कहेवाय छे के सामे निश्चय उपादानमां धर्मपणुं होय तो–अने तोज धर्मनी पुष्टिवाळाने संयमनुं व्यवहारे
साधन कहेवाय बीजा दानना प्रकारो करतां उत्तमपात्रने आहारदानमां विशेषपणे रागनी मंदता छे–शरीर
पुष्ट रहे तो धर्म पुष्ट थाय ए वात नथी; पण दाताना गुण धरावनार गृहस्थने पात्रदानमां विशेष भकित
होय छे, उपरान्त ओळखाण होय छे; तेने अतीन्द्रिय आनंदनो आदर होवाथी साधना करनारा मोक्षमार्गी
मुनि प्रत्ये तेने विशेष आदर होय छे.
सुंदर रागरागणीथी उपर चंद्रलोकमां किन्नरीओ पण गाय छे एम याद करीने आकाशमां चंद्र नीचे हरणनुं
चिन्ह छे तेने उदेशीने कहे छे के हे प्रभु! आहरण मृत्यु लोकमांथी उडीने त्यां आपनी भक्तिना गीत
सांभळी रह्युं छे,–एम हुं तो जोउं छुं, वळी भक्तो कहे छे के:–
मुकतानंदनो नाथ विहारी रे
शुद्ध जीवन दोरी अमारी रे.”
दान छे.
भक्तिनो भाव होय छे.
प्रत्ये, वीतरागी देव–गुरू अने शास्त्रो प्रत्ये, जिनप्रतिमा, जिनमंदिर–पंचपरमेष्टी प्रत्ये, विशेष प्रेम होय छे,
तेने लीधे भक्ति उछळे छे–प्रभु तमो आ काळे साक्षात नथी तेनो अमने विरह लागे छे तेथी याद करीने कहे
छे के–
जेम रात्रे सुवाना टाईमे पोताना घरमां १० छोकरा नानामोटा होय तेमां एक न आव्युं होय तो याद करे छे
के नहि? न आवे त्यां सुधीय तेनो विरह अंदरथी वेदाय छे, तेम धर्मीने परमात्मा प्रत्ये, संतो प्रत्ये प्रीति
पूर्वक भक्ति छे तेथी तेमना विरहमां तेमनी परोक्ष भक्ति पण करे छे. आ काळे देवाधिदेव तीर्थंकर प्रभुना
विरममां धर्मीजीवने पंचकल्याणक प्रतिष्ठा उत्सवपूर्वक भक्ति उछाळे छे. विरह वेदाय छे एम न माने तेने
धर्मनी भूमिकानी खबर नथी.