Atmadharma magazine - Ank 212
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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द्वि. जेठ : २४८७ : १३ :
जीव अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध अने मोक्ष ए नवतत्त्वने तेना स्वरूपसहित
नवतत्त्वोने शुद्धद्रष्टिथी जाणनाराने अशुद्धनयना विषयनुं ज्ञान होय छे, अने भूमिकानुसार पुरुषार्थ
दूधपाक आदिनो स्वाद कोईपण जीवने आवतो नथी केमके ते दूधपाक खाई शकतो नथी पण रागने
खाय छे, अनुभवे छे. आत्मामां रागरहित निराकुळ आनंदनो स्वाद आवे छे ते आत्मानो स्वाद छे.
धर्मी जीवने तो, परमाणु मात्र मारुं नथी, एवी निर्मोही द्रष्टि होवाथी दाननो विवेक होय छे.
पण धर्मादाखानुं चोपडामां राखे, शुभखातामां दाननी रकम काढे तेमां गोटाळो करे; दान देवा टाणे
श्री कार्तिकेयस्वामी अनुप्रेक्षामां लखे छे के–गृहस्थोए पेदाशना प्रमाणमां थोडामां थोडो १०मो भाग
छोकराना लग्न टाणे खरच करतां लोभ न करे अने धर्म कार्योमां लोभ करे तेने पुण्यरूपी व्यवहारधर्म
जेने वर्तमान उपर ज द्रष्टि छे, अनुकूळतानी प्रीति छे, तेने ते ज समये प्रतिकूळता प्रत्ये तीव्रद्वेष
आचार्य कहे छे के–हितने माटे दाननो उपदेश छे, जेमने ते न रुचे तेओ घुवडने जेम सूर्य न गमे
दरेक वस्तुनी स्वतंत्रता सांभळी ज्यां एक समयमां नवी अवस्थानुं थवुं, जूनीनुं जवुं अने वस्तु
जे पुरुष दान देतो नथी, संग्रह करवामां माने छे ते एकलो खानारो छे; तेनुं खावुं रंक समान दीन–