(९) अखंडित प्रतापवंत स्वातंत्र्यथी शोभायमान आत्मानी प्रभुता
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चाल्या आवता मिथ्यात्व प्रतिपक्षी उपर विजय प्राप्त करवा माटे जेओ प्रेरणा
आपी रह्या छे, जेओ अर्हंतने द्रव्यपणे, गुणपणे अने पर्यायपणे जाणीने,
निजात्माने जाणवानो अने ए ज विधि वडे मोहक्षय करवानो तथा निर्वृत
थवानो अफर उपदेश आपी रह्या छे, जेओ आत्मपरायण होवाथी अफर
आत्मपरायणतानो अमोघ बोध आपी रह्या छे, जेओ चैतन्य भाव प्राण
धारण रूप अफर जीवत्वनुं दर्शन करावी रह्या छे, जेमना श्रीमुखे ‘पुरुषार्थ,
पुरुषार्थ’ ना अफर पडकार आवे छे, जेमनी तत्काळ बोधक वाणीमां भवना
अभावरूप स्वभावना अफर भणकारा वागे छे, जेओ अफर पदवीना परम
उपासक छे अने शिवरमणी वरवा माटे अफर पगले प्रयाण करी रह्या छे
एवा परमोपकारी पू. गुरुदेवश्रीनी अफर आज्ञाओनुं पालन करीने, आपणे
तेमना अफर अनुयायी बनीए. एवी भावना साथे आजना मंगलमय दिने
तेमने विविधरंगी भक्ति पुष्पोथी अत्यंत उल्लसित भावे वधावीए छीए.