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आ जवाब न देतां त्यां निमित्तनी अपेक्षाए (निमित्तनुं ज्ञान कराववा माटे) उत्तर देवामां आव्यो छे तो
त्यां एवो उत्तर देवानां बे कारण मालूम पडे छे.
अधर्मद्रव्य ज नथी पण तेनी साथे अन्य निमित्त पण छे, परन्तु अहीं गतिक्रियामां अन्य निमित्तोनो सर्वथा
अभाव होईने एक मात्र धर्म द्रव्य ज निमित्त छे.
पर्यायो थाय छे अथवा गतिक्रिया थाय छे तेमां धर्मादिक द्रव्य पण निमित्त नथी होतुं एक पर्यायोनो पर
निरपेक्ष कहेवानुं छे तो एमनुं उक्त कथनथी एवुं तात्पर्य काढवुं यथार्थ नथी, तेथी अहीं उपादान कारणनी
द्रष्टिथी उत्तर न देतां निमित्तनी मुख्यताथी उत्तर आपवामां आव्यो छे. तेथी नियमसार अने तत्त्वार्थसूत्रना
उक्त कथनना आधारे आ सिद्ध करवुं उचित नथी के उपादान कारणनो सद्भाव होवा छतां पण जो निमित्त
न होय तो कार्य थाय नहिं कारण के विवक्षित उपादानना कार्यरूपे परिणत थवानी साथे विवक्षित निमित्तनी
सम्व्याप्ति छे. छतां पण कार्योत्पत्तिमां मुख्यता उपादाननी ज छे कारण के ते स्वयं कार्यरूपे परिणमे छे.
निमित्त तेने जरा पण पोतानो अंश आपतुं नथी. निमित्तनी निमित्तना आ अर्थमां चरितार्थ छे, (–सार्थक
छे.) पण ते कार्यमां उत्पादक छे ए अर्थमां नथी. निमित्तमां कार्य उत्पादक गुणनो आरोप करी कथन करवुं ए
जुदी वात छे.
पुद्गळोनी गतिमां हेतु नथी थता. जो तेओ बीजाओनी गति अने स्थितिना मुख्य (निश्चय) हेतु होय तो
जेनी गति होय तेनी गति ज रहेवी जोईए, स्थिति न थवी जोईए. अने जेनी स्थिति होय तेनी स्थिति ज
रहेवी जोईए, गति न थवी जोईए परंतु एकना एक पदार्थनी पण गति अने स्थिति जोवामां आवे छे माटे
अनुमान थाय छे के तेओ (धर्म अने अधर्म द्रव्य) गति अने स्थितिना मुख्य हेतु नथी, पण व्यवहारनयथी
स्थापित (निश्चित नक्की थयेल) उदासीन हेतु (निमित्त) छे.
समाधान–वास्तवमां गति अने स्थिति करवावाळा पदार्थ पोतपोताना परिणमोथी ज निश्चयथी गति