Atmadharma magazine - Ank 211
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : २११ :
परिणमे एवो विभाग कोण करे छे? योगद्वारा तो ए विभाग थई शकतो नथी, केमके विस्त्रसोपचयना
एवा विभागमां निमित्त थवुं ते तेनुं कार्य नथी. जे विस्त्रसोपचय ते समये कर्मपर्यायरूपे परिणमनारा होय
तेना बंधमां निमित्त थवुं एटलुं ज मात्र योगनुं कार्य छे. आ रीते कर्मशास्त्रमां बंध, संक्रमण अने
विस्त्रसोपचयना सम्बन्धमां स्वीकारेली आ व्यवस्थाओ उपर द्रष्टिपात करवाथी ए ज जणाय छे के कार्यमां
उपादाननी योग्यता ज नियामक छे अने ज्यारे उपादाननो कार्यरूपे थवानो स्वकाळ आवे छे त्यारे ज ते
अन्य द्रव्यने निमित्त करीने कार्यरूपे परिणमे छे.
प३. कर्म साहित्यमां बद्ध कर्मनी जे उदीरणा, उत्कर्षण अने अपकर्षण आदि अवस्थाओ बतावी छे
श्री पद्मनंदिमुनि जिनवाणीनी स्तुतिमां कहे छे के:–
हे जिनवाणी माता, तारी कृपा विना शास्त्र वांचवा–
सांभळवा छतां पण तत्त्वनो निर्णय थतो नथी. तो पछी तारा
आश्रय विना जीवने भेदविज्ञान केम थशे? जे जिनवाणीनी
उपासना नथी करता तेनो जन्म निष्फळ छे. जिनवाणी केवी छे के
पवित्र ज्ञान जळने राखवावाळी नदीस्वरूप छे, तुं त्रणलोकना
जीवोने शुद्ध करवानुं कारण छे अने तुं ज निश्चय आत्मतत्त्वनी श्रद्धा
करवावाळाने आनंदरूपी समुद्रने वृद्धि पामवामां चंद्रमा समान छे.
(गाथा ११ तथा र४ नो भावार्थ)