निमित्तकारण उपादान कारणमां रहेली योग्यतानी परवा कर्या विना ते समये उपादान द्वारा नहि थवावाळा
कार्यने करी शके छे तो ते मुक्तजीवने संसारी पण बनावी शके छे. अमने विश्वास छे के तेओ आ तर्कना
महत्वने समजशे. कोई कोई ठेकाणे निमित्तने कर्ता कहेवामां आवेल छे अने कोई कोई ठेकाणे तेने कर्ता न
कहीने पण एना उपर कर्तृत्वधर्मनो आरोप करवामां आवे छे ए अमे मानीए छीए पण त्यां ते ए अर्थमां
कर्ता कहेवामां आवे छे जे अर्थमां उपादानकर्ता होय छे के अन्य अर्थमां? जो आपणे आ तफावतने सारी
रीते समजी लईए तो पण तत्त्वनी घणी रक्षा थई शके छे.
कथन) क््यां छे ते अमे हजी सुधी समजी शक््या नथी. जो कोई कार्योत्पत्तिना समये ‘जे बलाधानमां निमित्त
होय छे ते कर्त्ता’ एवी रीते निमित्तमां कर्तृत्वनो उपचार करीने निमित्तने कर्त्ता कहेवा ईच्छे छे जेम के अनेक
स्थळे शास्त्रकारोए उपचारथी कह्युं पण छे तो एनो कोई निषेध पण करता नथी. कार्योत्पत्तिमां अन्य द्रव्य
निमित्त छे एनो तो कोईए अस्वीकार कर्यो नथी. एटलुं अवश््य छे के मोक्षमार्गमां स्वावलंबननी मुख्यता
होवाथी कार्योत्पादनमां समर्थ पोतानी योग्यतानी साथे पुरुषार्थने ज प्रश्रय (–आश्रय स्थान, आधार)
देवामां आवेल छे अने प्रत्येक भव्य जीवने ए अनुपचरित अर्थनो आश्रय लेवानी मुख्यताथी उपदेश
देवामां आवे छे.
पण जो आ जीव अंदरथी परनुं अवलंबन छोडी श्रद्धा, ज्ञान अने चर्यारूप पोतानुं अवलंबन स्वीकार करी
ले तो तेने संसारथी पार थवामां वार लागे नहि.
पर्यायोनी क्रमाभिव्यक्तिने (क्रमे थती प्रगटताने) बताववा माटे स्वीकारेल छे अने ‘नियमित’ शब्द प्रत्येक
पर्यायनो स्वकाळ पोत पोताना उपादान अनुसार नियमित छे एम बताववा माटे कहेवामां आवेल छे.
पर्यायथी बंधायेली न होतां पोतानामां स्वतंत्र छे ए बताववा माटे अहीं अमे ‘क्रमनियमित’ शब्दनो
प्रयोग कर्यो छे. श्री अमृतचंद्राचार्ये समयसार गाथा ३०८ आदिनी टीकामां ‘क्रमनियमित’ शब्दनो प्रयोग
आ ज अर्थमां कर्यो छे, केमके ते प्रकरण सर्वविशुद्धज्ञाननुं छे. सर्वविशुद्ध ज्ञान केम प्रगट थाय ए बताववा
माटे समयसारनी गाथा ३०८ थी ३११ सुधीनी टीकामां मीमांसा करता थका आत्मानुं अकर्तापणुं सिद्ध
करवामां आव्युं छे, केमके