Atmadharma magazine - Ank 212
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : २१२
आत्मामां निर्मळ–श्रद्धाज्ञान–एकाग्रता द्वारा मिथ्यात्व–रागादिरूप अशुद्धतानुं रोकावुं ने अंशे अंशे
आत्मामां विशेष पुरुषार्थद्वारा शुद्धिनी वृद्धि अने अशुद्धिनी हानि ते निर्जरातत्त्व छे.
स्वभावथी च्युत थई पुण्यपापमां अटकवुं ते मलिनभाव–बंधतत्त्व छे.
पूर्ण निर्मळदशा ते मोक्षतत्त्व छे, जेम बीजने बाळी नाख्या पछी ते ऊगे नहि तेम सर्वथा संसारना
कारणरूप दोषनो नाश कर्या पछी जेने मोक्षदशा–सिद्धपरमात्मदशा प्रगटे छे ते सिद्ध भगवान फरी कदी
संसारमां अवतार ले नहि.
“मोक्ष कह्यो निज शुद्धता ते पामे ते पंथ,
समजाव्यो संक्षेपमां सकलमार्ग निर्गं्रथ.”
सर्वज्ञ तो संपूर्ण वीतरागी छे. ईच्छा विना एकाक्षरी “कारमय ध्वनि सर्वांगथी खरे छे. होठ, मुख
बंध होय छे. तेमनी वाणीमां एम आव्युं के जीवनां कार्य जीवथी थाय, अजीवथी नहि; अने अजीवनां कार्य
अजीवथी थाय. जीव तेमां कांई करी शके नहि. जीव पोतानां अपराधथी दुःखी छे; पुण्य–पाप, रागद्वेषमोह
आस्रव छे, ते दुःखदाता छे, बंधनुं कारण छे. बंधनां कारणोने आस्रव कहे छे. मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद,
कषाय अने योगरूप आत्माना अशुद्धभाव ते स्वभावथी विरूद्धभावने आस्रव कह्या छे. निर्मळ एकरूप
सामान्य स्वभावमां एकाग्रताद्वारा शुद्धि थवी ते संवर छे, तेमां अशुद्धता अटके छे. बंधनो अंशे अभाव
अने अंशे शुद्धिनुं वधवुं ते निर्जरा छे पूर्ण शुद्धता ते मोक्ष छे.
प्रत्येक द्रव्य अनादि–अनंत छे, स्वतंत्र छे, पोताथी छे, परथी नथी; पोतपोताना भावमां ज उत्पाद–
व्यय ध्रौंव्यसहित छे; पोतानी सत्ताने कदी छोडता नथी, पररूपे, परनां काम करवारूपे कोई कदी थता नथी,
त्रणेकाळे टकीने बदले छे. तेमां जीवद्रव्य जाणनार छे, ते पोताने भूली परने पोतानुं माने छे, पुण्य–पापमां
रुचि करे छे; तेथी दुःखी थाय छे. तेना सुख–दुःखनो कोई अन्य कर्ता–हर्ता नथी पण पोते ज दरेकक्षणे
पोतानी नवी अवस्थाने उपजावे छे,–जूनीने बदलावे छे ने पोते अनंतगुणरूप निजशक्तिने एवी ने एवी
टकावी राखे छे.
श्री समंतभद्र आचार्य कहे छे. के–हे भगवान? दरेक पदार्थनुं एक समयमां ज उत्पाद–व्यय ध्रुवपणे
दरेक पदार्थ स्वतंत्र छे, नित्य छे, ते समये समये परिणमन करे छे, तेने बीजो कोण करे?
जेम ‘साकर’ एवो शब्द छे ते वाचक छे; अने साकर एवो पदार्थ छे ते वाच्य छे, ने तेवुं ज्ञान स्व–
जेम कोथळीमां ७३प) रूपिया मूकया होय ने बे रूपिया ओछा नीकळे तो तपास करे; तेम चौद राजु
प्रमाण लोकमां छ द्रव्यो सर्वज्ञ भगवाने जोया छे ने ते छयेने त्रणेकाळे स्वतंत्र जोया छे. ते शी रीते छे तेनो
सर्वज्ञनी वाणीथी (शास्त्रथी) ज्ञानथी अने पदार्थनी मर्यादाथी जाणीने यथार्थ निर्णय करवो जोईए.
नवतत्त्वो, देव–गुरु–शास्त्र अने धर्मनुं स्वरूप प्रथम नक्की करवुं जोईए; तेनाथी विरुद्ध कहे तेने विरुद्ध
जाणवुं जोईए.