सामर्थ्य जाणी अंतरमां पूर्णस्वरूपनी रुचि करवी ए धर्मनुं मूळ छे.
बंधनो निरोध थाय छे.
अपूर्व अने यथार्थ वात समजवा माटे एकाग्रताथी तेना भावने पकडवो जोईए. अहीं भेदज्ञाननी
कहेल छे.) आस्रवो अशुचि, विपरीत, अने दुःखनां कारण छे; अने आत्मा सदा पवित्र, निर्मळ अने सुखनुं
कारण छे; एम जाणीने जे जीव ज्ञानस्वभावनो आदर करनारो थाय छे, (स्वसन्मुख द्रष्टि करे छे,
ज्ञानस्वभावनुं अनुसरण करनारो थाय छे), ते जीव आस्रवोथी निवृत्ति करे छे.
जाय, बगडेलने सुधारी दउं एवी मान्यता करे छे ते मोटो भ्रम छे. तेमां ज्ञातास्वभावी चैतन्यनी मोटी हिंसा
छे, शुभाशुभभाव मारुं कर्तव्य छे, ते मने हित करे छे ए मान्यता मिथ्यारुचिवाळी होवाथी स्वभावनी
हिंसारूप छे.
छे. बे कषायनी चोकडीना अभाव पूर्वक ज पांचमुं गुणस्थान होय छे, त्यां तेने योग्य दया, दान, पूजा,
भक्ति उपरान्त अणुव्रतना शुभभाव होय छे. मुनिदशामां त्रण कषायना अभाव पूर्वक महाव्रतादि २८
मूळगुण होय छे ते रागभावोने तेओ आस्रव–(मेल) माने छे. (जेम जळमां सेवाळ छे ते मेल छे तेम.)
छे. शरीरनो रोग ते रोग नथी. शुभाशुभभाव बेउ विकार छे, तेनाथी पोतानुं होवापणुं मानवुं, हित मानवुं,
तेमां कर्ताकर्मपणुं मानवुं ते मोटो रोग छे. कह्युं छे के:–
पाप–रागादि भाव छे. तेनी रुचि ते मोटो रोग छे, त्रिकाळीज्ञानस्वभावनी अधिकताना अनुभववडे ते रोग
टळे छे. आवो उपाय समजे तो तेमां स्वसन्मुखतारूप विचार अने ध्यान ते उपादान कारण छे अने गुरु
आज्ञा निमित्त कारण छे. ज्यां जीव निश्चयथी जाग्यो त्यां व्यवहार अने तेनुं ज्ञान होय छे. संयोग–निमित्त
अने व्यवहार उपर अज्ञानीनी द्रष्टि अने वजन छे; तेथी “प्रथम व्यवहार जोईए, जोईए” एम मानी