: २२ : आत्मधर्म : २११
साची जिज्ञासा अने अभ्यास वडे
आत्मानी ओळखाण करवी
(जामनगरमां समयसार कर्ताकर्म अधिकार गाथा ७१–७र उपर पूज्य गुरुदेवनुं प्रवचन)
(महासुद ६ संवत २०१७, ता. २२–१–६१)
शुभाशुभ भावनुं स्वामित्व छे ते भ्रान्ति छे, ज्ञान थतां ज
भ्रान्ति टळी जाय छे जेम जळमां सेवाळ छे ते मेल छे, तेम
आत्मानी वर्तमानदशामां जे शुभाशुभभाव छे ते मेल छे,
अनात्मा छे, आत्मभाव नथी. हुं तो अरागी परमेश्वरपदनो
धारक त्रणेकाळे ज्ञानस्वभावी छुं, रागादि मारुं कर्तव्य नथी,–आम
साची जिज्ञासा अने अभ्यासवडे आत्मानी ओळखाण करे तो
साचा सुखनो अनुभव थाय...
आत्मा अनादिनो छे, तेनुं ज्ञान जीवे एक समय पण कर्युं नथी. पुण्य–पाप विकार तेनी वर्तमान
अवस्थामां थाय छे, ते एक क्षणनो संसारभाव छे; ऊंधा पुरुषार्थथी जीव करे छे तो ते थाय छे, त्रिकाळी
निर्मळ स्वभावनी द्रष्टि अने स्थिरता जीव करे तो ते (अनित्य होवाथी) टळी शके छे.
शिष्ये पूछ्युं हतुं के प्रभु! आ अज्ञानमय कर्ताकर्मनी प्रवृत्तिनो अभाव केम थाय? तेनां उत्तर रूपे
गा. ७१ मां कह्युं के जीव ज्यारे साचा पुरुषार्थवडे स्वसन्मुख थाय एटले के त्रिकाळी ज्ञायक स्वभावी
आत्माना अने मिथ्यात्व रागादि आस्रवोना तफावतने जाणे त्यारे तेने बंधन थतुं नथी. त्रिकाळी ज्ञानस्व–