अने कार्य उत्पन्न थवामां विश्वास (–सारी रीते भरोसो) पण थाय नहि. ४२
द्रव्यनो तो थई शकतो नथी, केमके ते नित्य छे. पर्यायनो पण थई शकतो नथी, केमके ते द्रव्यरूपे ध्रौव्य छे.
जेम विवादयुक्त मणि आदिमां मल आदि पर्यायरूपे नाशवान होवा छतां पण द्रव्यरूपे ध्रुव छे. अन्यथा (–
बीजी रीते) तेनी सत्त्वरूपे (–अस्तित्वरूपे; सत्तारूपे.) उत्पत्ति थई शकती नथी.”
अवस्थित न होय तो तेनो उत्पाद एम बनी शकतो ज नथी, जेम आकाशना फूलनो उत्पाद नथी बनतो.
वळी एटलुं ज नहि, जे उपादाननो नियम छे के आनाथी आ ज कार्य उत्पन्न थाय छे, एना विना आ
नियम पण बनी शकतो नथी. त्यारे तो माटीथी वस्त्रनी अने जीवथी अजीवनी पण उत्पत्ति थई जवी
जोईए अने जो एम थवा लागे तो आनाथी आ ज कार्य थशे एवो भरोसो करवो कठण थई जशे. तेथी
द्रव्यमां शक्तिरूपे जे कार्य विद्यमान छे ते ज स्वकाळ आवतां कार्यरूपे परिणमे छे एवो निश्चय करवो जोईए.
थवुं) अने तिरोभाव (–छूपावुं) मानेल छे. जैन दर्शननो सांख्यदर्शनथी जो कोई मतभेद छे तो ते आ ज
वातमां छे के, ते कारणने सर्वथा नित्य माने छे जैन दर्शन कथंचित् नित्य माने छे ते कारणमां कार्यनी सर्वथा
सत्ता माने छे, जैन दर्शन कथंचित् सत्त्व (सत्ता) माने छे. ते (सांख्य दर्शन) कार्यनो आविर्भाव–तिरोभाव
माने छे, जैनदर्शन कार्यनो उत्पाद–व्यय माने छे.
नैयायिक दर्शननुं ज. अने ए बराबर पण छे केमके द्रव्य कथंचित् नित्य उत्पाद–व्यय–ध्रौव्य स्वभाव
प्रतीतिमां आवे छे. साथे ज तेमां कार्यनी कारणरूपे सत्ता होवाथी जे जे कार्यनो स्वकाल होय छे ते काळमां
तेनो जन्म (उत्पाद) थाय छे.
अवस्थाओ थाय छे तेना उपर ध्यान आपीए तो प्रत्येक कार्य स्वकाळे थाय छे ए तत्त्व अनायास समजमां
आवी जाय छे; साधारण नियम ए छे के प्रारंभनां गुणस्थानोमां आयुबंधना समये आठ कर्मोनो अने
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