के प्रत्येक समयनुं उपादान पृथक् पृथक् छे, एटला माटे तेना वडे क्रम पूर्वक जे जे पर्यायो उत्पन्न थाय छे ते
पोत–पोताना काळमां नियत छे. ते पोतपोताना समये ज थाय छे. आगळ पाछळ थती नथी. आ वातने
स्पष्ट करतां श्री अमृतचंद्राचार्य प्रवचनसार गा. ९९ नी टीकामां कहे छे के –
प्रगट थतां होवाथी अने पहेलां पहेलांना मोतिओ नहि प्रगट थतां होवाथी तथा बधेय परस्पर
(मोतियोमां) अनुस्यूति
अने पहेलां पहेलांना पर्यायोनो व्यय थवाथी तथा ए समस्त पर्यायोमां अनुस्यूतिपूर्वक एक प्रवाह
अवस्थित होवाथी उत्पाद, व्यय अने ध्रौव्यरूप त्रिलक्षणपणुं प्रसिद्धि पामे छे.”
(उर्ध्वता सामान्य) ना स्थाने दोरो छे. जेम मोतीनी माळामां समस्त मोती पोतपोताना स्थानमां प्रकाशी
रह्या छे. गणतरीना क्रमथी तेमांथी पछी पछीनुं एक एक मोती अतीत (व्यय) थतुं जाय छे अने पहेलां
पहेलांनुं एकेक मोती प्रगट थतुं जाय छे. तो पण समस्त मोतीओमां दोरो अनुस्यूत होवाथी तेमां अन्वय
बनी रहे छे, तेथी त्रिलक्षणपणानी सिद्धि थाय छे. ते ज प्रकारे नित्य परिणाम–स्वभाव एक द्रव्यमां अतीत,
वर्तमान अने अनागत समस्त पर्यायो पोत–पोताना काळमां प्रगट थई रह्या छे. तेथी तेमांथी
पूर्वक एक अखंड प्रवाह (उर्ध्वतासामान्य) निरन्तर अवस्थित रहे छे, माटे उत्पाद–व्यय–ध्रौव्यरूप
त्रिलक्षणपणानी सिद्धि थाय छे, आ उक्त कथननुं तात्पर्य छे.
पण द्रव्यरूपे वर्तमान पदार्थमां अवस्थित छे. तेथी जे पर्यायना उत्पादनो जे समय होय छे ते ज समयमां ते
पर्याय उत्पन्न थाय छे. अने जे पर्यायना व्ययनो जे समय होय छे ते समये ते व्यय थई जाय छे. एवो एक
पण पर्याय नथी के जे द्रव्यरूपे वस्तुमां (द्रव्यमां) न होय अने उत्पन्न थई जाय अने एवो एक पण पर्याय
नथी के जेनो व्यय थतां द्रव्यरूपे वस्तुमां तेनुं अस्तित्व ज न होय.
मोपादाननियमो भून्माश्यासः कार्य जन्मनि ।। ४२।।