Atmadharma magazine - Ank 211
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : २११
क्रमनियमित पर्याय मीमांसा
(श्री जैन तत्त्व मीमांसा अधिकार ७)
क्रमांक र०९ थी चालु (अनुवाद पृ. १६१ त्रीजी लीटीथी)
३७. आ पंचास्तिकाय अने तेनी टीकानुं वक्तव्य (स्पष्टीकरण) छे. तेना संदर्भमां (–गृह वातना
स्पष्टीकरणमां) नियमसार अने तत्त्वार्थसूत्रना उक्त कथनने वांचवाथी जाणवामां आवे छे के ते
(नियमसार अने तत्त्वार्थसूत्र आदि) ग्रंथोमां जे आ कह्युं छे के सिद्ध जीव लोकान्तथी उपर धर्मास्तिकाय न
होवाथी गमन नथी करता तो ए व्यवहारनय (उपचारनय) नुं ज वक्तव्य छे जे मात्र त्यां सुधी
निमित्तपणुं बताववा माटे करवामां आव्युं छे.
३८. मुख्य (–निश्चय) हेतु तो पोतपोतानुं उपादान ज छे. मुख्य हेतु कहो, निश्चय हेतु कहो के
उपादान हेतु कहो एक ज तात्पर्य छे. स्पष्ट छे के जे काळमां उपादाननी जेटला क्षेत्र सुधी गमन करवानी
अथवा जे क्षेत्रमां स्थित रहेवानी योग्यता होय छे ए काळमां ते पदार्थ एटला ज क्षेत्र सुधी गमन करे छे
अने ए क्षेत्रमां स्थित थाय छे, ए परमार्थ सत्य छे, परंतु ज्यारे ते गमन करे छे वा स्थित थाय छे त्यारे
धर्मद्रव्य गमनमां अने अधर्मद्रव्य स्थित थवामां उपचरित हेतु होय छे तेथी प्रयोजन विशेषवश एम पण
कही देवामां आवे छे के सिद्धजीव लोकान्तनी उपर धर्मास्तिकाय न होवाथी गमन करता नथी. जो के आ
कथनमां उपचरित हेतुनी मुख्यताथी कथन करवामां आव्युं छे. पण आ उपरथी एम फलित करवुं उचित नथी
के ए काळे उपादाननी योग्यता तो आगळ पण जवानी हती पण उपचरित हेतु न होवाथी सिद्ध जीवोनुं
तेनाथी उपर गमन न थयुं, कारण के एनाथी एवो अर्थ फलित करवाथी जे ऊलटो अर्थ थाय छे तेनुं वारण
करी शकातुं नथी.
३९. एटला माटे परमार्थ रूपे एम ज मानवुं उचित छे के वस्तुत: (खरेखर) कार्य तो प्रत्येक समये
पोताना उपादान अनुसार ज थाय छे, पण ज्यारे कार्य थाय छे त्यारे बीजुं द्रव्य स्वयं ज तेमां उपचरित
हेतु थाय छे. कोई कार्यनो मुख्य हेतु होय अने उपचरित हेतु न होय एवुं नथी पण ज्यारे जे कार्यनो मुख्य
हेतु होय छे त्यारे तेनो उपचरित हेतु होय ज छे एवो नियम छे.
४०. भावलिंग होतां द्रव्यलिंग नियमथी होय छे, ए विधि आ ज आधार पर फलित थाय छे. अमे
ए मानीए छीए के शास्त्रोमां लोकालोकनो विभाग उपचरित हेतुना आधारे बताववामां आव्यो छे परंतु
ए व्याख्यान करवानी एक शैली छे, जेनाथी आपणने ए बोध थई जाय छे के गतिमान जीवो अने
पुद्गलोनुं निश्चयथी लोकान्त सुधी ज गमन थाय छे, लोकनी बहार स्वभावथी तेमनुं गमन होतुं नथी.