Atmadharma magazine - Ank 212
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 7 of 21

background image
: : आत्मधर्म : २१२
७०. आ ज प्रकारे आ कथन पछी फरी पण घणा प्रकारे श्री अमृतचंद्राचार्ये बन्ने नयोना विषयोने
उपस्थित करीने तेना बे पक्षपात बताव्या छे अने अन्तमां कह्युं छे के जे तत्त्ववेदी पक्षपातथी रहित थाय छे
तेने चित्स्वरूप आ जीव निरन्तर चित्स्वरूप ज छे. तेथी जे आ कहेवामां आवे छे के मोक्षमार्गमां साधकने माटे
एक मात्र निश्चयनय (निश्चयनयनो विषय) आश्रय करवा योग्य होवाथी तेनो ज पक्ष ग्रहण करवो जोईए
एम कहेवुं क््यां सुधी उचित छे ए विचारणीय थई जाय छे. आ स्थिति उपर पूर्ण रीते विचार करवाथी
शंकाकार कहे छे के अमने तो अमृतचंद्राचार्यनुं आ वचन ज उपयोगी जणाय छे. ते वचन आ प्रकारे छे–
उभयनयविरोध ध्वंसिनि स्यात्पदांके
जिनवचसि रमन्ते ये स्वयं वान्तमोहाः ।
सपदि समयसारं ते परं ज्योतिरुच्यै–
रनवमनयपक्षाक्षुण्णमीक्षन्त
एव ।। ४।।
“निश्चय अने व्यवहार ए बे नयोना विरोधने नाश करनारूं ‘स्यात्’ पदथी चिन्हित जिनवचनमां
मोहनुं स्वयं वमन करीने जेओ रममाण थाय छे (प्रचुर प्रिति सहित अभ्यास करे छे) तेओ नयपक्षथी
रहित, सनातन अने अतिउत्कृष्ट परम ज्योतिस्वरूप समयसारने शीघ्र देखे ज छे. ४.”
७१. आ एक प्रश्न छे के जे दरेक विचारकना चित्तमां घर करी गयेल छे अने आथी ते एम मानवा
लागे छे के मोक्षमार्गमां जेटलुं निश्चयनयने महत्व देवामां आवे छे तेटलुं ज व्यवहारनयने पण महत्व देवुं
जोईए, केमके एम कर्या विना एकान्तनो आग्रह थई जवाथी ते मोक्षमार्गी थई शकतो नथी.
७२. समाधान ए छे के ज्यां सुधी जीवनुं स्वरूप अने तेनी बंधयुक्त अवस्था साथे निमित्त–
नैमित्तिक–भाव आदिने जाणवानो प्रश्न छे त्यां सुधी तो ए बन्ने नयोना विषयने हृदयंगम करी लेवा
आवश्यक मानवामां आव्या छे तेमां संदेह नथी. ज्यां ते एम जाणे छे के द्रव्यार्थिकद्रष्टि (परमभावग्राही
निश्चयनय) थी ज्ञायक स्वभाव हुं एक छुं, नित्य छुं अने ध्रुवभावरूप छुं. आ जे नर–नारकादिरूप
विविधपर्यायो अने मतिज्ञानादिरूप विविध भाव द्रष्टिगोचर थई रह्या छे ते मारा त्रिकाळी ध्रुवस्वभावमां
नथी, त्यां ते एम पण जाणे छे के व्यवहारद्रष्टिथी (पर्यायार्थिकनयथी) वर्तमानमां जे नर–नारकादि
अवस्थाओ अने मतिज्ञानादि भाव द्रष्टिगोचर थई रह्या छे ते बधा जीवना ज छे आ जीव ज पोताना
अज्ञानने कारणे कर्मोथी संयुक्त थईने ए विविध अवस्थाओनो पात्र थई रह्यो छे अने पोताना अज्ञाननो
त्याग करी ए ज मोक्षनो पात्र थशे. आ प्रकारे जे जीव बन्ने नयोना विषयने जाणे छे तेमां संदेह नथी.
७३. जो ते एवी श्रद्धा करे के हुं सिद्धो समान वर्तमान पर्यायमां पण शुद्ध छुं अथवा ते एवी श्रद्धा
करे के वर्तमान पर्याय समान हुं मारा त्रिकाळी ध्रुवस्वभावमां पण अशुद्ध छुं तो ते सर्वथा एकान्तपक्षनो
आग्रही होवाथी जिन वचननी बाह्य श्रद्धा करवावाळो मानवामां आवे परंतु एम नथी, केमके ज्यां सुधी
जाणवानो सवाल छे त्यां सुधी ते ए बन्ने नयोना विषयने सारी रीते समानरूपे जाणे छे. एमां कोई एकना
पक्षने ग्रहण करतो नथी. परंतु अहि मात्र जाणवुं ज तो प्रयोजनवाळुं छे ज नहि. अहीं तो तेने वर्तमानमां
जे अशुद्ध अवस्था छे तेमां हेय बुद्धि करीने पर्यायरूपे पोताना सहज स्वरूप निज तत्त्वने प्रगट करवुं छे. जो
तेनी आ द्रष्टि न होय तो न तो ते मोक्षमार्गी ज होई शके अने न तो ते साधक कहेवडाववाने ज पात्र मानी
शकाय. तेथी ते आ बन्ने नयोना विषयने समानरूपे जाणीने पण उपादेय तो मात्र निश्चयनयना विषयने ज
माने छे, केमके तेनो आश्रय