परिणमे छे? अने अन्य वर्गणाओ निमित्तोद्वारा कर्मरूपे केम परिणमती नथी? जो के ए प्रश्नो जरा कठण तो
जणाय छे पण शास्त्रीय व्यवस्थाओ उपर ध्यान देवाथी एनुं समाधान थई जाय छे. शास्त्रोमां बताव्युं छे के
योगना निमित्तथी प्रकृतिबंध अने प्रदेशबंध थाय छे. हवे थोडो आ कथन उपर विचार करीए के शुं योग
सामान्यपणे कार्मणवर्गणाओना ग्रहणमां निमित्त थईने ज्ञानावरणादिरूपे तेना विभागमां पण निमित्त
थाय छे? के ज्ञानावरणादिरूपे जे कर्मवर्गणाओ पहेलेथी अवस्थित छे तेने ग्रहण करवामां निमित्त थाय छे?
तेमांथी पहेली वात तो मानी शकाती नथी, केमके कर्मवर्गणाओमां ज्ञानावरणादिरूप स्वभाव पेदा करवामां
योगनुं निमित्तपणुं नथी. जे जेवारूपे छे तेनुं ते ज रूपे ग्रहण थाय तेमां योगनुं निमित्तपणुं छे.
निमित्त नथी थतो पण ज्ञानावरणादिरूप प्रकृतिबंधमां निमित्त थाय छे त्यारे अर्थात् आ वात आवी जाय छे
के प्रत्येक कर्मनी कर्मवर्गणाओ ज जुदी जुदी होय छे. तो पण आ वातना समर्थनमां अमे आगम प्रमाण
उपस्थित करी देवुं आवश्यक मानीए छीए. वर्गणाखंड बन्धन अनुयोगद्वार चूलिकामां कार्मणद्रव्यवर्गणा
कोने कहे छे तेनी व्याख्या करवा माटे एक सूत्र आव्युं छे. तेनी व्याख्या करता थका श्री वीरसेनाचार्य कहे छे:–
परिणमन करता नथी, केमके तेओ अन्य कर्मरूपे परिणमन करवाने अयोग्य होय छे. ए ज प्रकारे, सर्व
कर्मोना विषयमां व्याख्यान करवुं जोईए. अन्यथा ‘ज्ञानावरणीयनुं जे द्रव्य छे तेने ग्रहण करी मिथ्यात्व
आदि आस्रववश ज्ञानावरणीयरूपे परिणमावी जीव परिणमन करे छे’ ए सूत्र बनी शकतुं नथी.
संक्रमण थाय छे एवो जे कर्मसिद्धांतनो नियम छे तेथी पण उक्त कथननी पुष्टि थाय छे.
ए कर्मोनी वर्गणाओ पण अलग अलग होवी जोईए, माटे तेनुं परस्पर संक्रमण थतुं नथी.
परिणमता नथी. एवी अवस्थामां आ विस्त्रसोपचय आ समये कर्मरूपे परिणमे अने आ कर्मरूपे न