: १२ : आत्मधर्म : ए.२१३
२३४ ना भावार्थमां जणाव्युं छे के :–
“जेओ द्रव्यलिंगमां ममत्व वडे अंध छे तेमने शुद्धात्म द्रव्यनो अनुभव ज नथी, कारण के तेओ
अहीं एम स्पष्ट करवामां आव्युं के–अज्ञानीओ एक के बीजे प्रकारे व्यवहारने ज अर्थात्
व्यवहारनयना कथनने ज परमार्थ अर्थात् निश्चयकथन मान्या वगर रही शकता नथी. तेओ परद्रव्यने ज
आत्मद्रव्य माने छे. तेओ जीवद्रव्यनुं–तत्त्वनुं अजीव द्रव्यथी–तत्त्वथी भेदज्ञान करता नथी तोपछी तेमने जीव
अने आस्रवनुं समयसार गा.–६९–७० मां कह्या प्रमाणेनुं भेदज्ञान तो थाय ज नहीं तेनुं कारण ए छे के
तेओ आत्मा अने आस्रव ए बन्नेनो तफावत अने भेद जाणता नथी.
२०
प्रवचनसार गा. १९०–१९१
७१. श्री प्रवचनसार गा. १९० आ संबंधमां घणी स्पष्ट छे. तेना मथाळामां कह्युं छे के, अशुद्धनयथी
(व्यवहारनयथी) अशुद्ध आत्मानी प्राप्ति ज थाय छे. ते गाथानी टीकामां व्यवहारथी मोहित जीवनुं स्वरूप
नीचेना शब्दोमां समजाव्युं छे:–
“जे आत्मा शुद्ध द्रव्यना निरूपणस्वरूप निश्चयनयथी निरपेक्ष रहीने अशुद्धद्रव्यना निरूपणस्वरूप
व्यवहारनयथी जेने मोह उपज्यो छे एवो वर्ततो थको ते आत्मा खरेखर शुद्धात्म परिणतिरूप जे श्रामण्य
नामनो मार्ग तेने दूरथी छोडीने अशुद्धात्म परिणतिरूप उन्मार्गनो ज आश्रय करे छे. आथी नक्की थाय छे के
अशुद्धनयथी अशुद्ध आत्मानी प्राप्त ज थाय छे” १९०.
७२. श्री प्रवचनसारनी गा. १९१ मां शुद्धनयथी शुद्ध आत्मानी प्राप्ति ज थाय छे एम नक्की करवा
फरमाव्युं छे. त्यां व्यवहारनय संबंधी जे स्पष्टता करवामां आवी छे ते घणी सुंदर छे. त्यां कह्युं के–ज्ञानीओ
व्यवहारनयमां अविरोधपणे मध्यस्थ रहे एटले के व्यवहारनयना अने तेना विषयना तेओ ज्ञाताद्रष्टा
व्यवहारे रहे छे पण ते आश्रय करवा योग्य छे एम तेओ मानता नथी. टूंकामां कहीए तो जेम श्री
समयसारमां ज्ञानीओने व्यवहारना ज्ञाता–द्रष्टा कह्या छे, पण तेना कर्ता–भोक्ता के तेना स्वामी कह्या नथी.
ते ज सिद्धांत अहीं कह्यो छे.
७३. ते गाथानी टीका अगत्यनी होवाथी नीचे आपी छे –
“जे आत्मा, मात्र पोताना विषयमां प्रवर्तता अशुद्ध द्रव्यनिरूपणात्मक (अशुद्ध द्रव्यना निरूपण
स्वरूप१ व्यवहारनयमां अविरोधपणे मध्यस्थ रहीने. शुद्धद्रव्यना निरूपणस्वरूप निश्चयनयवडे मोहने २दूर
कर्यो छे एवो वर्ततो थको ‘हुं परनो नथी पर मारां नथी’–एम स्व–परना परस्पर स्व–स्वामीसंबंधने
खंखेरी नाखीने ‘शुद्धज्ञान ज एक हुं छुं’–एम अनात्माने छोडीने आत्माने ज आत्मपणे ग्रहीने परद्रव्यथी
व्यावृत्त (भिन्न) पणाने लीधे आत्मारूपी ज एक अग्रमां चिंताने रोके छे. ते एकाग्र चिंतानिरोधक (–एक
विषयमां विचारने रोकनारो आत्मा) ते एकाग्र–चिंतानिरोधना समये खरेखर शुद्धात्मा होय छे. आथी
नक्की थाय छे के शुद्धनयथी ज शुद्ध आत्मानी प्राप्ति थाय छे.” १९१.
१. व्यवहारनयनुं कथन ज्यां ज्यां होय त्यां “एम नथी पण निमित्तादिनी अपेक्षाए आ उपचार कर्यो छे”–एम
जाणवुं जे व्यवहारनयनुं अविरोधपणुं छे मध्यस्थ रहेवुं एटले मात्र तेना ज्ञाता–द्रष्टा रहेवुं–स्वाधीन थवुं.
२. निश्चयनयवडे मोहने दूर कराय छे–व्यवहारनयवडे नहीं. जे तेम न माने तेने (प्रवचनसार गा. १९० मां कह्या
मुजब) व्यवहारनयथी मोह उपज्यो छे, एम समजवुं.