Atmadharma magazine - Ank 211
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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वैशाख : २४८७ : ११ :
समये (बीजा काळे) सात कर्मोनो प्रति समय बंध थाय छे.
प०. अहीं विचार ए करवो छे के कर्मबंध थवा पहेलां सर्व कार्मणवर्गणाओ एक प्रकारनी होय छे के
सर्व कर्मोनी जुदी जुदी वर्गणाओ होय छे? साथे ज ए पण जाणवुं छे के कार्मण वर्गणाओ ज कर्मरूपे केम
परिणमे छे? अने अन्य वर्गणाओ निमित्तोद्वारा कर्मरूपे केम परिणमती नथी? जो के ए प्रश्नो जरा कठण तो
जणाय छे पण शास्त्रीय व्यवस्थाओ उपर ध्यान देवाथी एनुं समाधान थई जाय छे. शास्त्रोमां बताव्युं छे के
योगना निमित्तथी प्रकृतिबंध अने प्रदेशबंध थाय छे. हवे थोडो आ कथन उपर विचार करीए के शुं योग
सामान्यपणे कार्मणवर्गणाओना ग्रहणमां निमित्त थईने ज्ञानावरणादिरूपे तेना विभागमां पण निमित्त
थाय छे? के ज्ञानावरणादिरूपे जे कर्मवर्गणाओ पहेलेथी अवस्थित छे तेने ग्रहण करवामां निमित्त थाय छे?
तेमांथी पहेली वात तो मानी शकाती नथी, केमके कर्मवर्गणाओमां ज्ञानावरणादिरूप स्वभाव पेदा करवामां
योगनुं निमित्तपणुं नथी. जे जेवारूपे छे तेनुं ते ज रूपे ग्रहण थाय तेमां योगनुं निमित्तपणुं छे.
प१. हवे जोवुं ए छे के शुं बंध थवा पहेलां ज कर्मवर्गणाओ ज्ञानावरणादिरूपे अवस्थित रहे छे? जो
के पूर्वोक्त कथनथी आ प्रश्ननुं समाधान थई जाय छे, केमके योग ज्यारे ज्ञानावरणादिरूप प्रकृतिभेदमां
निमित्त नथी थतो पण ज्ञानावरणादिरूप प्रकृतिबंधमां निमित्त थाय छे त्यारे अर्थात् आ वात आवी जाय छे
के प्रत्येक कर्मनी कर्मवर्गणाओ ज जुदी जुदी होय छे. तो पण आ वातना समर्थनमां अमे आगम प्रमाण
उपस्थित करी देवुं आवश्यक मानीए छीए. वर्गणाखंड बन्धन अनुयोगद्वार चूलिकामां कार्मणद्रव्यवर्गणा
कोने कहे छे तेनी व्याख्या करवा माटे एक सूत्र आव्युं छे. तेनी व्याख्या करता थका श्री वीरसेनाचार्य कहे छे:–
णाणावरणीयस्स जाणि ×××” ‘एनुं तात्पर्य छे के ज्ञानावरणीयने योग्य जे द्रव्य छे ते ज
मिथ्यात्व आदिक प्रत्ययोना (आस्रवोना) कारणे पांच ज्ञानावरणीयरूपे परिणमन करे छे, अन्यरूपे ते
परिणमन करता नथी, केमके तेओ अन्य कर्मरूपे परिणमन करवाने अयोग्य होय छे. ए ज प्रकारे, सर्व
कर्मोना विषयमां व्याख्यान करवुं जोईए. अन्यथा ‘ज्ञानावरणीयनुं जे द्रव्य छे तेने ग्रहण करी मिथ्यात्व
आदि आस्रववश ज्ञानावरणीयरूपे परिणमावी जीव परिणमन करे छे’ ए सूत्र बनी शकतुं नथी.
शंका– जो एम छे तो कार्मण वर्गणाओ आठ छे एम कथन केम न कर्युंर्ं?
समाधान:–नहीं, केमके आठे कर्म वर्गणाओमां अंतरनो अभाव होवाथी ते प्रकारनो उपदेश मळी
आवतो नथी.
आ षट्खंडागमना उक्तसूत्रना कथननो सार छे जे पोतानामां स्पष्ट होवा उपरान्त उपादाननी
विशेषताने ज सूचित करे छे. ज्ञानावरणादि कर्मोना अवान्तर (पेटा) भेदोनुं तेना ज अवान्तर भेदोमां ज
संक्रमण थाय छे एवो जे कर्मसिद्धांतनो नियम छे तेथी पण उक्त कथननी पुष्टि थाय छे.
प२. अहीं ए शंका थाय छे के जो ए वात छे तो दर्शनमोहनीय तथा चारित्रमोहनीयनुं परस्पर अने
चार आयुओनुं परस्पर संक्रमण केम थतुं नथी? पण आ शंका ए माटे उचित नथी, केमके अन्य कर्मो समान
ए कर्मोनी वर्गणाओ पण अलग अलग होवी जोईए, माटे तेनुं परस्पर संक्रमण थतुं नथी.
अहीं उपादाननी विशेषताने समजवा माटे आ वात अधिक ध्यान देवा योग्य छे के प्रतिसमय जेटला
विस्त्रचोपचय होय छे के जे सदाय आत्मप्रदेशो साथे एकक्षेत्रावगाही रहे छे ते समस्त एक साथे कर्मरूपे
परिणमता नथी. एवी अवस्थामां आ विस्त्रसोपचय आ समये कर्मरूपे परिणमे अने आ कर्मरूपे न