Atmadharma magazine - Ank 210
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : २१०
१७. सर्वज्ञ परमात्माए त्रणकाळ त्रणलोकवर्ती सर्व पदार्थनुं संपूर्ण स्वरूप प्रत्यक्ष जाण्युं, अने वाणी
द्वारा कह्युं के:– शरीर, मन, वाणी सदाय जड पदार्थ छे, तेनामां ज्ञान–सुख–दुःख नथी पण तेनामां नित्य
जडपणे टकीने परिवर्तन थवानी शक्ति छे; तेथी तेनुं जे वर्तमान कर्म (कार्य) होय छे ते कार्य तेनाथी थाय छे
ताराथी नथी; कोई बीजाने आधारे तेनुं कर्ता–कर्म नथी. ए ज रीते दरेक पदार्थनुं स्वतंत्रपणुं छे; एम जाणी
स्व तरफ ढळवाथी आत्मानुं साचुं ज्ञान थाय छे. एवुं स्वतंत्रपणुं कदी एक सेकन्ड मात्र पण अज्ञानीए
जाण्युं नथी, माटे सर्व प्रथम दरेक पदार्थ सदाय स्वतंत्र ज छे एम सारी रीते नक्की करवुं जोईए.
१८. आ आंगळी हलाववी आत्मानुं कार्य नथी. आत्मामां एवुं सामर्थ्य त्रणकाळमां नथी के ते
परवस्तुनी क्रिया करे. दरेक पदार्थमां दरेक समये नवी नवी अवस्था थाय, जूनी जाय ने वस्तुपणे ते कायम
टकी रहे छे एवो नियम छे. वस्तुनी अवस्था ते तेनी व्यवस्था छे. जो एक समय पण वस्तु परनी
अवस्थाने करे तो कर्ता थनारे पोतानुं ते समये शुं कर्युं? जो बीजो तेनुं कार्य करे तो बे द्रव्यनी एकता थाय
छे. दरेक पदार्थ ‘उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्त सत्’ लक्षणवाळो छे. आम होवाथी कोईपण समये कोई द्रव्य पोतानुं
कर्ता कर्म (कार्य) छोडी बीजानुं कार्य करी शके एम बनतुं नथी. आ सूक्ष्म वात छे. ए जाण्या विना कर्ता–
कर्मनुं अज्ञान टळे नहि. कह्युं छे के ‘मुनिव्रत धार अनंतवार ग्रीवेक उपजायो, पै निज आतमज्ञान विना
सुख लेश न पायो.’
१९. आत्मा एटले जीव पोते भूल करे कां साचुं ज्ञान करे, परनुं कोई प्रकारे कांई करी शकतो ज नथी.
अज्ञानथी माने भले पण अज्ञान भावे पर पदार्थनुं कांई करे एटले के आत्मा तेना कार्यनो कर्ता थाय ए
आकाशना फूल तोडवा जेवुं छे. जे त्रण काळमां बने नहि.
२०. पोताने शरीररूपे माने भले पण शरीरनी क्रिया, खावा पीवानी क्रिया, बोलवुं, चालवुं, आंखनी
पांपण हलाववी ए बधी शरीरना परमाणुद्रव्यनी क्रिया होवाथी आत्मा त्रण काळ, त्रण लोकमां तेने करी
शकतो नथी. हुं करुं छुं एम मिथ्या अहंकार करे छे, रागद्वेष मोह करे छे, पण सत्य शुं एनो क्षणमात्र पण
निर्णय करीने अंतरस्वरूपनो अनुभव करतो नथी.
२१. अज्ञानी परमां काम थाय छे ते मारे लीधे थाय छे एम परमां एकताबुद्धि लई बेठो छे. मंदिर,
मूर्ति, वगेरे प्रत्ये भक्तिवंतने पूजा–भक्तिनो शुभ राग जे थाय छे ते तेना काळे पोतपोताना कारणे जीवने
थाय छे. जो परना लीधे थाय तो बधाने थवो जोईए अने ते एकसरखो थवो जोईए.
२२. सौधर्म आदि ईन्द्रो सम्यग्द्रष्टि छे, भक्तिवंत छे. ज्यारे तीर्थंकर भगवाननो जन्म थाय छे त्यारे
एनी मेळे ज ईन्द्रनुं आसन कंपे छे, ईन्द्र ऐरावत हाथी उपर आवे छे भक्तिना उल्लासमां मेरु पर्वत, उपर
१००८ मोटा कळशथी अभिषेक करी महान उत्सव मनावे छे ते शुं छे? ते तो पोतामां शुभ भाव करे छे,
पुद्गल परावर्तनना नियम प्रमाणे पुद्गलनी जे क्रिया जेम थवानी छे ते तेम थाय छे, पण शुभ भाव छे
तेथी जडनी क्रिया थती नथी. भक्तिवानने एवो राग ऊठे छे पण ज्ञानी रागनो स्वामी नथी, सर्व प्रकारना
रागनो व्यवहारथी ते जाणनार छे. राग मारुं कार्य छे अने हुं तेनो कर्ता छुं एम ज्ञानी मानतो नथी, ए
काळे आवो राग होय छे. राग मारा स्व–पर प्रकाशक ज्ञाननुं ज्ञेयपणे निमित्त छे एम ते जाणे छे.
२३. आ सत्य वात समजे नहि त्यां सुधी लोकोने एम प्रश्न थाय छे के त्यारे अमारे करवुं शुं? तेमने
बे द्रव्यनी भिन्नता भासी नथी, तेथी संयोग तरफथी देखे छे, जेम वस्तु स्थिति छे तेम जोई शकता नथी. पं.
बनारसीदासजी कहे छे–