चैत्र : २४८७ : १९ :
“करे करम सोही करतारा जो जाणे सो जाननहारा;
करता सो जाणे नहि कोई, जाणे सो करता नहि होई.”
र४. पर जीव–अजीवनी जे क्रिया छे ते ते पदार्थोथी थाय छे एम न मानतां, तेनो हुं कर्ता छुं एम
मिथ्याद्रष्टि अभिमान करी रह्यो छे; तेथी तेने ज्ञातास्वरूपनुं भान थई शकतुं नथी.
ज्ञातास्वभावी आत्माने जाणतां, सर्वने जाणवानी ताकात मारामां छे पण परनुं करवानी ताकात
मारामां नथी एम ज्ञानी जाणे छे.
२प. तीर्थंकर त्रण ज्ञान लईने माताना गर्भमां आवे छे. जन्मकाळे ईन्द्रोना आसन चळे छे, पुण्यमां
पूर्ण छे अने पवित्रतामां पूर्ण थवाना होय छे, देह बाळक छतां एवो मजबूत होय छे के ईन्द्र द्वारा हजारो
घडा पाणी पडे कांई न थाय. ईन्द्रो पगे घुघरा बांधी नृत्य द्वारा भक्ति करे छे. श्री पद्मनंदीआचार्य
भक्तिस्तोत्रमां कहे छे के हे जिनेन्द्र आपनो जन्म थयो त्यारे मेरुपर्वतमां आपनी उपर पाणीनो धोध एवो
पड्यो के ते पवित्र जळथी मेरुपर्वत तीर्थ थई गयो ने तेथी आ सूर्य चंद्र, ग्रह, नक्षत्र अने तारा मंडल तेने
फरता फर्या करे छे.
र६. भक्तो भक्तिना उछाळामां उत्प्रेक्षा अलंकार वडे वीतरागतानी महिमा गाय छे. के हे नाथ! आ
आकाशमां वादळाना खंड खंड टूकडा फरे छे तेने हुं एम समजुं छुं के आपना जन्म कल्याणक वखते ईन्द्रोए
लांबा हाथ करीने तांडव नृत्य करेल त्यारे अखंड वादळा खंड खंड थई गया. तेनो भाव एम छे के आत्मा
साथे कर्म एकमेक मानतो, भान थयुं के एम नथी एटले तेना कटका थई गया, कर्मबंधनना टुकडा थतां
अमारे संसारनुं बंधन तूटी गयुं छे. जुवो भक्ति, भाषा जुदी, भाव जुदो छे.
र७. रागना कारणे राग, ज्ञानना कारणे ज्ञान अने जडना कारणे शरीरनी क्रिया–स्वतंत्र ज छे. परना
काम परथी थाय छे. माराथी एमां, अने एनाथी मारामां कंई थाय छे एम ज्ञानी माने नहि.
२८. श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी ग्रंथमां अकर्तापणुं समजावतां कह्युं छे के शरीरनी बाळ, युवा अने वृद्ध
अवस्था आवे छे तेमां एक अवस्था टाणे बीजी अवस्था लावी शकाती नथी केमके ते कार्य जीवने आधीन
नथी पण ते अवस्थानुं ज्ञान याद लावी शके छे. माटे ज्ञान करवुं ते जीवने आधीन छे. आ उपरथी जीवनो
स्वभाव ज्ञाता द्रष्टा छे एम नक्की थाय छे.
२९. पण आमां करवानुं शुं आव्युं? तेनो उत्तर के तुं कोण अने तुं शुं करी शके छे तेनुं ज्ञान कर. तुं
तो ज्ञान छो, ज्ञान–अज्ञान सिवाय तुं बीजुं कांई करी शकतो नथी, ज्ञान करवानुं, ज्ञानरूपे थवानुं कार्य तारुं
छे अने तुं एनो कर्ता ए त्रणे काळे तारी मर्यादा छे. कह्युं छे के:–
“निजपदमें रमे सो राम कहीए”
माटे निजपदमां रमवुं ए तारे करवुं.
३०. भगवान आत्मा शरीर, मन, वाणी अने शुभाशुभ विकल्पथी पार अतीन्द्रिय आनंदनी
संपदाथी भरेलो पदार्थ छे तेने अज्ञानी भूले छे तेथी पुण्य–पापनी जे वृत्ति ऊठे छे तेनो हुं कर्ता ने ते मारूं
कर्म एम अज्ञानीनी द्रष्टि विकार उपर पडी छे तेथी ते मिथ्याद्रष्टि थयो थको ते रागमां अने परमां कर्ता–
कर्मपणुं माने छे.
३१. ज्ञानी गुरु मळे तो समजाय ने? ना, जो एनाथी समजण मळी जाय तो एक ज्ञानी बधाने
समजावी दे पण एम बनतुं नथी. तारो चैतन्य स्वभाव तारामां एकमेकपणे अनंत ज्ञानानंदमय अनंत
शक्तिथी भर्यो छे. पण पाणी उपर थोडुं तेल होय त्यारे उपरना तेलने भाळे पण नीचे पाणी स्वच्छ भर्युं छे
तेने न भाळे, तेम वर्तमान अंशमां रागद्वेष पुण्यपापनी वृत्ति ऊठे तेटलुं ज भाळनार तेनी आडमां आखो
अनादिअनंत ज्ञाताद्रष्टा आनंदमूर्ति कोण छे तेने भाळतो नथी.
३२. धर्मीनी द्रष्टि पुण्य उपर नथी, ईन्द्रो हजार नेत्रो वडे तीर्थंकरना बाळ देहने देखे छे, पोते एका