चैत्र : २४८७ : २१ :
तेमां विकार मारूं कर्तव्य मानवारूप (ज्ञाता प्रत्ये) क्रोधादि थतां नथी एम ज्ञानस्वभाव ज अधिकपणे–
विभावथी भिन्नपणे अनुभवमां आवे छे.
३७. आ वात धर्मनी शरूआत माटे मुख्य मुदनी छे. ते न समजाय तो कांई खोटा उपाय वडे
शरूआत थई न कहेवाय.
३८. बपोरे दान अधिकार वंचाय छे तेमां व्यवहारनुं ज्ञान कराववा साथे भावमां ज्ञानीने क््यां केवो
विवेक अने राग होय ते समजाववुं छे. बहारनुं करवा न करवानी तेमां वात नथी–केमके बहारनुं जीव कांई
करी शकतो नथी. तीव्र पापमांथी बचवा राग मंद करवा दान अधिकारनी छेल्ली गाथामां आचार्ये कह्युं छे के
जेम भमरो गुंजारव करतो वनस्पतिनी कळी उपर जतां तो ते खीली उठे छे पण पथ्थरनी कळी उपर बेसे तो
खीलशे नहीं, तेम अहीं दाननो उपदेश सांभळी जे विवेकवान कूणा जीव हशे ते तो तृष्णा घटाडी दान देशे.
पण पथ्थरनी कळी जेवाने माटे आ उपदेश व्यर्थ छे–आचार्य तो नग्न दिगम्बर वनवासी हता तेमने क््यां
फाळो करवो हतो. उपदेशनो राग आवे अने वाणीनो योग होय तो ते काळे वाणी वाणीना कारणे आवे तेना
धणी तेओ थता नथी. धर्मी जीव रागनी लीलामां फसाता नथी. रागमां एकता ते व्यभिचार छे.
३९. देहनी क्रिया थाय–न थाय ते उपर पुण्यपाप नथी, समकीती चक्रवर्तीने हजारो स्त्री अने छ खंडनुं
राज्य संयोगपणे होय छतां भेदज्ञान वर्ते छे. स्त्रीनो राग छे पण राग करवा जेवो ते माने नहि, रागथी
अधिक हुं आत्मा छुं एनी द्रष्टि तेने खसती नथी. पाणीनी स्वच्छता जोनारने स्वच्छता भासे छे मलीनता
नहि, तेम त्रिकाळी ज्ञाता स्वभाव ते हुं छुं एम स्वभावनी द्रष्टिवाळो जे थयो तेने ज्ञान स्वभाव भासे छे
आ तो सम्यग्द्रष्टिनी वात छे त्यार पछी उग्र पुरुषार्थ थतां चारित्रनी ऋद्धि शुं ते अलौकिक वात छे.
४०. अज्ञानी होय ते शरीरनी क्रियानुं अभिमान करे अने ज्ञानी थाय तो ज्ञाताद्रष्टानी द्रढता करे.
परनुं कोई कांई करी शके नहि. ‘हुं करूं हुं करूं ए ज अज्ञान छे, शकटनो भार जेम श्वान ताणे’ एम नरसी
महेताए पण गायुं छे. में आनुं सुधार्युं–बगाड्युं, आने में धन दीधुं. एनो अर्थ एटलो के एवो रागभाव
पोतामां कर्यो: में हाथ हलाव्यो एम खरेखर माननार आत्माने जाणतो ज नथी. आत्माने जाण्या विना
आणे आ कर्युं एवुं ज्ञान क्यांथी लाव्यो? मात्र अज्ञानीनी मानेली वात छे.
४१. जीव धीरो थई विचारे अने न्याय तोळवामां तेनुं ज्ञान लंबावे तो खरूं शुं छे अत्यारे जाणी
शकाय छे–बगसरामां दरबार वाजसुरवाळाना कुंवर अमरू खाचर हता; तेमणे पूछयुं के मांस खावामां पाप
थाय, नर्कमां दुःख भोगववा पडे ए वात केम मानवी? त्यारे तेने कहेलुं के एक नास्तिक क्रोडपती शेठ छे, एक
राजा छे. बेउ मित्र छे शेठने त्यां ६० वर्षनी उंमरे एकनो एक पुत्र जन्म्यो, राजा खुशी मनाववा भेट लईने
आवे छे. बाळक रूपवान जोईने राजाने खावानुं मन थयुं. शेठने कह्युं के आ बाळकना कटका करी शेकीने खावा
मागु छुं. त्यां नास्तिक एवो शेठ कहे–अरेरे बापु! आवुं करवुं ठीक नही, पाप छे दुःखनुं कारण छे. राजा कहे
पण हुं अने तुं पुन्यपाप अने तेनुं फळ, परलोक एवुं कांई मानता नथी; मने भूख लागी छे अने आनुं मांस
खावाथी प्रत्यक्ष सुख थशे एमां पाप शुं? हवे विचार करो के नास्तिक पण आवे प्रसंगे ‘अरेरे’ करे छे ते एम
बतावे छे के पापना कारणे जीवने सुख थाय नहीं जेणे पोतानी सगवडता खातर अनेकने मारी नांखवाना
दुःख देवाना क्रूर भावो कर्या छे, तेमां कांई मर्यादा राखी नथी तेने निरन्तर अमर्यादित लांबा काळ सुधी दुःख
भोगववा योग्य क्षेत्र अहीं क््यांय जोवामां आवतुं नथी पण ते नरकनुं क्षेत्र छे अने ते नीचे छे.
४र. कोई कहे के जुठुं बोले तेनी जीभ कपाय तो अमे मानीए के पापनु्रं फळ मळे छे. पण भाई
सांभळ: जीभ क्यां जीवनी छे. खोटुं बोलवानां तें भाव कर्यां, तेनुं पाप बंधाय ने भविष्यमां प्रतिकूळ
संयोगरूपे फळ मळे छे पण अत्यारे ज आकूळताना भोगवटानुं फळ मळे छे एम सूक्ष्मताथी जो तो जणाशे के
जूठुं बोलवामां पाप अने आकुळतारूप तेनुं फळ अत्यारे ज छे पण जोवामां फेर पाडे छे, चोरी करे–के जुठुं
बोले तेथी पैसा मळता नथी पण पूर्वभवना पापानुबंधी पुण्यना निमित्ते मळे छे; तें जेवा रागद्वेषरूपी भाव
कर्या तेवुं ज आकुळतानुं दुःख ते ज समये तने मळे छे.