Atmadharma magazine - Ank 211
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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वैशाख : २४८७ : १९ :
अने मीठो स्वाद शक्तिमां हतो ते प्रगट थाय छे. तेम आत्मामां शक्तिरूपे अनादिथी सर्वज्ञ परमात्मपद छे.
आत्मा पोते ज पूर्ण ज्ञानआनंदथी भर्यो छे; तेने भूलीने अज्ञानी वर्तमान देह–ईन्द्रियो–अधूरुं खंडखंड ज्ञान
अने विकार जेटलो पोताने मानी, पोतामां भेद पाडे छे. अने जगत साथे (परसाथे) अभेद करे छे. ज्ञानी
परथी भेद पाडी पोताना स्वरूपथी पोताने अभेद करे छे. शरीर–ईन्द्रिय, आयु, श्वास, भाषा, मन ए जड
पदार्थ छे, तेना जेवो हुं नथी. जड ईन्द्रि हुं रस चाखतो नथी, जडना काम मारां नथी. पूर्वे स्व–परनी एकत्व
बुद्धिवडे परमां कर्ता–कर्मपणुंमानी दुःखी थयो हतो. हवे स्वलक्षे भेदज्ञान कर्युं त्यारथी सुखी थयो.
अज्ञानमां दुःखी थईने अनंतकाळ गुमाव्यो छे. एक क्षण पण सत्यधर्म सांभळ्‌यो नथी–मान्यो नथी.
धर्म–अधर्मनुं फळ जे समये करे छे ते ज समये पामे छे. क्रोध करे ते ज समये कलेशने पामे छे. क्षमा करे ते ज
समये समता छे. धर्म करे अहीं अने फळ परभावमां मळे एम नथी.
जेम अग्नि अने उष्णता एक छे, जुदां नथी; तेम पोते जाणनारो अंतरमां ज्ञायक स्वरूपे ज छे, जुदो
नथी. निजमां ज अतीन्द्रिय आनंद छे तेना उपर द्रष्टि करे तो आनंदनो अनुभव करे, जेम जळ अने मेलनो
भेद नहि जाणनार मेला जळने ज पीए छे तेम वर्तमान दशामां परलक्षे पुण्य–पापनी वृत्ति ऊठे छे, तेनी
उपर ज जेनी द्रष्टि पडी छे अने तेमां ज कर्ता–कर्मपणुं माने छे ते ज्ञातास्वभावनो विरोध करनार होवाथी
दुःखने ज अनुभवे छे.
चोरासीना अवतारमां अनंतवार करोडपति शेठ थयो, राजा थयो, रंक थयो, शास्त्रोने जाणनार
पंडित थयो के त्यागी थयो पण पोताना स्वरूपने भूलीने विकारने पोतानुं कार्य मानी त्रिकाळी चिदानंदनी
द्रष्टिनो अनादर करी रह्यो छे.
अरे आत्मा! आ शरीर तो परमाणुं–माटी छे, क्षणिक संयोगे आव्युं, तेनी मुद्त पूरी थतां छूटी जशे.
पूर्व भवमांथी कर्मनां रजकणने लईने माताना पेटमां आव्यो; जन्म्या पछी दूध, दाळ, भात वगेरे खाईने
मोटुं शरीर थयुं. ते कांई शाश्वत (कायमी) नथी, रोटला आदिरूपे जे परमाणु हता ते आ शरीररूपे थया छे.
रोटलाने वींछी करडे तो दुःख न माने पण अहीं शरीरने वींछी करडे तो राड पाडे छे केमके हुं आत्मा जाणनार
स्वरूप छुं, देह हुं नथी–एवी द्रष्टि करी नथी.
आ शरीर, वाणी वगेरे पर छे, तेनां कार्य स्वतंत्र तेनाथी ज थाय छे एम जेने न भासे तेने
शुभअशुभभाव हुं नथी ने ए मारुं कार्य नथी एम कदी नक्की न थाय.
शिष्ये पोताना हित माटे जिज्ञासाथी पूछ्युं छे के अनादिथी धारावाही अज्ञानमय कर्ताकर्मनी प्रवृत्ति
चाली आवे छे ते केम मटे? तेने कहे छे के प्रभु! वस्तुनो स्वभाव पोतपोतामां होय, परमां न होय; तारुं
सामर्थ्य जाणवा–देखवारूपे तारामां छे, तेनी प्रतीति तें न करी, तेनाथी आ दुःखरूप दशा छे. त्रिकाळी
निर्वकारस्वभावथी ऊलटी चीज पुण्य–पापरूप शुभअशुभ लागणी छे, तेने दुःखरूपे (दोषरूपे) जाणे तो
त्रिकाळी स्वभावना लक्षे मलिनतानुं कर्ताकर्मपणुं छूटे.
जेम पीपरना दाणे दाणे परिपूर्ण तीखाश अने लीलप अंदर भरी छे, पण बहारथी देखो तो तेनुं
खरुं रूप नक्की न थाय, तेम दरेक आत्मामां अत्यारे पण पूर्ण ज्ञान–आनंदमयशक्ति छे पण तेने बहारथी
देखो तो तेनुं खरुं स्वरूप न जणाय पण ज्ञानीनो यथार्थ उपदेश सांभळी तेनुं स्वरूप समजे अने तेनां
श्रद्धा–ज्ञान अने एकाग्रतारूप उपाय करे तो ते प्रगट थाय छे.
निमित्त (–संयोग) तरफथी जोनार तेनी अज्ञान