Atmadharma magazine - Ank 209
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : २०९
२१. जिनप्रतिमा ए माटे छे के जेने वीतराग परमात्मानो प्रेम छे, ओळखाण छे तेने तेनुं स्मरण
अने बहुमान करवा माटे तृष्णा घटाडी वीतराग परमात्मा केवा हता अने तेवुं केम थवाय तेनी प्रतिकृतिरूपे
(परमात्मानी निर्दोष मूर्तिरूपे) स्थापना छे, जेने पूर्वना पून्यथी संपदा मळी छे ते रत्नोनी पण
जिनप्रतिमा बनावे छे. दक्षिणमां मुडबीद्रीमां दरेक जातना उत्तम रत्नोनी पन्ना, निलम अने मोतीनी
जिनप्रतिमा छे पण आ जीवनो धर्म तेमां नथी, त्यांथी मळतो नथी.
२२. अंदरमां ज्ञानद्रारा ओळखाण करे के आत्मा ज सम्यक्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी मूर्ति छे. तेनाथी ज
मोक्ष अने मोक्षनो उपाय मळे छे. अंदरमां त्रिकाळी शुद्ध आत्मा छे तेनुं ज्ञान करी तेमां एकतानो अनुभव
करवो ते सम्यकदर्शन रत्न छे. तेनुं ज्ञान करवुं ते सम्यज्ञानरूपी रत्न छे अने तेमां एकाग्रताद्वारा
सम्यकलिनता (आनंदना मोजा उछाळवा) ते सम्यकचारित्र रत्न छे. त्रणेकाळे आ ज मोक्षना कारणरूप
रत्नत्रय छे, ने ते ज उत्तम रत्न छे. ते ज शरण छे.
२३. धीरेन्द्र नामे विद्यार्थी तळावमां डूबी गयो. २४ कलाके मडदुं हाथमां आव्युं त्यां देहनी दशा तो
थवानी हती ते ज थाय छे. तेने धर्मनो प्रेम हतो. तुं नित्य चिदानंद प्रभु छो, तने देह शरण नथी एवुं भान
अने जागृति राखे तो साचुं समाधान थाय. अने आवा समाधाननी भावना तेने हती. दवाना कबाट भरी
राखे अने माने के आम थशे तो आम उपाय करशुं, आ दवा काम आवशे ए बधी भ्रमणा छे, केमके ते कोई
शरणदाता नथी. सम्यकरत्नत्रयरूपी आ आत्मा ज शरण छे.
२४. आ वात सूक्ष्म छे; जेम झीणा मोती पकडवामां सांणसा न काम आवे तेम अतीन्द्रिय ज्ञानमूर्ति
आत्माने समजवामां पुन्यपाप अने देह तरफनी जे स्थूळ द्रष्टि छे ते न काम आवेु. शरीर तो बारदान छे.
स्थूळ छे. चैतन्य सूक्ष्म छे तेने समजवा माटे सूक्ष्म बुद्धि जोईए.
२प. श्रीमद् राजचंद्रजीए कह्युं छे के नित्य सूक्ष्मबोधनो अभिलाषी जीव धर्म पामवाने पात्र छे
स्थूळबुद्धि तेमां चाले नहीं.
२६. केटलाक कहे छे के आवुं झीणुं समजीने शुं काम छे, रागद्वेष पातळा पाडो ने, पण ए मान्यता
खोटी छे, जेम झाडना सुकववा माटे उपरथी पांदडां तोडे तो फरी पांगरे पण झाड सुकाय नहीं; पण मूळ कापी
नांखे तो अल्पकाळमां पांदडां साथे झाड सुकावा लागे छे; तेम संसारभ्रमणनुं मूळ मिथ्यामान्यता छे, तेने
महापाप जाणी टाळवानो उपाय न करे अने बाह्यक्रिया तथा व्रतादि–पूजा भक्तिना शुभभाव करवामां
लागी जाय तो तेथी कांई संसार घटे नहीं.
२७. जेम अंधारूं टाळवुं पडतुं नथी, प्रकाश करतां ज अंधारूं टळे छे, तेम साचुं ज्ञान करवां ज
मिथ्यात्व अने अज्ञान टळे छे. पछी आत्मानुभवनी दशा वधतां क्रमे क्रमे राग टळे छे.
२८ जेणे आत्मानी निर्मळ श्रद्धा–ज्ञानअने अनुभवदशा प्रगट करी नथी पण मात्र कषाय पातळा
पाडी पून्य बांधे छे तेने मिथ्यात्व होवाथी अल्पकाळमां पाप वधी जाशे अने ते पुण्प्यनी स्थिति तोडी हलकी
गतिमां जशे.
२९. पण एकवार जेणे स्वतंत्रतत्त्वनुं यथार्थ भान प्रगट कर्युं. (स्वतंत्रद्रष्टि प्रगट करीने) ते जीव
मोक्ष लीधे ज रहेशे. तेने तेमां लांबो काळ लागे नहीं.–धर्मी जीव मोक्षमार्गनुं स्वरूप जाणे छे, तेने साधनारा
मुनि प्रत्ये आहारदान देवानी भावना भावे छे. तेमां वीतरागी धर्म अने ते मोक्षमार्गने धारण करनारा
प्रत्ये पीछाण अने प्रेम होय छे; तेथी मुनिने आहारदान देनारे मोक्षमार्ग टकावी राख्यो छे एम निमित्तथी
परंपरानुं एवुं ज्ञान कराव्युं के, मुनि