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एक समान बाह्य सामग्री सुलभ छे त्यारे बधाने एक समान क्षयोपशम केम नथी थतो?
द्वारा कार्यरूप परिणमन थवानो स्वकाळ आवे छे त्यारे तेमां निमित्त थवावाळी थवानो स्वकाळ आवे छे
त्यारे तेमां निमित्त थवावाळी बाह्य साधन सामग्री पण मळी जाय छे. कोई ठेकाणे ते साधन सामग्री
अनायास मळे छे अने कोई ठेकाणे ते प्रयत्नसापेक्ष मळे छे. पण ते मळे छे अवश्य. ज्यां प्रयत्न सापेक्ष मळे
छे त्यां तेना निमित्तथी थवावाळा ते कार्यमां प्रयत्ननी मुख्यता कहेवामां आवे छे अने ज्यां प्रयत्न विना
मळे छे त्यां दैवनी मुख्यता कहेवामां आवे छे. उपादाननी द्रष्टिथी कार्य उत्पादनमां समर्थ योग्यतानो स्वकाल
बन्ने जग्याए अनुस्यूत (अन्वयपूर्वक जोडायेल) छे ए निश्चित (नक्की) छे.
नथी? तेमनामां कई वातनी खामी छे? उत्तररूपे ए ज मानवुं पडे छे के तेमनामां रत्नत्रयने (सम्यक्–
दर्शन–ज्ञान–चारित्रने) उत्पन्न करवानी योग्यता ज नथी. तेथी तेओ तपश्चरण आदि व्यवहार साधनमां
अनुरागी थईने प्रयत्न भले करता होय पण मोक्षने अनुरूप सम्यक् पुरुषार्थना तेओ अधिकारी न होवाथी,
न तो भाव संयमने पात्र थाय छे तेमज न मोक्षने पण पात्र थाय छे.
नानामां नानुं निमित्त कहेवामां आवे छे ते पण कार्यनी उत्पत्तिमां साधक बनी जाय छे अने तेना अभावे
जेने मोटामां मोटुं निमित्त कहेवामां आवे छे ते पण बेकार (व्यर्थ–नकामुं) साबित थाय छे.
२६. शास्त्रोमां आपे “तुषमासभिन्न”नी कथा पण वांची हशे. ते प्रतिदिन गुरुनी सेवा करे छे, २८