: १६ : आत्मधर्म : २१२
अने
(राजकोट शहेरमां नियमसार गाथा ३८ उपर पूज्य गुरुदेवनुं प्रवचन)
(ता. १०–२–६१ शुक्रवार)
आ नियमसार शास्त्र छे. नियमसार एटले आत्मानी निर्मळदशा अर्थात् निश्चय मोक्षमार्ग. निश्चय
मोक्षमार्ग कोने कहेवो ते जीवे रुचिपूर्वक सांभळ्युं नथी. सत्य सांभळी सत्यनी प्रियता कदी करी नथी, पण
सत्ताप्रियता करी छे. सत्ताप्रियतामां पुण्य–पापनां अभिमान कर्यां छे. परनुं तो जीव कांई करी शकतो नथी.
वर्तमान ईन्द्रियज्ञान जेटलो उघाड, अल्पबळनो प्रगट अंश देखाय छे ए हुं अने एटलो हुं,–एम मानी अंशनुं
अभिमान कर्युं छे; पण पूर्ण ज्ञानानंद भगवान अंतरमां पड्यो छे तेनी द्रष्टि–रुचि एक समय पण करी नथी.
आत्मा क्षणे–क्षणे विचार करे. विकल्प करे के आ शरीरनी क्रिया करुं. पण तेथी शरीरनी अवस्था थई
एम नथी. शरीरने लकवो थाय त्यारे अंदर आत्मा तो छे. ते ईच्छा करे–प्रेरणा करे छतां परमां तेनुं धार्युं न
थाय, केमके ते चैतन्यनी क्रिया नथी. आत्मा राग करे अथवा सम्यग्ज्ञान करे एम पोतानी अवस्थामां पलटो
करवानी आत्मानी ताकात छे.
पर्याय, परि–समस्त प्रकारे पोताना भेदने पामे–प्राप्त करे तेने पर्याय कहीए. दरेक द्रव्यमां समये–
समये पोतानी सत्ता छोड्या विना (स्वजातिने नहीं छोडीने) अवस्थान्तर थाय छे तेने पर्याय कहे छे.
चैतन्य चैतन्यनी अने जड जडनी जात जाळवीने निरंतर पोतानी पर्याय करे छे, परनी न करे, आवी
स्वतंत्र सत्नी वात गळे उतारवी कठण पडे छे. एक समयमां उत्पाद–व्यय–ध्रौव्ययुक्त सत् छे; एवुं सत् ते
द्रव्यनुं लक्षण छे. सर्वज्ञ वीतरागनी वाणीमां ए आव्युं के आत्मा–परमाणुं वगेरे दरेक द्रव्यने एक समयमां
त्रण अंशो सदाय वर्ते छे. दरेक क्षणे नवी दशानी उत्पत्तिपूर्वक पहेलांनी पर्यायनो व्यय अने वस्तु पोतानी
जातने जाळवीने ध्रुव रहे छे. देह जड छे, तेनी कोई अवस्था करवानुं सामर्थ्य जीवमां नथी.
जड अने चैतन्य दरेक पोतानी पर्याय शक्तिथी परिणमे छे, जीव जडनुं करे ए मान्यतामां जीवनी
मोटी भूल छे.
श्रीमद्राजचंद्रजीए कह्युं छे के–‘भगवान आत्मा पोताना सर्वगुणे सम्पन्न तो खरो पण तेनी वर्तमान
पर्यायमां अपलक्षणनो पार नथी.’ तेओ तो ज्ञानी हता. वर्तमान दशामां पुण्य–पाप, दान, दया वगेरेनी
वृत्ति ऊठे छे, तेनाथी ज्ञान गोळो छूटो पडी आत्मसाक्षात्कार तो तेमने थयेलो. तेओ कहे छे के आत्मा तो
पूर्ण