Atmadharma magazine - Ank 209
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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फागण : २४८७ : १९ :
धर्मी छे, तेने संयममां शरीर निमित्त छे. तेने आहार निमित्त अने आहारदानदाता श्रावक तेने
निमित्त छे ए अपेक्षाए श्रावकोए मोक्षमार्ग टकावी राख्यो छे एम कहेवाय छे. ए बधाने निमित्त त्यारे
कहेवाय छे के सामे निश्चय उपादानमां धर्मपणुं होय तो–अने तोज धर्मनी पुष्टिवाळाने संयमनुं व्यवहारे
साधन कहेवाय बीजा दानना प्रकारो करतां उत्तमपात्रने आहारदानमां विशेषपणे रागनी मंदता छे–शरीर
पुष्ट रहे तो धर्म पुष्ट थाय ए वात नथी; पण दाताना गुण धरावनार गृहस्थने पात्रदानमां विशेष भकित
होय छे, उपरान्त ओळखाण होय छे; तेने अतीन्द्रिय आनंदनो आदर होवाथी साधना करनारा मोक्षमार्गी
मुनि प्रत्ये तेने विशेष आदर होय छे.
३०. धर्मी जीवने पंचपरमेष्टी प्रत्ये भक्ति आव्या विना रहे नहि, आचार्य देव एकवार भक्तिना
अधिकारमां अलंकारथी उपमा आपतां कहे छे के तीर्थंकर परमात्मा थया तेमने ओळखीने तेमना गुणग्राम
सुंदर रागरागणीथी उपर चंद्रलोकमां किन्नरीओ पण गाय छे एम याद करीने आकाशमां चंद्र नीचे हरणनुं
चिन्ह छे तेने उदेशीने कहे छे के हे प्रभु! आहरण मृत्यु लोकमांथी उडीने त्यां आपनी भक्तिना गीत
सांभळी रह्युं छे,–एम हुं तो जोउं छुं, वळी भक्तो कहे छे के:–
“हरतां फरतां प्रगट हरी देखुं रे
मारू जीवन सफळ तव लेखुं रे
मुकतानंदनो नाथ विहारी रे
शुद्ध जीवन दोरी अमारी रे.”
मिथ्यात्वादि पापना ओधने आत्मानी निर्मळता वडे हरे तेने हरी कहेवाय छे; एम अंर्तमुखद्रष्टि
राखी ज्यां त्यांथी आत्माने ज नजरमां राखे छे एम वीतराग प्रत्येनी भक्ति उछळे छे, ते पण एक प्रकारनुं
दान छे.
३१. गृहस्थदशामां जेने ओळखाण सहितनी भक्ति छे तेओ पण गाय छे के–“हुं तो हालुं चालुंने
प्रभु सांभरे रे, मारूं चालवुं ते अटकी जाय प्रभु मने सांभरे रे.” एम रात दिवस निश्चयना भान सहितनी
भक्तिनो भाव होय छे.
३२.जेम पति परदेशमां घणा वरसथी रहेतो होय पछी स्त्री कागळ लखे के शरीरनुं खोळीयुं अहीं
पड्युं छे अने मारूं मन रात दिवस तमारी पासे रहे छे केमके ते वातनी प्रीति छे, तेम धर्मी जीवने धर्मात्मा
प्रत्ये, वीतरागी देव–गुरू अने शास्त्रो प्रत्ये, जिनप्रतिमा, जिनमंदिर–पंचपरमेष्टी प्रत्ये, विशेष प्रेम होय छे,
तेने लीधे भक्ति उछळे छे–प्रभु तमो आ काळे साक्षात नथी तेनो अमने विरह लागे छे तेथी याद करीने कहे
छे के–
“भरतक्षेत्र मानवपणोजी ने प्रभु लाध्यो दूषमकाळ, चौद पूरवधर विरहथी दुलहो साधन चाल्यो
चंद्राननजिन सांभळजो अरदास” एम अनेक प्रकारे त्रीलोकीनाथ सर्वज्ञ परमात्मानी भक्ति उछाळे छे.
३३. सम्यकदर्शन आत्मानी निश्चय भक्ति छे; तेवा जीवो जिनेश्वर देवनी भक्ति–स्मरण,
अल्हादपूर्वक पूजा, प्रभावना अने दानना निमित्ते प्रेमनी भरती उछाळे छे, अने पंचपरमेष्टिने याद करे छे.
जेम रात्रे सुवाना टाईमे पोताना घरमां १० छोकरा नानामोटा होय तेमां एक न आव्युं होय तो याद करे छे
के नहि? न आवे त्यां सुधीय तेनो विरह अंदरथी वेदाय छे, तेम धर्मीने परमात्मा प्रत्ये, संतो प्रत्ये प्रीति
पूर्वक भक्ति छे तेथी तेमना विरहमां तेमनी परोक्ष भक्ति पण करे छे. आ काळे देवाधिदेव तीर्थंकर प्रभुना
विरममां धर्मीजीवने पंचकल्याणक प्रतिष्ठा उत्सवपूर्वक भक्ति उछाळे छे. विरह वेदाय छे एम न माने तेने
धर्मनी भूमिकानी खबर नथी.