फागण : २४८७ : ७ :
जै न त त्त्व मी मां सा
१. आ नामनुं पुस्तक बनारसना सुप्रसिद्ध विद्वान पंडित श्री पुलचंदजी सिद्धान्तशास्त्री तरफथी
वीरनिर्वाण २४८६ दसलक्षण धर्मना पवित्र पर्वप्रसंगे प्रसिद्ध करवामां आव्युं छे.
२. आ पुस्तकमां १२ विषयो लेवामां आव्या छे के तेनी विषय सूचिमां जणावेल छे. ते बधा विषयो
जैन तत्त्वज्ञानना पायारूप छे. ते विषयोना यथार्थ भावभासन विना जैनतत्त्व ह्रदयंगम थई शके
नेवुं नथी.
३. अहीं चालता पुरुषवर्गना वांचन वखते आ पुस्तकनुं अध्ययन थया पछी ते सम्बन्धीनो अमारो
अभिप्राय प्रगट करवानुं योग्य जणाय छे.
४. आ पुस्तकमां (१) विषय प्रवेश, (२) वस्तुस्वभावमीमांसा, (३) निमित्तनी स्विकृति, (४)
उपादान निमित्त मीमांसा, (प) कर्ता कर्ममीमांसां, (६) षट्कारक मीमांसा, (७) क्रमनियमित
(क्रमबद्ध) पर्याय मीमांसा, (८) सम्यक्नियतिस्वरूप मीमांसा, (९) निश्चय–व्यवहार मीमांसा,
(१०) अनेकान्तस्याद्वाद मीमांसा, (११) केवळज्ञान स्वभाव मीमांसा (१२) उपादान निमित्त
संवाद ए रीते बार विषय छे.
प. आ दरेक विषय प्रयोजन भूत होवाथी मुमुक्षुओए समजीने तेनो आशय लक्षमां राखवा योग्य छे.
तेमांथी एक पण विषयमां भूल थाय तो जैन तत्त्वना मूळभूत सिद्धान्तोमां भूल थाय अने
सम्यक्श्रद्धा थाय नहि.
६. पंडितजीए विषयोनी पसंदगी करवामां तथा तेनो अनुक्रम गोठववामां घणी विचक्षणता वापरी छे.
तेमां खास ध्यानमां राखवा योग्य ए छे के त्रीजा अधिकारमां ‘निमित्तनीस्विकृति’ प्रथम लीधी छे
अने त्यार पछी ज ‘उपादान निमित्तमीमांसां’ नामनो अति उपयोगी विषय लीधो छे. जीवोने
अनादि काळथी निमित्ताधिन द्रष्टि छे ते छोडया विना कदी पण निज त्रिकाळी उपादान तरफ पोताना
पुरुषार्थनी गति वाळी शके ज नहि. तेथी आ पद्धति घणी सुंदर छे एम कहेवुं जोईए. त्यारपछी
कतृकर्ममीमांसा, षट्कारक अने क्रमनियमित (क्रमबद्ध) पर्याय मीमांसा, ए विषयो लीधा छे ते
क्रमपण तेटलो ज प्रशंसनिय छे केमके जीव परनो अने रागनो अकर्ता छे एम यथार्थपणे नक्की कर्या
विना कदी पण स्वसन्मुख थई शके नहि अने ‘क्रमबद्ध पर्यायनो सम्यक् निर्णय करी शके नहि.
७. आ प्रमाणे जे जे विषयो लेवामां आव्या छे ते बधा घणा उपयोगी छे अने वर्तमानमां ते खास
प्रकारे चर्चानो विषय बनी रह्या छे तेथी आ पुस्तक अथाग परिश्रमपूर्वक लखीने पंडितजीए जैन
समाज उपर उपकार कर्यो छे अने एक अगत्यथी वस्तु पुरी पाडी छे.
८. दरेक विषयनी चर्चा करता चारे अनुयोगना तथा दर्शनशास्त्रोना आधारो ठेक ठेकाणे आपीने सत्य
सिद्धान्त जैनागम प्रमाणे शुं छे ते स्पष्टपणे समजाव्युं छे.
९. हिन्दीभाषामां प्रसिद्ध थतां वर्तमान जैन पुस्तकोमां आ पुस्तक सवोत्तम छे.
१०. आखा पुस्तकनो बारीकीथी अभ्यास करता, तेमां पंडितजीनो धर्मानुराग तथा शास्त्रोना ऊंडा
अभ्यास सहित वस्तुस्वरूप रजु करवानी तेमनी अदःभूत शक्ति जणाई आवे छे.
११. आ पुस्तकनो अभ्यास जिज्ञासुओ मोटा प्रमाणमां करे छे अने ते घणुं लोकप्रिय नीवडयुं छे.