Atmadharma magazine - Ank 209
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : २०९
क्रम नियमित पर्याय मीमांसा
(श्री जैन तत्त्वमीमांसा अधिकार ७).
क्रमांक २०८ थी चालु
२२. बधाने ज्ञानावरण कर्मनो क्षयोपशम एक समान नथी होतो, माटे बधा एक सरखुं भणी शकता
नथी एम कहेवुं ते बराबर (मानवामां आवतुं) नथी, केमके तेमां पण ए ज प्रश्न थाय छे के ज्यारे बधाने
एक समान बाह्य सामग्री सुलभ छे त्यारे बधाने एक समान क्षयोपशम केम नथी थतो?
२३. जे लोको बाह्य सामग्रीने कार्यनी उत्पादक माने छे तेमने अंते तो आ प्रश्ननो बराबर उत्तर प्राप्त
करवाने माटे “योग्यता” उपर ज आववुं पडे छे. त्यारे ए ज मानवुं पडे छे के ज्यारे योग्यतानो पुरुषार्थ
द्वारा कार्यरूप परिणमन थवानो स्वकाळ आवे छे त्यारे तेमां निमित्त थवावाळी थवानो स्वकाळ आवे छे
त्यारे तेमां निमित्त थवावाळी बाह्य साधन सामग्री पण मळी जाय छे. कोई ठेकाणे ते साधन सामग्री
अनायास मळे छे अने कोई ठेकाणे ते प्रयत्नसापेक्ष मळे छे. पण ते मळे छे अवश्य. ज्यां प्रयत्न सापेक्ष मळे
छे त्यां तेना निमित्तथी थवावाळा ते कार्यमां प्रयत्ननी मुख्यता कहेवामां आवे छे अने ज्यां प्रयत्न विना
मळे छे त्यां दैवनी मुख्यता कहेवामां आवे छे. उपादाननी द्रष्टिथी कार्य उत्पादनमां समर्थ योग्यतानो स्वकाल
बन्ने जग्याए अनुस्यूत (अन्वयपूर्वक जोडायेल) छे ए निश्चित (नक्की) छे.
२४. शास्त्रोमां अभव्य द्रव्य मुनिओनां घणां उदाहरण आवे छे. चरणानुयोगमां द्रव्य संयम
पाळवानी जे विधि बतावी छे ते अनुसार तेओ आचरण करवा छतां पण भावसंयमने पात्र केम थता
नथी? तेमनामां कई वातनी खामी छे? उत्तररूपे ए ज मानवुं पडे छे के तेमनामां रत्नत्रयने (सम्यक्–
दर्शन–ज्ञान–चारित्रने) उत्पन्न करवानी योग्यता ज नथी. तेथी तेओ तपश्चरण आदि व्यवहार साधनमां
अनुरागी थईने प्रयत्न भले करता होय पण मोक्षने अनुरूप सम्यक् पुरुषार्थना तेओ अधिकारी न होवाथी,
न तो भाव संयमने पात्र थाय छे तेमज न मोक्षने पण पात्र थाय छे.
२प. आ प्रकारे आ उदाहरणने द्रष्टिपथमां राखीने जो आपणे आपणां अंतःचक्षुओने खोलीने
जोईए तो आपणने सर्वत्र आ योग्यतानुं ज साम्राजय जोवामां आवे छे. तेना होवाथी जेने लोकमां
नानामां नानुं निमित्त कहेवामां आवे छे ते पण कार्यनी उत्पत्तिमां साधक बनी जाय छे अने तेना अभावे
जेने मोटामां मोटुं निमित्त कहेवामां आवे छे ते पण बेकार (व्यर्थ–नकामुं) साबित थाय छे.
कार्योत्पत्तिमां उपादानमां रहेली योग्यतानुं पोतानुं मौलिक स्थान छे.
२६. शास्त्रोमां आपे “तुषमासभिन्न”नी कथा पण वांची हशे. ते प्रतिदिन गुरुनी सेवा करे छे, २८
मूळ गुणोनुं नियमित रीते पालन करे छे छतां पण तेमने द्रव्यश्रुतनी प्राप्ति नथी थती, एटलुं ज नहि ते