द्वि. जेठ : २४८७ : ११ :
बहु ज अल्प ज्ञान अने घणा रागादि होय छे तो कोईने विशेषज्ञान अने शान्ति होय छे. अल्प पुरुषार्थ वडे
थोडा रागादि टळी शके छे अने ज्ञान वृद्धि पामे छे तो उग्र अने पूर्ण पुरुषार्थ वडे सर्वरागादि दोषोनी हानि
अने ज्ञानादिनी पूर्णदशानी प्राप्ति कोईने होई शके छे. दोषनी अंशे हानि उपरथी तेनी सर्वांशे हानि थतां
पूर्ण सर्वज्ञताने धारण करनार कोई आत्मा छे एम साबित थाय छे.
जे त्रणकाळ त्रणलोकवर्ति सर्व पदार्थने सर्व प्रकारे एक समयमां जाणे ते सर्वज्ञ छे. तेमना द्वारा पूर्ण
शुद्धतारूपी मोक्ष अने मोक्षनो उपाय, संसार (–दुःख) अने दुःखना कारणरूप पुण्य–पाप, आस्रव अने
बंधतत्त्व, तथा निमित्तमां अजीवतत्त्व वगेरे स्पष्टपणे बताववामां आव्युं छे.
आत्मा स्वयंज्ञानस्वरूप होवाथी स्व–परने जाणवानुं अनंत सामर्थ्य धरावे छे. जेम कालनी वात याद
आवे ते ज रीते ६०–७० वर्षनी जूनी वात पण तरत ज याद आवी शके छे, युवानीमां करेला तीव्र क्रोधादि
याद करतां ते वर्तमानमां थई आवता नथी पण तेनुं ज्ञान एकलुं याद आवे छे. तेम संयोग अने
विकाररहित अनादि अनंत हुं पूर्णज्ञायक स्वभावी छुं एवो अनुभव करी सर्वज्ञतानी प्रतीति करी शके छे
अने ते ज जीव उग्रभेदज्ञानद्वारा विकारने दूर करी, त्रिकाळी निर्विकार ध्रुवशक्तिमां एकाग्र थाय तो पूर्ण
निर्मळदशा प्रगट करी शके छे.
ज्ञानमां तोल (वजन) नथी. ७० वर्षमां हजारो ग्रंथ वांच्यानुं याद रहे छे, लाखो वर्षना
आयुवाळाने अनेक लाखो ग्रंथ धारणामां रहे छे, छतां तेनो भारतोल होतो नथी ए उपरथी आत्मा सदा
अरूपी, (स्पर्श, रस, गंध, वर्ण विनानो), रागादी दोष रहित अने अखंड अक्रमज्ञानवाळो छे.–एवुं एनुं
स्वरूप ज्ञानमां ज्ञानवडे सिद्ध थाय छे.
सर्वज्ञ परमात्मा थया तेमणे एम फरमाव्युं छे के–दरेक आत्मा सत्चिदानंदमय पूर्ण संपदावाळो छे,
तेने कोई काळ, क्षेत्र के जडकर्म जड बनावी दे एवुं नथी. जेटलुं सिद्ध परमात्मामां पूर्ण सामर्थ्य छे तेटलुं
तारामां अत्यारे पण पूर्ण सामर्थ्य छे. तेनी हा पाड, आदर कर तो अल्पकाळे मोक्षने पामीश, भाविनिर्वाणने
पात्र था. भगवाने आवुं अक्षयदान आत्मामांथी काढीने आत्माने देवानुं कह्युं छे.
ज्यारे तीर्थंकर भगवानना गर्भ, जन्म, दीक्षा, केवळज्ञान अने निर्वाण कल्याणक थाय छे त्यारे
स्वर्गमांथी देवो अने तेना ईन्द्रो नीचे आवीने तेनो महान उत्सव मनावे छे, २४७७ वर्ष पहेलां देवोनां
टोळां अहीं आवतां हतां.
सर्वज्ञ परमात्माए त्रणकाळ त्रणलोकने प्रत्यक्ष जोया, तेमनी वाणीमां संसारदुःखथी मुक्त थई
पूर्णानंदरूप थवानुं फरमान छे. कर्म, निमित्त, काळक्षेत्र, रोग जीवने रोकी राखे सत्य समजवा न दे–अंतरमां
ठरवा न दे एम माननारा तीर्थंकरनी वाणीने समज्या ज नथी. तेओ बे द्रव्यनी एकतानी बुद्धिवडे
स्वतंत्रतानी द्रष्टिनो–मोक्षना मूळ साधननो नाश करनारा छे, आत्महित माटे पुरुषार्थ अत्यारे न थई शके
एम कहेनारनी वात सांभळवा योग्य नथी.
सर्वज्ञ परमात्माए प्रयोजनभूत तत्त्वो प्रथम जाणीने शुद्धात्मामां ज ढळवानुं कह्युं छे.
तुं त्रणेकाळे ज्ञानआनंद स्वभावी जीव छो अने जेनामां किंचितमात्र ज्ञान नथी ते अजीवद्रव्यो छे. ते
पांच प्रकारना छे, ते ताराथी जुदा छे; ते तने लाभ–नुकशान करवा समर्थ नथी. तुं पण परनुं कांई करवा
समर्थ नथी. तारी ऊंधाईथी तारी दशामां शुभ अथवा अशुभभाव तुं करे छे. ते बेउ विरूद्धभाव छे–मेल छे,
तेने आस्रवतत्त्व कहेल छे, तेनाथी बंधन ज थाय छे. जे भावे बंधावुं थाय ते भावथी कोईने पण