तेने चित्स्वरूप आ जीव निरन्तर चित्स्वरूप ज छे. तेथी जे आ कहेवामां आवे छे के मोक्षमार्गमां साधकने माटे
एक मात्र निश्चयनय (निश्चयनयनो विषय) आश्रय करवा योग्य होवाथी तेनो ज पक्ष ग्रहण करवो जोईए
एम कहेवुं क््यां सुधी उचित छे ए विचारणीय थई जाय छे. आ स्थिति उपर पूर्ण रीते विचार करवाथी
शंकाकार कहे छे के अमने तो अमृतचंद्राचार्यनुं आ वचन ज उपयोगी जणाय छे. ते वचन आ प्रकारे छे–
सपदि समयसारं ते परं ज्योतिरुच्यै–
रनवमनयपक्षाक्षुण्णमीक्षन्त
रहित, सनातन अने अतिउत्कृष्ट परम ज्योतिस्वरूप समयसारने शीघ्र देखे ज छे. ४.”
जोईए, केमके एम कर्या विना एकान्तनो आग्रह थई जवाथी ते मोक्षमार्गी थई शकतो नथी.
आवश्यक मानवामां आव्या छे तेमां संदेह नथी. ज्यां ते एम जाणे छे के द्रव्यार्थिकद्रष्टि (परमभावग्राही
निश्चयनय) थी ज्ञायक स्वभाव हुं एक छुं, नित्य छुं अने ध्रुवभावरूप छुं. आ जे नर–नारकादिरूप
विविधपर्यायो अने मतिज्ञानादिरूप विविध भाव द्रष्टिगोचर थई रह्या छे ते मारा त्रिकाळी ध्रुवस्वभावमां
नथी, त्यां ते एम पण जाणे छे के व्यवहारद्रष्टिथी (पर्यायार्थिकनयथी) वर्तमानमां जे नर–नारकादि
अवस्थाओ अने मतिज्ञानादि भाव द्रष्टिगोचर थई रह्या छे ते बधा जीवना ज छे आ जीव ज पोताना
अज्ञानने कारणे कर्मोथी संयुक्त थईने ए विविध अवस्थाओनो पात्र थई रह्यो छे अने पोताना अज्ञाननो
त्याग करी ए ज मोक्षनो पात्र थशे. आ प्रकारे जे जीव बन्ने नयोना विषयने जाणे छे तेमां संदेह नथी.
आग्रही होवाथी जिन वचननी बाह्य श्रद्धा करवावाळो मानवामां आवे परंतु एम नथी, केमके ज्यां सुधी
जाणवानो सवाल छे त्यां सुधी ते ए बन्ने नयोना विषयने सारी रीते समानरूपे जाणे छे. एमां कोई एकना
पक्षने ग्रहण करतो नथी. परंतु अहि मात्र जाणवुं ज तो प्रयोजनवाळुं छे ज नहि. अहीं तो तेने वर्तमानमां
जे अशुद्ध अवस्था छे तेमां हेय बुद्धि करीने पर्यायरूपे पोताना सहज स्वरूप निज तत्त्वने प्रगट करवुं छे. जो
तेनी आ द्रष्टि न होय तो न तो ते मोक्षमार्गी ज होई शके अने न तो ते साधक कहेवडाववाने ज पात्र मानी
शकाय. तेथी ते आ बन्ने नयोना विषयने समानरूपे जाणीने पण उपादेय तो मात्र निश्चयनयना विषयने ज
माने छे, केमके तेनो आश्रय