
आवी छे, आ प्रकरणमां बीजी नय पद्धतिनी मीमांसा करवी मुख्य प्रयोजन होवाथी तेना ज आश्रये विचार
करे छे:
[क्रमश:]
(जैन तत्त्वमीमांसा पृ. १९६.)