Atmadharma magazine - Ank 213
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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प्रथम जेठ : २४८७ : १प :
क्रम नियमित मीमांसा
(श्री जैनतत्त्वमीमांसा अधिकार ७)
क्रमांक–२११, थी चालु (अनुवाद पृ. १७०, १३मी लीटीथी
प४. कर्मसाहित्यमां अपकर्षण माटे तो एक मात्र ए नियम छे के उदयावलिनी अंदर रहेलां
कर्मपरमाणुओनुं अपकर्षण थतुं नथी. जे कर्मपरमाणुं उदयावलिनी बहार अवस्थित छे तेनुं अपकर्षण थई
शके छे. पण उत्कर्षण उदयावलिनी बहार रहेला समस्त कर्मपरमाणुओनुं थई शकतुं होय एम नथी. उत्कर्षण
थवा माटे नियम घणा छे अने अपवाद पण घणा छे परंतु टूंकामां एक ए नियम करी शकाय छे के जे
परमाणुओनी उत्कर्षणने योग्य शक्ति स्थिति बाकी छे अने तेओ उत्कर्षणना योग्य स्थानमां रहेलां छे.
तेओनुं ज उत्कर्षण थई शके छे, अन्यनुं नहि. जो आपणे आ नियमोने ध्यानमां राखीने विचार करीए तो
पण एज वात नक्की थाय छे के जे परमाणु उत्कर्षणने योग्य उक्त योग्यता युक्त छे तेओ ज जीव
परिणामोने निमित्त करीने उत्कर्षित थाय छे. तेमां पण ते सर्व परमाणु उत्कर्षित थतां होय एम पण नथी.
परंतु जेमां विवक्षित समयमां उत्कर्षित थवानी योग्यता होय छे ते विवक्षित (खास; अमुक) समयमां
उत्कर्षित थाय छे अने जेमां द्वितीय आदि समयोमां उत्कर्षित थवानी योग्यता होय छे ते द्वितीय आदि
समयोमां उत्कर्षित थाय छे. ए ज नियम अपकर्षण आदि माटे पण जाणी लेवो जोईए.
पप. आ कर्मो अने विस्त्रसोपचयोना विवक्षित समयमां विवक्षित कार्यरूप थवानो क्रम छे. जो
आपणे कर्म प्रक्रियामां निहित आ रहस्यने सारी रीते जाणी लईए तो आपणने अकाळमरण अने
अकाळपाक आदिना कथननुं पण रहस्य समजवामां वार न लागे. कर्मबंध समये जे कर्मपरमाणुओमां जेटली
व्यक्ति स्थिति (–ए जातनो प्रगट स्थितिबंध, १) पडवानी योग्यता होय छे ते समये तेमां तेटली
व्यक्तिस्थिति पडे छे अने बाकीनी शक्ति स्थिति रही जाय छे एमां संदेह नथी. पण ए परमाणुओने
पोतानी व्यक्तिस्थिति के शक्तिस्थितिना काळ सुधी कर्मरूपे नियमथी (निश्चयथी) रहेवुं ज जोईए अने जो
तेओ एटला काळसुधी कर्मरूपे नथी रहेतां तो तेनुं कारण तेओ स्वयं कदापि नथी, (अने) अन्य ज छे एवुं
मानी शकातुं नथी, केमके एवुं मानवाथी एक तो कारणमां कार्य कथंचित् सत्तारूपे अवस्थित रहे छे ए
सिद्धांतनो अपलाप
थाय छे. बीजुं कोण कोनुं समर्थ उपादान छे एनो कोई नियम न रहेवाथी जड–चेतननो
भेद न रहेतां अनियमपणे कार्यनी उत्पत्ति प्राप्त थाय छे, माटे ज्यारे उपादाननी अपेक्षाए कथन करवामां
आवे छे त्यारे प्रत्येक कार्य स्वकाळे ज थाय छे ए ज सिद्धांत चोक्कस ठरे छे. आ द्रष्टिथी अकाळमरण अने
अकाळपाक जेवी वस्तुने कोई स्थान मळतुं नथी. अने ज्यारे तेनो अतर्कितोपस्थित
के प्रयत्नोपस्थित
निमित्तोनी अपेक्षाए
कर्म सिद्धांतनी शैलिमां. २ निहित–छुपायेलुं; अंदर रहेलुं.
१. व्यक्ति–शक्तिस्थितिनो अर्थ–प्रगट के अप्रगट स्थितिबंध, एवो थाय छे, स्थिति–काळनी मर्यादा.
२. मिथ्यावाद; बकवाद.
३. ओचिंतानुं आवी पडवुं; पूर्व कर्म; दैव.
४. ईच्छारूप वर्तमान पुरुषार्थ.