चैत्र : र४८७ : ११ :
पद्मनंदी पंचविंशतीका
(दानअधिकार उपर पूज्य सद्गुरुदेवश्रीनां प्रवचनो)
जामनगर महा सुदी र–३ ता. १८–१–६१, १९–१–६१
(१)
१. खरेखर दान तो मिथ्यामान्यता–अज्ञान अने रागादिना त्यागपूर्वक आत्मामां सम्यग्दर्शनादि
रत्नत्रयनी शान्ति, अतिन्द्रिय आनंदनुं प्रगट करवुं ते दान छे. अधुरी दशामां गृहस्थदशा छे त्यां केवी
जातनो राग अने विवेक होय ते बतावे छे. आचार्यदेवे प्रथम गाथामां कह्युं के जगतना जीव अंतरना
आनंदने भूलीने लोभरूपी ऊंडा कुवानी भेखडमां भराया छे तेने बहार काढवा माटे आ उपदेश छे.
र. ज्ञानानंदमूर्ति प्रभु आत्मा छे तेने भूलीने, पर चीज पोताथी जुदी छे तेमां मारुं कांई नथी ए
भूलीने ए मारा ने हुं एनो एम मानवाथी अनादिथी जीवो अज्ञानी दुखी थई रह्या छे.
३. पोते देहनी अपेक्षा विनानो, शाश्वत ज्ञानानंद मूर्ति छे तेनी महिमा, प्रीति, रुचि छोडीने, परने
अनुकूळ के प्रतिकूळ मानी परथी लाभ नुकशान अज्ञानी माने छे. पुण्यने धर्म मानी बेठा छे तेनी वात नथी
पण जेने धर्मनी ओळखाण छे, प्रेम छे तेने दाननो विवेक बतावे छे अने धर्ममां जिज्ञासा छे तेने पण
धर्मात्मानी ओळख करी दान देवानो उपदेश छे. धर्मनी रुचि कराववाने तृष्णा घटाडवानो जे उपदेश छे ते
अनादिनो छे, नवो नथी.
४. ‘अपने को आप भूल के हैरान हो गया’ ए नियम मुजब जीव अनादिकाळथी पोताने भूली,
परने पोतानुं मानतो आवे छे. काम क्रोधादि पाप छे दया, दान, व्रतादि, पूजा भक्तिना भावो पुन्य छे; बेउ
बंधनना कारणो छे, उपाधि छे अनित्य छे पण आत्मा तेवो नथी, आत्मा तो सदा ज्ञायक स्वभावी छे तेनी
रुचि–छोडी देहादिनी रुचि जीव करे छे, त्यां सुधी पुन्यपापना फळमां देव, मनुष्य, पशु अने नारकी एम चार
गतिमां ते रखड्या करे छे. परमां कर्ता भोक्तापणुं, अने धणीपणुं मानीने तृष्णाना ऊंडा कूवामां भराई
गयो छे तेने बहार केम काढवो तेनी वात जीवे भाव सहित कदी सांभळी नथी.
प. मेंदीना पानमां अंदर शक्तिरूपे लालप छे बारीकपणे पीसे तो प्रगट थाय, दीवासळीमां अग्नि
अप्रगट शक्तिरूपे छे, घसे तो प्रगट थाय; एम आत्मामां अंदरनी शक्तिरूपे परमानंद–ज्ञानानंद संपदा
विद्यमान छे तेने सत् समागमे ओळखीने अंतर्मुख द्रष्टिथी अंदरमां एकाग्र थाय तो ते प्रगट थाय पण तेम
न मानतां शरीर–मन–वाणी संयोगनुं लक्ष करी, बाह्यमां शुभरागरूप व्यवहारनी रुचि करी जगतनी धुडनी
आशाथी ओशीयाळो थई रह्यो छे.
६. धर्मना नामे के संसारनी सेवाना नामे मंद कषाय करे तो पुण्यनी धुड मळे छे; ते तो चलती फिरती
छांया छे. तेनाथी आत्मा न मळे. बुद्धि घणी होय तेना कारणे पैसा मळता नथी पण पूर्वना पुन्य प्रमाणे ज
मळे छे.