Atmadharma magazine - Ank 210
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : २१०
चैतन्य वस्तुने वसवानुं स्वक्षेत्र, तेमां
केवळज्ञाना बीजरूप खातमुहूर्त
वीर निर्वाण सं. र४८७ फागण शुद २ राजकोटमां श्री दि. जैन मंदिर पासे
स्वाध्याय होलनुं शिलान्यास थयुं ते प्रसंगे मांगळिकरूपे पू. श्री गुरुदेवे कह्युं के:–
सर्वज्ञ परमात्माए वस्तु कोने कही छे–ते वात गोम्मटसार शास्त्रमां छे. जेमां गुण–
पर्याय वसे तथा जे गुण पर्यायमां वसे तेने वस्तु कहीए. आत्मा नित्य पोताना असंख्य
प्रदेशी स्वक्षेत्रमां, ज्ञानादि अनंतगुणमां तथा तेनी दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप अवस्थाओमां
निवास करी रह्यो छे पण शरीर आदि पर वस्तुओमां तेनुं निवास स्थान नथी.
आत्मा शक्तिरूपे सिद्ध परमात्मा समान छे पण बाह्यद्रष्टि वडे रागादि पुण्यपापनी
मलिनता छे जे आत्माने माटे अवस्तु छे तेमां वास करे छे, तेमां आत्माना गुणपर्यायोनो
खरेखर वास नथी.
अंतरचिदानंदस्वभावमां अंतर्मुख थईने, निर्विकल्प श्रद्धा, ज्ञान, चारित्ररूप
निर्मळ पर्याय प्रगट करे तो ते आत्मा पोताना गुण–पर्यायमां वस्यो कहेवाय ने ते खरुं
वास्तु छे ने तेने सर्वज्ञ भगवाने केवळज्ञाननुं खातमुहूर्त कहेल छे.
ध्रुवचिदानंद स्वभावनी श्रद्धा करी, सम्यग्दर्शनरूपी पायो नाख्यो तेणे पोताना
आत्मामां केवळज्ञाननुं अचळशिलान्यास कर्युं, तेणे असंख्यप्रदेशी चैतन्यभूमिमां वास्तु
कर्युं.
असंख्यप्रदेशी विज्ञानघन स्वरूप जे चैतन्यशिला छे तेना आधारे केवळज्ञान अने
परमानंद प्रगटे छे. पूर्णज्ञान अने आनंद प्रगटाववानी ताकात मारामां ज छे. ते स्वाधीन
छे एम जेणे पोताना आत्मामां सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान कर्या तेणे स्वक्षेत्र चैतन्य धाममां
केवळज्ञाननुं शिलान्यास कर्युं. सम्यग्दर्शनरूपी शिला वडे आत्मामां केवळज्ञानने पायो
नाख्यो ते अल्प काळमां केवळज्ञान पामशे ते मंगळ छे.