: २० : आत्मधर्म : २११
द्रष्टिथी जोवा मागे छे पण तेना वडे अंदरनी पूर्ण शक्ति देखाय एवी नथी. पीपरना कटका करो तो तीखाश
न देखाय पण तेमां तीखाश पूर्ण शक्तिपणे भरी छे एम प्रथम विश्वास करी घसवानुं चालु राखे तो देखाय.
ते पूर्ण तीखाशरूप धर्म क्यांथी आव्यो? पूर्वनी पर्यायमांथी नथी आव्यो, पथरामांथी नथी आव्यो पण
अंदरमां तेनी शक्ति हती ते प्रगट थाय छे. तेम आत्मामां सिद्धांत समजी लेवो.
न्यायथी कहेवाय छे, समज्या विना मानी लेवानी वात नथी. ‘न्याय’ शब्दमां ‘नी’ धातु छे. ‘नी’
एटले लई जवुं, दोरी जवुं;–जेवुं वस्तुनुं स्वरूप छे तेमां ज्ञानने दोरी जवुं तेने न्याय कहे छे.
ज्ञाननी स्वतंत्र ताकात छे एम भास्या विना जडनी स्वतंत्रता अने ताकात मान्यामां न आवे. कोई
कहे के एक पीपरना दाणामां पूर्ण तीखाशनी शक्ति नथी पण घणा भेगा मळे तो थाय एम पण नथी. दरेक
दाणामां तीखाश स्वतंत्र अने पूर्ण छे. तेम दरेक आत्मा देहथी जुदो अने पोताना स्वरूपमां परिपूर्ण छे,
वर्तमान दशामां संसारीपणानो भेद गौण करीने जोतां दरेक आत्मा परमात्मा समान शुद्ध छे.
मोरनुं इंडुं नानुं छतां तेमां जे कस छे तेमां शक्तिरूपे पूर्ण कळाकार मोर छे, तेनुं एन्लार्ज ते पूर्ण मोर
छे. इंडाने हाथमां लई खखडावे, ईन्द्रिय ज्ञानथी जोवा मागे तो मोर न देखाय तेथी शुं तेमां नथी?
वर्तमानमां ज तेमां पूर्ण शक्ति छे, ते वधीने मोर थाय छे. तेम भगवान आत्मा शरीर, वाणी, मन अने
जडकर्मथी जुदो छे, पुण्य–पाप विकार छे, ते आत्माना हित माटे बेकार (व्यर्थ) छे, वस्तु स्वभाव समज्या
विना अज्ञानीनां मानेलां व्रत–सामायिक आदि बधां मींडा छे.
आ जीव घणां शास्त्रो भण्यो छे, आ जीव व्रत–तप–त्याग घणा काळथी करे छे. माटे धर्मी छे, एम
कोई कहे तो एम नथी. लोको पैसावाळाने सुखी माने छे जो खरेखर एम होय तो पांच हजारे थोडो सुखी
अने पचास हजारे वधु सुखी एम होवुं जोईए, पण एम नथी; घरे लाख–करोड रूपिया होय पण शरीरमां
रोग आवे अथवा स्त्री–पुत्रादि माने नहि तो दुःखी थाय छे. रूपिया ते वखते केम सुख आपता नथी?
बहारथी सुख जोनारने क्यांय सुख नथी. कोई परवस्तु सुख–दुःख दाता नथी पण अज्ञानीनो मिथ्या
अभिप्राय ज दुःखदाता छे. एम जाणे तो सुखनो साचो उपाय करे.
खादीला (–खोटवाळा) बे प्रकारना होय छे.
१–बहारमां लखपतिनी आबरू होय पण अंदरमां करजदार होय ते खादीलो छे.
२–पांच लाखवाळो पचीस लाखवाळाने जोईने पोताने खोटवाळो माने छे.
अज्ञानी जीव पुण्यबंधनथी अने संयोगथी सुखने ईच्छे छे पण भगवान आत्मा पुण्य–पाप–
विकारथी अने संयोगथी पेले पार छे. अंदरनी आनंद संपदाथी जे पोताने सुखी न माने पण पुण्यना
संयोग होय तो ठीक पडे. एम माननारा पूरेपूरा खादीला छे.
भगवान आत्मा अंतरमां पोतानी अनंत ज्ञानानंद आदि शक्तिओनी प्रभुताथी पूर्ण छे, तेना उपर
द्रष्टि करे (तेनो ज आदर–आश्रय करे अने पुण्य–पापनो आदर–आश्रय न करे) तो विकार मारुं कार्य ने हुं
तेनो कर्ता–एवी अनादिनी मिथ्याद्रष्टि छूटी जाय छे ते जीव स्वतंत्रतानी श्रद्धा अने आत्मशान्तिनी सुगंधमां
आव्यो, तेने अपूर्व धर्मनी शरूआत थई एम कहेवामां आवे छे.
कोईनो प्रश्न हतो के आ देह मळ्यो ते पहेलां पूर्व भवमां हुं हतो के केम ते याद आवतुं नथी, तो त्यां
सुधी आत्मा त्रिकाळ छे एम केम मानवुं? तेनो उत्तर छ मासनुं शरीर हतुं त्यारे शुं हतुं ते अत्यारे याद