जडपणे टकीने परिवर्तन थवानी शक्ति छे; तेथी तेनुं जे वर्तमान कर्म (कार्य) होय छे ते कार्य तेनाथी थाय छे
ताराथी नथी; कोई बीजाने आधारे तेनुं कर्ता–कर्म नथी. ए ज रीते दरेक पदार्थनुं स्वतंत्रपणुं छे; एम जाणी
स्व तरफ ढळवाथी आत्मानुं साचुं ज्ञान थाय छे. एवुं स्वतंत्रपणुं कदी एक सेकन्ड मात्र पण अज्ञानीए
जाण्युं नथी, माटे सर्व प्रथम दरेक पदार्थ सदाय स्वतंत्र ज छे एम सारी रीते नक्की करवुं जोईए.
टकी रहे छे एवो नियम छे. वस्तुनी अवस्था ते तेनी व्यवस्था छे. जो एक समय पण वस्तु परनी
अवस्थाने करे तो कर्ता थनारे पोतानुं ते समये शुं कर्युं? जो बीजो तेनुं कार्य करे तो बे द्रव्यनी एकता थाय
छे. दरेक पदार्थ ‘उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्त सत्’ लक्षणवाळो छे. आम होवाथी कोईपण समये कोई द्रव्य पोतानुं
कर्ता कर्म (कार्य) छोडी बीजानुं कार्य करी शके एम बनतुं नथी. आ सूक्ष्म वात छे. ए जाण्या विना कर्ता–
कर्मनुं अज्ञान टळे नहि. कह्युं छे के ‘मुनिव्रत धार अनंतवार ग्रीवेक उपजायो, पै निज आतमज्ञान विना
सुख लेश न पायो.’
आकाशना फूल तोडवा जेवुं छे. जे त्रण काळमां बने नहि.
शकतो नथी. हुं करुं छुं एम मिथ्या अहंकार करे छे, रागद्वेष मोह करे छे, पण सत्य शुं एनो क्षणमात्र पण
निर्णय करीने अंतरस्वरूपनो अनुभव करतो नथी.
थाय छे. जो परना लीधे थाय तो बधाने थवो जोईए अने ते एकसरखो थवो जोईए.
१००८ मोटा कळशथी अभिषेक करी महान उत्सव मनावे छे ते शुं छे? ते तो पोतामां शुभ भाव करे छे,
पुद्गल परावर्तनना नियम प्रमाणे पुद्गलनी जे क्रिया जेम थवानी छे ते तेम थाय छे, पण शुभ भाव छे
तेथी जडनी क्रिया थती नथी. भक्तिवानने एवो राग ऊठे छे पण ज्ञानी रागनो स्वामी नथी, सर्व प्रकारना
रागनो व्यवहारथी ते जाणनार छे. राग मारुं कार्य छे अने हुं तेनो कर्ता छुं एम ज्ञानी मानतो नथी, ए
काळे आवो राग होय छे. राग मारा स्व–पर प्रकाशक ज्ञाननुं ज्ञेयपणे निमित्त छे एम ते जाणे छे.
बनारसीदासजी कहे छे–