“जे आत्माने शुद्ध जाणे छे (अनुभवे छे) ते शुद्ध ज आत्माने प्राप्त करे छे अने जे तेने अशुद्ध जाणे
संबंधी थता विकल्प (राग) ने छोडावी पोताना ध्रुव स्वभाव तरफ झुकाववानो रह्यो छे, केमके तेओ सारी
रीते जाणता हता के जे एम माने छे के हुं कर्मथी सर्वथा अबद्ध छुं तेने करवा माटे कांई बाकी रहेतुं नथी.
साथे ज तेओ ए पण सारी रीते जाणता हता के जे एम माने छे के हुं कर्मथी सर्वथा बद्ध छुं ते प्रयत्न करवा
छतां पण कर्मथी त्रण काळमां मुक्त थई शकतो नथी. माटे तेमणे एकान्तना आग्रह सहित बन्ने नयोना
विकल्प छोडावी निर्विकल्प थवा माटे उक्त वचन कह्यां छे तेमां संदेह नथी.
लेतां, उपादेयरूप निश्चयनयनो ज आश्रय ले छे, केमके मोक्षरूप प्रयोजननी सिद्धि माटे जे सर्वथा हेय (–
छोडवा योग्य) छे ते आश्रय करवा योग्य होई शके नहि. अने जे सर्वथा उपादेय छे तेनो आश्रय लीधा
विना ईष्ट प्रयोजननी सिद्धि थई शकती नथी.
विषयने जाणवा ते जुदी वात छे अने जाणीने व्यवहारनयना विषयमां हेयबुद्धि करवी अने निश्चयनयना
विषयमां उपादेयबुद्धि करी तेनो आश्रय लई तन्मय थवुं ते जुदी वात छे. पक्षातिक्रान्त थवानुं पण आ ज
तात्पर्य छे. ए ज कारण छे के श्री कुन्दकुन्दाचार्ये एक तरफ तो साधक जीवने नयपक्षना रागने त्यागवानो
उपदेश आप्यो छे अने बीजी तरफ निश्चयरत्नत्रयनी प्राप्ति माटे निश्चयनयना विषयनो आश्रय लेवानो
उपदेश आप्यो छे. आ प्रकारे पक्षातिक्रान्त थवा माटे व्यवहारनय केम हेय छे अने निश्चयनय केम उपादेय छे
ए स्पष्ट थई जाय छे.
वात कहेवामां आवी छे, अने ते ज समयसार गाथा ११, १२ तथा १४ मां आत्मानी केवी अनुभूति थवाथी
निर्विकल्पनयनो आश्रय थाय छे तेनुं वर्णन करवामां आवेल छे.