Atmadharma magazine - Ank 211
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : २११ :
व्यवहारथी पण परनो कर्ता–भोक्ता के स्वामी थई शकतो नथी छतां माने छे. ए जूठी मान्यता छोडे
नहि त्यां सुधी चैतन्यचमत्कार अतीन्द्रिय ज्ञान हुं छुं एम जाणी शकतो नथी एटले के स्वानुभवनो कर्ता थई
शकतो नथी.
शरीरमां सुख–दुःख नथी, ए तो माटी छे, आ आत्मा पोताने दरेक समये भूले छे, तेना फळमां दरेक
समये एकलो दुःखी थाय छे. अंतरमां अतीन्द्रिय सुख छे एवी श्रद्धा करे त्यारे ज अंशे सुखनो अनुभव करी शके.
लोको बहारथी भलुं–भूंडुं थवानुं माने छे पण ते बहिरात्म द्रष्टि छे. आचार्यदेव तो जे मूळवस्तु छे ते
कहे छे. जगतने राजी करवुं ने जगतथी राजी थवुं ए आ वात नथी.
जे कोई आत्मा सर्वज्ञ परमात्मा थया तेने शक्तिरूपे सर्वज्ञता हती तेमांथी प्रगट थई अने त्रणकाळ–
त्रणलोकनुं संपूर्ण स्वरूप एक समयमां जाण्युं अने जेवुं जाण्युं एवुं वाणीमां कह्युं ए रीते अनंता सर्वज्ञ
परमात्मा थई गया तेमणे पण अनादिथी संसारी प्राणी केम दुःख थई रह्यो छे अने तेमांथी मुक्त थवानो
उपाय शुं ते कह्युं छे.
शिष्ये पूछयुं के–अमारे दुःख जोईतुं नथी छतां तेनो अंत केम देखातो नथी? तेने कहे छे के भाई! तुं
देहथी भिन्न आत्मा छो. तारी वस्तु सत्चिदानंदपणे छे, तेमाथी तुं जुदो नथी, एकमेक छो, पण तेम नथी
मानतो तेथी तारा क्षेत्रे बीजी चीजोने जोईने देह, देहनी क्रिया अने पुण्य–पापनी लागणी साथे एकताबुद्धि
करी रह्यो छे, ते भ्रम छे. वळी मारे लीधे परनां काम थाय अने तेना कारणे मारामां फेरफार थाय एम बे
द्रव्यनी एकतानी द्रष्टिथी परमां अने विकारमां कर्तापणुं मानी दुःखी थई रह्यो छे. कोई ईश्वर, कर्म, काळ,
क्षेत्र संयोग तने भूल करावे ने दुःख दे एवुं त्रण काळमां नथी.
आत्माज्ञानं स्वयंज्ञानं ज्ञानात् अन्यत् करोति किम ।
परभावस्य कर्ता आत्मा मोहोऽयं व्यवहारिणाम् ।। ६२।।
(श्री समयसार कलश)
आत्मा ज्ञानस्वरूपी छे. तेमां भेद आव्यो. “स्वयंज्ञान छे” तेमां अभेदपणुं आव्युं. अरे आत्मा! तुं
सदाय जाणनार–देखनार स्वरूपे ज छे. तारामां ज जाणवा–देखावानुं परिणमन थाय छे, ते तारुं कार्य (कर्म)
छे, ने तेनो तुं कर्ता छे. तेने भूलीने हुं परनो कर्ता छुं एम मानवुं ते सर्वे दुःखना मूळरूप भ्रमणा (मोह) छे.
जेटला संकल्प विकल्प ऊठे,–पुण्य–पाप, शुभ–अशुभ, काम–क्रोध, मानादि के दया, दान, व्रत, पूजा,
भक्तिना भाव थाय ए बधो रागद्वेषरूप विकार छे, तेनो हुं कर्ता छुं ने ए मारुं कर्तव्य छे एवी अज्ञानीनी
अनादिथी कर्ताकर्मनी प्रवृत्ति छे.
भगवान आत्मा सदाय पोताना ज्ञान–आनंद स्वभावने राखे छे. तेनी बधी शक्तिओ तेनामां
एकमेक छे. जेम काचा चणामां अंदरमां मीठाशनी शक्ति भरी पडी छे ते ज शेकवाथी प्रगटे छे; तेम आत्मामां
पूर्ण निर्मळ ज्ञानानंद स्वभाव सदाय भर्यो पड्यो छे पण वर्तमान भूलना कारणे पुण्य–पापनी विकृतदशा छे
ते कचाश छे. तेने पोतानुं स्वरूप मानवाथी, (तेनो कर्ता कर्म संबंध मानवाथी) ज्ञानानंदथी विपरीत एवी
दुःखदशानो आकुळतानो स्वाद लई रह्यो छे; अने ते दुःखने अज्ञानी सुख मानी रह्यो छे.
परवस्तुमां आत्मानो स्वाद नथी मेसुब, गुलाबजांबु वगेरे मोढामां मूके त्यां कल्पना करी राखे छे के
बहु सरस; पण गळा नीचे उतारवा पहेलां, मोढा सामे अरीसो राखी ते लोचाने जुए तो कूतराए वमन
करेली एठ जेवुं ज लागे; पण स्वादनी लोलुपता आडे आकुळतामां दुःख मानतो नथी. आत्मा अतीन्द्रिय
आनंदवाळो छे, तेमां जड वस्तुनो स्वाद कदी आवतो नथी.
जेम काचो चणो वाव्यो ऊगे छे; अने खातां स्वाद आवे नहि. पण शेकी नाखो तो वाव्यो ऊगे नहि