फागण : २४८७ : प :
“तुषमासभिन्न” पाठनुं रटन करता थका केवळी तो थई जाय छे पण द्रव्यश्रुतनी प्राप्ति थती नथी, शा
माटे? कारण के तेमनामां द्रव्यश्रुतने उत्पन्न करवानी योग्यता न हती. एना सिवाय जो बीजुं कोई कारण
होय तो बतावो. आथी कार्यनी उत्पतिमां योग्यतानुं शुं स्थान छे तेनो सहज ख्याल आवी जाय छे.
२७. श्री जयधवलामां भगवान महावीरने केवळज्ञान थया पछी ६६ दिवस सुधी दिव्यध्वनि केम न
छूटयो ए प्रश्न रजू करी कहेवामां आव्युं छे के गणधरदेव न होवाथी दिव्यध्वनि न छूटयो. आना उपर फरीने
प्रश्न करवामां आव्यो छे के देवेन्द्रे ए समये गणधरने शा माटे हाजरन कर्यो? आनुं जे समाधन करवामां
आव्युं छे तेनो भाव ए छे के काळलब्धि विना देवेन्द्र गणधरने हाजर करवामां असमर्थ हता. आथी पण
कार्य उत्पत्तिमां उपादानमां रहेली योग्यतानुं सर्वोपरि स्थान छे तेनुं ज्ञान थई जाय छे. जयधवलानुं ते हार्द
आ प्रकारे छे–
“दिव्वज्झुणीए किमट्ठं तत्थापउत्तो? गणिंदाभावादो। सोहम्मिंदेण तक्खणे चेव गणिंदो किण्ण
ढोइदो? ण, काललद्धीए विणा असहेञ्जस देविंदस्स तड्ढोयणसत्तीए अभावादो।
२८. ते योग्यता कोई उपादानमां होय अने कोई उपादानमां न होय एवुं नथी. पण एवुं छे के दरेक
समयना अलग अलग जेटला उपादान छे तेटली योग्यताओ पण छे, केमके एना विना एक कार्यना
उपादानथी बीजा कार्यना उपादानमां भेद करवो संभवतो नथी. कारण के एक उपादाननुं कार्य बीजा
उपादानना कार्यथी भिन्न होय छे. तेथी कार्यभेदने अनुसार उपादानभेदनी नियामक तेनी स्वतंत्र योग्यता
मानवी ज पडे छे. आना समर्थनमां अमे पाछला प्रकरणोमां प्रमाण आप्युं ज छे. अने आगळ पण विचार
करवाना छीए.
(जैन तत्त्वमीमांसा पृ. १प७ ली. १७)
२९. अहीं आ प्रश्न करी शकाय छे के जे शास्त्रोना आधारे आप योग्यतानुं समर्थन करो छो ते ज
शास्त्रोमां एवुं कथन पण मळी आवे छे के निमित्त न होवाथी कार्य न थयुं. उदाहरण रूपेसिद्ध जीव
लोकान्तनी उपर गमन केम करता नथी? आ प्रश्न उपस्थित थवाथी आचार्य श्री कुन्दकुन्दे नियमसारमां आ
उत्तर आप्यो छे के लोकनी बहार धर्मास्तिकाय न होवाथी तेओ लोकान्तथी उपर अलोकाकाशमां गमन नथी
करता.
३०. आचार्य गृद्धपिच्छे पण तत्त्वार्थ सूत्रमां “धर्मास्तिकाय अभावात्” आ सूत्रनी रचना करीने आ
ज जवाब आप्यो छे. तथा लोक–अलोकना विभागनुं कारण बतावतां बीजे स्थळे पण आ वात कहेवामां
आवी छे, तेथी आ आधारे जो आ परिणाम (–फळ, सारांश) सिद्ध करवामां आवे के उपादानकारणनो
सद्भाव होवा छतां पण जो निमित्त कारणनो अभाव होय तो विवक्षित (मुख्य; कहेवा धारेल) कार्य थतुं
नथी तो शुं आपत्ति छे? न्यायशास्त्रमां जे ‘सामग्री कार्य जनिका नैक कारणम्’ आ वचन आवे छे ते
पण ए ज अभिप्रायनुं समर्थन करे छे.
३१. समाधान आ छे के शास्त्रोमां आ तो स्पष्ट पणे ज स्वीकार करवामां आव्युं छे के धर्मास्तिकाय
गतिक्रियामां त्यारे ज निमित्त होय छे के ज्यारे बीजां द्रव्यो गतिक्रिया परिणत थाय छे. जो अन्य द्रव्य
गतिक्रिया परिणत न थतां होय तो ते निमित्त थतुं नथी. आथी आ वात तो स्पष्ट थई के ज्यां सुधी जीव
अने पुद्गल पोतानी स्वतंत्रता पूर्वक गमन करे छे त्यां सुधी ते एमना गति परिणमनमां निमित्त होय छे.
एथी नियमसार अने तत्त्वार्थ सूत्रमां उपर कहेल प्रश्नना उत्तररूपे उपादाननी द्रष्टिथी आ पण
* नियामक–नियम–नक्की करनार.