Atmadharma magazine - Ank 211
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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वैशाख : २४८७ : १३ :
समयसार : कर्ता – कर्म अधिकारनुं
ग. ७२ उपर प. गरुदवन प्रवचन
जामनगर ता. र४–१–६१

१. धर्मनी शरूआत भेदज्ञानथी थाय छे. ते माटे तेनी स्पष्टपणे जे रीत छे ते समजावे छे. देहथी
भिन्न अने पोताना भावोथी अभिन्न आत्मा छे एम जाणवा साथे क्षणिक विकार पुण्यपापनी लागणी
त्रिकाळी ज्ञानस्वभावथी भिन्न छे. एम भेदज्ञान थवुं जोईए. अशुभभाव–पापने तो दुःखदाता माने पण
शुभभाव पुण्यने भलुं–सुखदाता माने, कर्तव्य माने तो पण भेदज्ञान थतुं नथी अने दुःखना कारणने सुखना
कारण मान्या करे छे; तेथी दुःख मटतुं नथी.
शुभाशुभभाव छे ते जळथी विरुद्ध सेवाळनी जेम मेल छे. ज्ञानीनी भूमिका हो के अज्ञानीनी; पण
तेनी मर्यादा (शुभाशुभरागनी मर्यादा) संसार मार्गमां छे. आम होवाथी आस्रवो सदाय अपवित्र छे–कलंक
छे अने भगवान आत्मा तो सदाय अतिनिर्मळ चैतन्यमात्र स्वभावपणे अनुभवातो होवाथी अत्यंत
पवित्र छे– उज्जवळ छे.
३. वळी शुभाशुभ आस्रवो केवा छे? के सदाय तेओनुं जडस्वभावपणुं छे. स्व–परने जाणे ते चेतन.
पण तेनो अंशपण आस्रवोमां नथी तेथी तेओ सदा अचेतन छे. तेओ बीजावडे जणावायोग्य छे माटे पण
तेओ चैतन्यथी अन्य स्वभाववाळा छे, प्रकाश अने अंधकारनी जेम.
४. जेम प्रकाश अंधकारने उत्पन्न करी शके नहि अने अंधकार वडे प्रकाश उत्पन्न थई शके नहि तेवी
रीते आत्मा अने शुभाशुभ आस्रवोने सदाय अत्यंत भिन्नपणुं छे; आवुं भावभासनरूप स्पष्ट भेदज्ञान
प्रथम थवुं जोईए. आ विना व्रत, तप करे, शास्त्र वांचे, वनमां रहे, मौन रहे, अने राग पातळो पाडे पण
ते स्वयं अज्ञानभाव, अजाग्रतभाव होवाथी ते वडे कदी पण कोईने आत्मस्वभाव प्रगट न थाय. एवो
वीतराग मार्गनो कायदो छे. तेमां कदी कोई माटे पण अपवाद नथी.
प. सर्वज्ञनो कहेलो हितनो मार्ग माने नहि त्यां सुधी जीव संसारमां अनंतानंत अवतार करी करीने
अज्ञानवडे ज दुःखी थई रह्यो छे, बाह्यमां मजा पडती भासे तेओ दुःखने दुःख केम माने? न ज माने.
६. नियमसार टीकामां मुनिराज कहे छे के अनंत संसार दुःखथी छूटवानो उपाय बतावनार जिनेन्द्र
सर्वज्ञ देव छे, तेमना प्रत्ये जो तने श्रद्धा–भक्ति नथी तो याद राख के तूं अगाध जळथी भरेला समुद्रनी