: १० : आत्मधर्म : २१२
सांसारिक कार्योने पहेलो अने धर्मनो छेल्लो
नंबर आपे तो –
तारो नंबर दुर्गतिमां ज छे
(जामनगरमां पद्मनन्दि पंचविंशतिना दान अधिकार उपर पूज्य गुरुदेवनुं प्रवचन)
ता. २२–१–६१
आजे पार्श्वनाथ प्रभुना केवळज्ञान कल्याणकनो उत्सव मनाववामां आव्यो छे. संपूर्ण वीतराग थाय
ते संपूर्ण प्रकारे एक समयमां सर्वना ज्ञाता–सर्वज्ञ थाय तेमणे प्रथम वीतरागी द्रष्टि प्रगट करी अने पछी
वीतरागी स्थिरतारूप चारित्रदशा आत्मामां प्रगट करी तेथी सर्वज्ञपद–केवळज्ञान प्रगट थयुं.
निश्चय सम्यग्दर्शन सहित मुनिपद पूर्वक अंतरमां पूर्णएकाग्रता (पूर्ण मोक्षमार्ग) थतां पूर्ण ज्ञान
प्रगट थयुं तेमणे जगतने शुं बोध दीधो ते कुन्दकुन्दादि आचार्य कही गया छे. १८ दोष रहित अर्हन्त
परमात्माने सर्वज्ञ कहेवाय छे. अर्हन्तपद कोई राजानुं नाम नथी, पण श्री एटले अंतरंगमां शुद्धता थतां
प्रगट थती केवळज्ञानरूपी आत्मलक्ष्मीने श्री कहेवामां आवे छे. अने ते दशा जेणे प्राप्त करी छे तेमने अर्हन्त
कहेवामां आवे छे.
मोटी पदवीवाळाने तो जगत ओळखे छे, पण अंतरमां संयोग अने विकारथी निरपेक्ष पूर्ण शक्तिनो
भरोंसो अने पूर्ण स्थिरता–वीतरागतावडे पूर्ण सर्वज्ञदशा प्रगट थाय छे तेनी ओळखाण जगतने नथी.
आचार्ये द्रष्टान्त कहेल छे के आकाशमां ऊडता बगलानी संख्या नक्की करवा माटे जेम जन्मांध पुरुष
कोई देखतानी साथे होड बके, तेम अज्ञानी मोक्षमार्ग आम होय, सर्वज्ञ नथी, एम व्यर्थ होड बके छे.
शास्त्रना अर्थ पोताने गोठे तेम करे तो मूळ वस्तु समजाय नहि. एक जन्मांधने जमतीवेळा कोईए
पूछ्युं के दूध आपुं? तो कहे के दूध केवुं होय? जवाब आप्यो के धोळुं. धोळुं केवुं? तो कहे के बगलानी पांख
जेवुं. वळी पूछ्युं के पांख केवी? तो हाथथी आकारनी संज्ञा बतावी. त्यारे अंध कहे छे के अरे! ए चीज भात
साथे केम खवाय? जेम तेने रंगने बदले आकार उपर लक्ष चाल्युं गयुं तेम मूळ वस्तुने नहि जाणनारा
आंधळा जेवा छे.
अहीं न्यायथी नक्की करी शकाय छे के–कोईने