Atmadharma magazine - Ank 213
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : ए.२१३
(७) सम्यग्ज्ञान (स्वसंवेदन) अने स्वरूपा चरणनी कणिका जाग्ये मोक्षमार्ग साचो.
(८) मोक्षमार्ग साधवो ए व्यवहार अने शुद्धद्रव्य अक्रियारूप ते निश्चय छे–ए प्रमाणे निश्चय
(९) मूढजीव बंध पद्धतिने साधतो थको तेने मोक्षमार्ग कहे ते वात ज्ञाता माने नहि केमके बंधने
श्री समयसार नाटक श्री सर्वविशुद्धज्ञान अधिकारमां पंडित बनारसीदासजी व्यवहारीजीवनुं स्वरूप
वर्णवतां नीचे मुजब कहे छे :–
करणी के धरणीमां महामोह राजा वसे,
करणी अज्ञानभाव राक्षसकी पुरी है
।।
करणी करम काया पुद्गलकी प्रतिछाया
करणी प्रगट माया मिसरी की छुरी है
।।
करणी के जालमें उरझी रह्यो चिदानंद,
करणी की वोट ज्ञानभाव दुति दुरी है
।।
आचारज कहै करणी सो व्यवहारी जीव
करणी सदैव निहचै स्वरूप बुरी है
।। ९७ ।।
अहीं एम समजावे छे के–आचार्यदेव करणीवाळा व्यवहारी जीवने संबोधे छे के करणी सदाय
प. अंतर्दष्टिना प्रमाणमां–एटले के आत्माना आश्रये जेटली शुद्धता प्रगट करे तेटला प्रमाणमां– व्यवहार मोक्षमार्गना
प्रमाणमां नहीं केमके तेओ बाह्य निमित्तरूप छे.
६. अहीं चोथे गुणस्थानके निश्चयमोक्षमार्ग प्रगटे छे एम स्पष्ट कर्युं छे.
७. “अविचलित चेतना विलासमात्र आत्म व्यवहार” छे एम प्रवचनसार गा. ९४ पा. १४७–१४८ मां कह्युं छे.
ङ्क